भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का उदय और विदेशों में मंदिरों को मिला पुनर्जीवन

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विदेशों में भी किया मंदिरों को पुनर्जिवित:

उन्होंने मंदिरों के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का कार्य न सिर्फ भारत में किया बल्कि मनामा, बहरीन में 200 साल पुराने भगवान श्री कृष्ण श्रीनाथजी (श्री कृष्ण) मंदिर की 4.2 मिलियन डॉलर पुनर्विकास परियोजना का शुभारंभ भी किया। इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने 2018 में अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर का शिलान्यास किया था।

अनुच्छेद 370 व कश्मीर:

अनुच्छेद 370 की विदाई व जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित दर्जा देने के बाद कश्यप ऋषि के बसाये कश्मीर घाटी में आतंकियों व इस्लामिक जिहादियों द्वारा ध्वस्त मठ मंदिरों व आश्रमों के पुनरुद्धार की दिशा में भी केंद्र सरकार ने सराहनीय कदम उठाए हैं। साथ ही विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के पुनर्वास हेतु भी पहल की है। कश्मीर में लगभग 1,842 हिंदू पूजा स्थल हैं जिनमें मंदिर, पवित्र झरने, गुफाएं और पेड़ शामिल हैं। 952 मंदिरों में से 212 चल रहे हैं जबकि 740 जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। पुनरनिर्मित मंदिरों में से एक श्रीनगर में झेलम नदी के तट पर स्थित रघुनाथ मंदिर भी है। भगवान राम को समर्पित इस मंदिर का निर्माण पहली बार 1835 में महाराजा गुलाब सिंह द्वारा किया गया था। हालांकि, यह परियोजना अभी भी अपने शुरआती दौर में है, फिर भी यह एक साहसिक पहल है।

पूज्य संतों व महापुरुषों का गुणगान:

महर्षि वाल्मीकि जयंती हो या संत रविदास जी की, बाबासाहेब अंबेडकर की हो या स्वामी रामकृष्ण परमहंस की, महर्षि अरविन्द की हो या स्वामी विवेकानंद की, जनजातीय वीर बिरसा मुंडा हों या मणिपुर की रानी गाइदिन्ल्यू की, प्रधानमंत्री कुछ न कुछ नया अवश्य करते हैं। उनके महान कार्यों और विचारों से सम्पूर्ण विश्व प्रेरणा ले इसके लिए वे सतत सक्रिय रहते हैं। इसके अतिरिक्त देश के स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों को तो वे सदैव स्मरण करते ही रहते हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्ष की पूर्णता के उपलक्ष्य में आयोजित किये जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव  के माध्यम से तो उन्होंने कोई सेनानी छोड़ा ही नहीं। नेशनल वॉर मेमोरियल के माध्यम से माँ भारती के सपूतों को श्रद्धांजलि दे और उस भव्य परिसर के दर्शन कर देशवासियों की छाती चौड़ी हो जाती है। बिरसा मुंडा जी की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा भारत माता के वीर सपूत के महान कार्यों को सच्चा नमन् है।   

इंडिया गेट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस:

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर अब ग्रेनाइट से बनी उनकी एक भव्य प्रतिमा इंडिया गेट पर लगाई जाएगी। यह नेताजी के प्रति भारत की कृतज्ञता का प्रतीक होगा।

करतारपुर साहिब व प्रकाश पर्व:

गुरु गोविंद सिंह व गुरु तेगबहादुर के प्रकाश पर्व पर तो पता ही नहीं चलता कि प्रधानमंत्री मत्था टेकने कब  गुरुद्वारे पहुँच गए। इतना ही नहीं उन्होंने गुरुजी के साहिबज़ादों के बलिदान को नमन करते हुए वीर बाल दिवस मनाने की भी घोषणा कर दी। पाकिस्तान में पचासों अवरोधों के बावजूद करतारपुर साहिब गुरुद्वारा को खोला जाना विश्वभर के लिए एक बड़ा संदेश है।  

नालंदा विश्वविद्यालय:

कभी अपनी सांस्कृतिक धरोहर व शिक्षा का वैश्विक केंद्र रहा नालंदा विश्वविद्यालय भी अब अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त वैश्विक स्तर का कैंपस बनने जा रहा है। नालंदा में बनकर तैयार हुए इस कैंपस की तस्वीरें देखकर कोई भी विस्मृत हो सकता है। इसके भवन की भव्यता देखकर आप अब ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज का नाम भी भूल जाएंगे।

योग, आयुर्वेद, वेद व यज्ञ की महिमा:

 योग, आयुर्वेद, वेद व यज्ञ की महिमा के साथ भारतीय दर्शन व उससे जुड़े जीवन मूल्यों की वृद्धि में उनका योगदान सर्वविदित है। होली, दिवाली व रक्षाबंधन जैसे अनेक त्योहारों को तो वे सीमांत क्षेत्रों में दुर्गम स्थानों पर अपनी जान जोखिम में डालकर काम करने वाले वीर सैनिकों को ही समर्पित कर देते हैं।

भारत का आध्यात्मिक जागरण:

पीएम मोदी का मानना है कि भारत का आध्यात्मिक जागरण तभी हो सकता है जब उसके धार्मिक और दैवीय स्थानों को उनके पुराने गौरव के साथ बहाल किया जाए। इसलिए इस क्षेत्र में उनके सभी प्रयास हमारे स्थापित धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्रों की महिमा को बहाल करने पर केंद्रित हैं। प्रधानमंत्री ने देश भर में हमारे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों और पवित्र स्थलों के मंदिर पुनर्निर्माण और नवीनीकरण अभियान की शुरुआत की है। वह पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों पर चल रहे सभी मंदिर पुनर्निर्माण प्रयासों की अध्यक्षता करते हैं। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में आधुनिक भारतीय राष्ट्र को उसकी आध्यात्मिक नींव के करीब लाया जा रहा है। भारत उन्हें एक मंदिर निर्माता और एक हिंदू आस्था के राजदूत के रूप में देख रहा है।

रामायण सर्किट, श्रीकृष्ण सर्किट व बौद्ध सर्किट:

            भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ क्षेत्रों को चिन्हित कर उनके चहुमुखी विकास हेतु एक व्यापक योजना केंद्र सरकार ने बनाई है। जिसके अंतर्गत रामायण सर्किट, श्रीकृष्ण सर्किट व बौद्ध सर्किट पर काम तेज गति से जारी है। इन क्षेत्रों में विशेष पर्यटक व तीर्थयात्री रेल गाड़ियां भी चलाई जा रही हैं। पिछले 25 वर्षों से महात्‍मा बुद्ध की परिनिर्वाणस्‍थली कुशीनगर एयरपोर्ट की राह देख रहा था। मोदीजी ने कुशीनगर एयरपोर्ट को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि कुशीनगर बौद्ध सर्किट के अंतर्गत आता है जिसमें नेपाल के लुंबिनी से लेकर बिहार के बोधगया तक का क्षेत्र शामिल है।

विदेशों से लौटीं अमूल्य व पावन मूर्तियाँ:

मोदी सरकार बनने के बाद से 150 से अधिक मूर्तियां विदेश से वापस आईं। जो मूर्तियां वापस आई उनमें उल्लेखनीय हैं मध्‍य प्रदेश से चोरी हुई पैंटेंट लेडी, कश्‍मीर से दुर्गा महिषासुरमर्दिनी, तमिलनाडु से चोरी हुई परमेश्‍वरी व गणेश की प्रतिमा, श्री देवी, पार्वती, भूदेवी, आदि की प्रतिमाएं भी हैं।

अंत में यही कहेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में सांस्‍कृतिक अलख जगाने का ही परिणाम है कि भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदल रही है। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में जो नेता भगवान राम का नाम लेने वालों से पहले चिढ़ते थे फिर कतराते थे, अब वे ही मंदिरों में घंटियां बजाने का नाटक करने लगे हैं। फिरोज़ के पोते और ईसाई माँ के बेटे भी अपना ब्राह्मण गोत्र और जनेऊ दिखाने लगे। निहत्थे रामभक्तों को गोलियों से भूनकर स्वयं को गौरवान्वित समझने वाले भी अब अपने को भगवान कृष्ण का वंशज बताने लगे। धर्म को अफीम मानने वाले वामपंथियों को तो ठौर ही नहीं मिल रहा है। अब वास्तव में भारत सांस्कृतिक अभ्युदय की ओर है।

  **लेखक विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं Email: vinodbansal01@gmail।com**

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