जस्टिस दवे ने समाज के चरित्र निर्माण के लिए गीता और महाभारत की
अनिवार्यता के विषय में क्या कह दिया कि सैकुलर शैतानों और कम्युनिस्टों के
ज़मीर पर आस्तीन का सांप लोट गया। जस्टिस दवे ने गुरु-शिष्य प्रणाली से
पलायन को सभी राष्ट्रीय समस्याओं का कारण बताया …’ यथा राजा तथा प्रजा ‘
यदि प्रजातंत्र में सभी अच्छे हैं तो प्रजा शैतानों को क्यों चुनती है
? यह विचार जस्टिस दवे ने कानून-विदों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त
किये।
गीता को सत्य मार्ग पथ -प्रदर्शक की क़ानूनी मान्यता प्राप्त है …
न्यायालय में गीता की सौगंध उठाने वाले व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि
वह न्याय के मंदिर में असत्य नहीं बोलेगा ! अब जिस व्यक्ति ने गीता को
पढ़ा ही नहीं तो उससे कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि उसे सत्य असत्य की
समझ है ?
गीता के ज्ञान के लिए ‘पात्रता ‘ अनिवार्य है … अर्जुन इस ज्ञान के
पात्र थे तभी भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान उसे दिया … जिस वक्त
भगवान कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे रहे थे … तो
अधर्म के पक्ष में खड़े भीष्म पितामाह पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे …
काश ! पवन मेरी ओर हो जाए और माधव के मुखारविंद से निकले अमुल्य शब्द
मेरे कानों को भी धन्य कर दें ?
बिना पात्रता के गीता का पठन -मनन और ग्राह्यता अधर्मियों के भाग्य में
कदापि नहीं है। गीता और महाभारत में भारतियों को मानवीय मूल्यों के गहन
ज्ञान से अवगत करवाया गया है। गीता और महाभारत के ज्ञाता कभी भी अन्याय
करने या सहने का पाप नहीं करते … आज गीता के ज्ञान को बिसरा कर हम
अन्याय को निरंतर सहने के घोर संताप को सहते जा रहे हैं । शैतान को
मानने वाले आतंकी सदियों से भारतियों के खून से होली खेल रहे हैं और
गीता के ज्ञान को बिसरा चुके भारतीय ‘अहिंसा’ और मोक्ष के चक्रव्यूह में
अभिमन्यु का संत्रास भोग रहे हैं।
सैकुलर शैतान और कौमनष्ट , दुर्योधन की भांति कितना ही ‘वज्र -अमानुष ‘
बन जाएं मगर गीता और महाभारत के ज्ञान की गदा से भारतीय भीम अंततय इनका
अंत कर ही देगा …