चौधरी जयदीप सिह ‘नैन’
चौधरी तख्तमल जी पंजाब के मुक्तसर के पास मत्ते की सराय(सराय नागा) के 70 गांवों के स्वतंत्र जाट जागीरदार थे। उनका जन्म 4 मार्च 1465 के आस पास हुआ बताया जाता है। वे बहुत वीर और धनी पुरुष थे।
द्वितीय सिख गुरु अंगद देव जी के पिता फेरूमल(खत्री)जी जब आर्थिक रूप से जूझ रहे थे तब इनके गांव में आये थे तो इन्होंने उन्हें मुनीम की नौकरी दी थी। मनीम फेरूमल जी ने इनके यहां कई वर्षों तक कार्य करके जीवन यापन किया। वे इनके यहां ही रहते थे। यहीं पर फेरुमल जी पुत्र के रूप में गुरु अंगद देव जी का जन्म हुआ था व यही उनका बचपन बीता था।
चौधरी तख्तमल जी के 7 बेटे व एक पुत्री थी। पुत्री का नाम माई भराई(विराई) था। माई भराई को फेरूमल जी धर्म बहन मानते थे व गुरु अंगद देव जी उन्हें बुआ जी कहते थे।
चौधरी तख्तमल जी माता दुर्गा के बहुत बड़े भगत थे उन्होंने माता का एक विशाल मंदिर बनाया और उसमें देवी देवताओं की बहुत सी भव्य मूर्तियां स्थापित की थी।मन्दिर में बहुत से आभूषण व कीमती सामान भी दान किया था।
गुरु अंगद देव जी आगे चलकर सन्त बन गए तब वे एक बार उनसे मिलने आये तो चौधरी तख्तमल जी ने उनके चरण स्पर्श करने चाहे पर गुरुजी ने यह कहकर मना कर दिया कि आपके परिवार ने उनके यहां काम किया है और आप उम्र में वंश में हमसे बड़े हैं और कहा कि वे स्वयं आपके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेने चाहते हैं लेकिन चौधरी तख्तमल जी इसके लिए राजी नहीं हुए और कहा कि वे सन्त है और मैं सन्त से पैर कैसे स्पर्श करवा सकता हु। फिर गुरुजी ने उन्हें गले लगा लिया था।
माई भराई भी आआगे चलकर प्रसिद्ध सन्त बनी थी। भराई की शादी महिमा सिंह खैरा जाट के यहां हुई थी जो खण्डूर गांव के चौधरी थे।
माई भराई ने ही 1520 में अपने भतीजे गुरु अंगद देव जी की शादी अपने ससुराल में ही करवाई थी।
कुछ समय बाद दुष्ट बाबर ने भारत पर आक्रमण कर दिया उसी दौरान रास्ते में चौधरी तख्तमल जी का गंब व जागीर पड़ती थी। उस समय उसने चौधरी साहब के पास बहुत सा धन होने की बात सुनी तो चौधरी तख्तमल जी की हवेली और गांव को भी लूटने की योजना बनाई। और गांव पर अपनी सेना के साथ अचानक से आक्रमण कर दिया।
चौधरी तख्तमल जी वीरता से लड़े और पूरे गांव की सुरक्षा की बाबर के सैंकड़ो सैनिकों के रेक्ट से अपनी तलवार को नहला दिया था। उन्होंने गुरु अंगद देव जी के परिवार को अपनी जान पर खेलकर सुरक्षित निकाला और उनके साथ कुछ लोग भेजकर उन्हें गांव हरिके के रास्ते अपनी बेटी माई भराई के यहां भेज दिया इस युद्ध के दौरान चौधरी तख्तमल जी बहुत घायल हो गए व युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए।
गुरु जी के पिता फेरूमल जी माई भराई के ही यहां रहे और 1526 में वहीं उनकी मृत्यु हो गयी।
माई भराई गुरु नानक जी की शिष्य बन गयी और गुरु नानक जी ने वृद्धावस्था में उन्हें दर्शन भी दिए। गुरु अंगद देव जी भी बहुत दिनों तक अपनी बुआ माई भराई के यहां रुके थे। माई भराई ने जब प्राण त्यागे तब गुरु अंगद देव जी उनके यहां ही थे व उनके अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए। सन्त माई भराई के नाम पर गुरुद्वारा भी बनवाया गया। लेकिन कितने शर्म की बात है कि हम महान यौद्धा चौधरी तख्तमल जी को भूल गए। आज उन्हें कोई याद नहीं करता।
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