ग्रामीण संस्कृति में ग्राम देवताओं और लोक देवताओं तथा लोक देवियों के दर्शन-पूजन-अर्चन की विशेष परंपरा सदियों से विद्यमान रही है। इनके प्रति ग्रामीणों की अगाध आस्था होती है और यही कारण है कि साल भर में कई बार विशेष पर्व-उत्सवों और मेलों-त्योहारों पर इन आस्था स्थलों पर विशेष आयोजन होते हैं जिनमें गांव भर से श्रद्धालु उमड़ते हैं। ग्राम्य सहभागिता और सद्भाव का पैगाम देते ये श्रद्धा स्थल ग्रामीणों के लिए अगाध विश्वास के केन्द्र हैं।
यही कारण है कि ग्रामीण इन्हें अपने ग्राम रक्षक दैव या संरक्षक के रूप में स्वीकारते हैं और इसी भावना के साथ इनकी पूजा-अर्चना करते हुए अपने आपको तथा क्षेत्र को सुरक्षित मानते हैं। गांवों के मुहाने कई स्थानों पर भैरवजी के स्थानक बने हुए हैं जिन्हें ग्राम रक्षक दैव के रूप में पूजा जाता रहा है। ऎसा ही एक श्रद्धा स्थल प्रतापगढ़ जिले के कचोटिया में है। कचोटिया प्रतापगढ़-बांसवाड़ा मार्ग पर प्रतापगढ़ से कुछ ही दूरी पर अवस्थित है। इसी गांव में पहाड़ी पर पुराने जमाने का भैरूजी बावजी का स्थानक है जिसे ग्रामीण अपने संरक्षक और पालनकर्ता के रूप में पूजते हैं। इस धाम के प्रति कचोटिया ही नहीं बल्कि आस-पास के कई गांवों के लोगों की अगाध श्रद्धा है। काले पत्थरों की चारदीवारी वाले इस मुक्ताकाशी धाम में भैरूजी सहित विभिन्न पाषाण खण्डों पर सिन्दूर-पानीये लगाए हुए हैं जबकि कई सिरा बावजी की मूर्तियां भी हैं। धाम का भीतरी हिस्सा गोबर-मिट्टी पुता हुआ है। गांव में मनुष्य या पशु बीमार हो जाते हैं तब यहां की करवणी ( अभिमंत्रित पवित्र जल) ले जाकर पिलाया जाता है अथवा छिड़क दिया जाता है। लोगों की आस्था है कि भगवान भैरूनाथ उनके हर सुख-दुःख में सहभागी होते हैं और संकटों का निवारण करते हैं।
घर-परिवार के शुभाशुभ कार्यों में भैरूजी के स्थानक पर आकर दीपक-अगरबत्ती की जाती है और धूप देकर भोग लगाया जाता है। गांव में किसी भी प्रकार की बीमारी या संकट के समय अथवा समय पर बरसात नहीं होने की स्थिति में भगवान भैरूनाथ के धाम पर जाकर सामूहिक प्रार्थना किए जाने की परंपरा भी रही है। कचोटिया का यह भैरूधाम श्रद्धालुओं का वह आस्था धाम माना जाता है जहाँ भगवान भैरव हर किसी की सुनते एवं मदद करते हैं।