अच्छी बातें याद रखें बाकी सब भूल जाएँ
आमतौर पर इंसान के चेतन और अवचेतन मस्तिष्क में उन सभी प्रकार की बातों का भण्डार जमा रहता है जो उसके जीवन में घटित होती हैं। जिन बातों या घटनाओं को वह देखता, सुनता और अनुभव करता है उसकी अपने आप पूरी रिकार्डिंग होती रहती है।
हमारे मस्तिष्क में उन सारी घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा जमा होता रहता है जो हमारे जीवन, परिवेश और व्यक्तित्व के तमाम आयामों से जुड़ी हुई होती हैं। चेतन के मुकाबले अवचेतन में यह संधारण क्षमता कई गुना ज्यादा हुआ करती है।
अपने मस्तिष्क में जमा हुई सभी बातों का असर मन और शरीर पर निरन्तर अपना प्रभाव बनाए रखता है और इसी के अनुरूप हमारा व्यक्तित्व ढलने लगता है। इसी से सुख और दुःख तथा आनंद और विषाद जैसी द्वन्द्व भरी मनःस्थितियों का हम रोजाना सामना करते रहते हैं।
बहुधा हम अपने भ्रमों और भविष्य को लेकर या कि भविष्य की आशंकाओं को लेकर उद्विग्नता और तनाव झेलते हैं जबकि उन शंकाओं, भ्रमों और आशंकाओं का कोई बीज तक नहीं होता है मगर हम पूरा का पूरा विराट वट वृक्ष मानकर उन सभी चीजों से दुःखी और संतप्त होते हैं जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है।
हर इंसान के जीवन में अच्छे और बुरे सभी प्रकार के कर्मों से सामना होता है, दुखद और सुखद घटनाओं का आवागमन चलता रहता है। इनमें से ही कोई घटना चित्त पर ज्यादा असर डालने में कामयाब हो जाती है तब मस्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है और हमारे व्यवहार में विकृति आने लगती है। ऎसे हालात हम सभी के साथ होते हैं। कुछ लोग हालातों को पचाने की क्षमता रखते हैं उनके लिए यह सामान्य बात होती है और इसका उनके चित्त पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता।
दूसरी स्थिति में अधिकांश लोगों के लिए उनके जीवन की खराब अनुभवों वाली घटनाओं के कई सूत्र एक साथ जुड़ जाते हैं और इसका सीधा असर दिमाग और मन पर ऎसा पड़ता है कि ये जीवन भर के लिए सदमे में आ जाते हैं और सामान्य जीवन जीना भी मुश्किल हो जाता है। ऎसे लोग अपने आप कई प्रकार की सनक को पाल लिया करते हैं जो कालान्तर में उनके व्यक्तित्व की एक खास पहचान बनकर उभरने लगती है और बाद में वे उसी की वजह से जाने-पहचाने जाते हैं।
आदमी के जीवन में आने वाली घटनाएं और अनुभवों की श्रृंखलाएं ही हैं जो उसके जीवन की दिशा और दशा तय करते हैं और आदमी को उसी के अनुरूप हाँकती रहती हैं। हमारे चित्त में उन्हीं संस्कारों का बीजारोपण होना चाहिए जो उत्तम और आनंददायी हैं तथा जिनके अवलम्बन से मौज-मस्ती भरा जीवन और सुखद अहसास हमेशा बना रहे।
इसके लिए यह जरूरी है कि हमारे जीवन के सभी प्रकार कटु अनुभवों और बुरी घटनाओं को पूरी तरह भुला देने का अभ्यास करें और इन संस्मरणों को यह समझ कर तिलांजलि दे दें कि ये अपने जीवन की आकस्मिक दुर्घटनाएं थीं जो अपना काम करके चली गई, उन्हें याद रखना हमारे लिए कोई जरूरी नहीं।
आमतौर पर कई प्रकार के स्वार्थियों, मलीन मनोवृत्ति वाले गंदे, कमीनों, मक्कारों और धूर्तों से पाला पड़ने की स्थिति में उनकी नापाक हरकतों और अपने साथ किए अन्याय को हम कभी भुला नहीं पाते हैं। इसी प्रकार जीवन में कई बार हमसे भी ऎसे-ऎसे काम अनजाने में हो जाते हैं जिनका हमें बाद में पछतावा होता है। कई बार ऎसी विषम परिस्थितियों से हम दो-चार होते हैं जिनके बारे में किसी को कुछ बताया भी नहीं जा सकता। अनेक बार हम अपनी मूर्खता, मजाक या नादानी में दुर्घटनाएं कर बैठते हैं।
कुल मिलाकर बात यह है कि हमारे जीवन में चाहे-अनचाहे, किसी के प्रलोभन या दबाव में, जिस भी प्रकार की घटनाएं-दुर्घटनाएं हो गई हों उन्हें दुबारा नहीं दोहराने का संकल्प ले लें, इनका प्रायश्चित कर दें और फिर सदा-सदा के लिए भुला दें।
इन घटनाओं को कभी अविस्मरणीय स्वरूप न लेने दें बल्कि विस्मृत करते चले जाएं। ऎसा करने से हम अपने आपको जितना हल्का महसूस करने लगते हैं उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। बार-बार पुरानी और विषाद भरी बुरी घटनाओं का स्मरण करते रहने से अवचेतन में इसकी नई-नई परतें जमती चली जाती हैं और जिन बुरी घटनाओं की सूक्ष्म तरंगों को कालान्तर में समाप्त हो जाना चाहिए होता है वे रह-रहकर नई ताजगी पाकर पुनर्जीवित होती चली जाती हैं।
इससे हमारा अवचेतन का भण्डार बेवजह ओवरलोडेड होने लगता है और यह स्थिति या तो हमें स्मृतिभ्रम या स्मृतिलोप के कगार पर पहुँचा दिया करती है अथवा मानसिक उन्माद की अवस्था तक। इसके सिवा और कोई रास्ता है ही नहीं।
बुरी बातों और घटनाओं को बार-बार याद करते रहने से हम हर बार उतने ही पीछे चले जाते हैं जितने वर्ष पुरानी घटनाएं हुआ करती हैं। हम जीवन में लौकिक सुख पाना चाहें तो उन सभी अच्छी, सुकूनदायी और सुख प्रदान करने वाली घटनाओं, क्षणों और संबंधों को याद करें जो हम व्यक्तियों, संसाधनों और प्रकृति के साथ वैयक्तिक और ऎकान्तिक अथवा सामुदायिक आनंद के स्रोतों में मग्न रहते हुए पाते हैं। और अलौकिक सुख पाना चाहें तो बुरी ही नहीं, साथ में जीवन की अच्छी घटनाओं को भी भुला दें। इनमें से सिर्फ अनुभवों को ही ग्रहण करें, बाकी सभी को भूलते चले जाएं।
इससे हम उस अवस्था को प्राप्त कर सकने में सफल हो सकते हैं जिसे सुख और दुःख दोनों से परे स्थिति के रूप में निरूपित किया गया है जहाँ ब्रह्मानंद का द्वार हमारे लिए खुलने लगता है। लेकिन अलौकिक आनंद पाने वाले लोग बिरले ही होते हैं। हम जैसे बहुसंख्य लोग लौकिक आनंद के लिए ही जिन्दगी भर प्रयत्नशील रहते हैं और इसकी प्राप्ति ही हमारे जीवन का चरम ध्येय व लक्ष्य हुआ करती है।
हमेशा उसी को अविस्मरणीय बनाएं जिससे हमें आनंद की प्राप्ति हुई हो, जीवन जीने की नई प्रेरणा का संचार हुआ हो। प्रेरक या उत्प्रेरक कोई भी हो सकता है। फिर चाहे वह कोई इंसान हो सकता है, संसाधन हो सकता है अथवा जीवन की कोई सी घटना। इस सूत्र को जो अंगीकार कर लिया करता है वह अपने आपमें शाहों का शाह बन जाता है।