डॉ0 वेद प्रताप वैदिक
कांग्रेस को क्या हो गया है? वह एक स्वस्थ विपक्ष की भूमिका क्यों नहीं निभाना चाहती है? संसद का यह पूरा सत्र ही उसने लगभग बर्बाद कर दिया। उसने ऐसे-ऐसे विधेयकों का विरोध किया, जो उसने स्वयं सत्ता में रहते हुए पेश किए थे। उसने अपने लगाए पौधों को ही उखाड़ने की कोशिश की। दूसरे के चेहरे की चमक मंद करने के लिए क्या यह जरुरी है कि अपना मुंह काला किया जाए? अपना मुंह काला करने से क्या सचमुच सामनेवाले पर कोई असर पड़ता है?
तीन उदाहरण हमारे सामने हैं, जिनसे पता चलता है कि कांग्रेस स्वस्थ विपक्ष की बजाय एक मसखरे के भूमिका में आ गई है। सबसे पहला तो विश्व व्यापार संगठन में मोदी सरकार के दृढ़ रवैये का है। वर्तमान सरकार की मंत्री निर्मला सेतुरामन ने भारतीय किसानों की हित-रक्षा के खातिर विश्व व्यापार संगठन की पेशकश को नकार दिया। यह पहल किसने की थी? यह कांग्रेस सरकार ने की थी। उसी की बात को भाजपा सरकार आगे बढ़ा रही है लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस भाजपा की पीठ ठोकने की बजाय उसकी टांग खीचं रही है।
दूसरा मुद्दा है- बीमा विधेयक का। बीमा-क्षेत्र में विदेशी पूंजी का भाग 49 प्रतिशत तक करने का विधेयक कौन लाया था? कांग्रेस! लेकिन कांग्रेस ही उसे पारित करने में सबसे बड़ी बाधा खड़ी कर रही है, क्योंकि राज्यसभा में उसके समर्थन के बिना उस विधेयक का पास होना बेहद कठिन है याने वह अपने संख्या बल का प्रदर्शन इतनी बेशर्मी से कर रही है कि उसका चरित्र-नाश हो रहा है। उसे इसकी चिंता नहीं है।
इसी प्रकार, संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में ‘सीसेट’ का पर्चा चालू किसने किया? कांग्रेस ने? वही इसका अब आंख मींचकर विरोध कर रही है याने उसका विरोध सिर्फ विरोध के लिए है। उसने हाफिज सईद और मेरी मुलाकात को लेकर दो दिन तक संसद ठप्प कर दी। उनका लक्ष्य मेरा विरोध करना नहीं था। वे मेरे बहाने भाजपा सरकार पर प्रहार करना चाहते थे लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उल्टे उस्तरे से उनकी मुंडाई कर दी। इसी प्रकार अब संसदीय कुंभकर्ण ने करवट ली। 10 साल से खर्राटे भर रहे महान नेता राहुल गांधी अचानक सदन में ‘कुए’ (वेल) में कूद पड़े। उन्हें सांप्रदायिक दंगों के भूत तंग करने लगे।
यह सब क्या बताता है? यही कि कांग्रेस ‘सघन चिकित्सा कक्ष’ में जा पड़ी है। पता नहीं गांधी, नेहरु की यह महान पार्टी इन नकली नेताओं के हाथों कहीं अपने सोलहवें संस्कार की तैयारी तो नहीं कर रही है?