पं. बाबा नंदकिशोार मिश्र
हिंदू महासभा 1939 में ही स्वातंन्त्रय वीर सावरकर द्वारा दिये गये एक सुस्पष्ट आहवान का पुन: उद्घोष करती है कि राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण किया जाए।
यद्यपि हिंदू महासभा के उपरोक्त आदर्श का प्रारंभ में कांग्रेस ने उपहास किया था किंतु 1962 ई. में उसके सामने भी कोई विकल्प जब नही रह गया तो उसे भी आधे मन से हिंदुओं का सैनिकीकरण करने की नीति का अनुगमन करना ही पड़ा।
हिंदू महासभा के उद्घोष का द्वितीय अंश अर्थात राजनीति का हिंदूकरण यद्यपि अपनी धर्म निरपेक्षता की लंबी चौड़ी बड़ हांके जाने के कारण कांग्रेस कदापि स्वीकार नही करेगी किंतु देश की रक्षा काा यही एकमात्र मार्ग है। इतना नही देश की राजनीति को हिन्दूमय बनाने के उपरांत ही देश का सैनिकीकरण भी प्रभावी सिद्घ हो सकेगा। केवल हिंदू सभा ही यह कार्य करने में सफल हो सकती है और उसकी नीति की सत्यता को भी आज तक के घटनाक्रम ने सिद्घ कर दिया है।
हिन्दू महासभा की चेतावनियां
अतीत में देश की जनता ने हिंदू महासभा द्वारा समय समय पर दी गयी चेतावनियों और सुभावों की उपेक्षा की है, जिसका परिणाम राष्ट्र के लिए विनाशकारी ही रहा है। यदि जनता ने हिंदू महासभा की नीति और कार्यक्रम को अपनाया होता तो पाकिस्तान कदापि अस्तित्व में न आ पाता।
1. हिंदू महासभा ने ही देश को पृथक मतदान की प्रणाली के संबंध में चेतावनी दी थी और हिंदू महासभा के नेता धर्मवीर डाक्टर मुंजे ने ही कांग्रेस द्वारा किये गये लखनऊ पैक्ट का विरोध किया था, जिनमें मुसलमानों को अधिमान दिया था। महासभा के ही एक महान नेता भाई परमानंद ने 1932 में हुए गोलमेज सम्मेलन के अवसर पर राष्ट्र की राजनीति में साम्प्रदायिकता का विष घोलने के प्रयास में अवरोध डाला था। वस्तुत: कांग्रेस द्वारा पृथक मतदान को स्वीकृति प्रदान करना ही पाकिस्तान की आधार शिला सिद्घ हुआ है।
2. 1934 ई. में हिंदू महासभा ने ही साम्प्रदायिक निर्णय का विरोध किया था किंतु अंततोगत्वा कांग्रेस ने उसे स्वीकार ही नही किया, अपितु क्रियान्वित भी कर दिखाया।
3. हिंदू महासभा ने 1935 के सुधार अधिनियम में प्रस्तुत की गयी संघीय व्यवस्था को स्वीकार करन्ने की मांग की थी किंतु कांग्रेस अपने विकृत दृष्टिकोण के कारण मिस्टर जिन्ना के हाथों में खेल गयी तथा उन्सने 1935 के भारत सरकार अधिनियम के संघीय अंश को अस्वीकार कर दिया और उसकी इसी भूल ने पाकिस्तान का पथ प्रशस्त कर दिखाया।
4. 1939 ई. में ही हिंदू महासभा देश की जनता को शेख अब्दुल्ला और जम्मू कश्मीर स्थित उनके अनुगामियों के घृणित इरादों से सतर्क कर दिया था किंतु कांग्रेस उनके हाथों में खेलती रही।
इतना ही अपितु 1947 ई. में जब पाकिस्तान व मुजाहिदों का मुखौटा ओढक़र कश्मीर पर आक्रमण किया तो केवल हिंदू महासभा ने ही सरकार को यह चेतावनी दी कि वह शेख के हाथों में सत्ता न सौंपे अपितु उस सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य में सैनिक शासन लागू कर दे। किंंतु यह चेतावनी भी उपेक्षित रही। हिंदू महासभा ने पाकिस्तान के आक्रमण का मामला संयुक्त राष्ट्र में उपस्थित न करने तथा युद्घ विराम न करने की भी सरकार से मांग की। हिंदूमहासभा ने आह्वान किया कि भारत को युद्घ विराम आदि के चक्कर में न पड़ते हुए अपने अंचलों को पुन: अपने अधिकार में लेना चाहिए।
हिंदूमहासभा ने सर्वथा अनावश्यक जनमत संग्रह के प्रस्ताव का भी विरोध किया किंतु सरकार ने इस सतर्क वाणी पर कोई ध्यान नही दिया। इतना ही नही हिंदू महासभा ने 1953 ई. में कश्मीर को प्रथक संवैधानिक स्तर देने के विरोध में आंदोलन भी चलाया किंतु सरकार ने इस व्यवस्था में निहित खतरों पर ध्यान देने के स्थान पर हजारों महासभाई कार्यकर्ताओं और समर्थकों को कारागारों में डाल दिया।
इस बात पर विशेष बल देना आवश्यक नही है कि यदि हिंदूमहासभा द्वारा विगत तीस वर्षों में दी गयी चेतावनियों पर राष्ट्र और सत्तारूढ़ दल ने ध्यान दिया होता तो आज देश का इतिहास किसी और ढंग पर ही लिखा जाता।
5. हिंदूमहासभा प्रारंभा से ही सैनिकीकरण की पक्षपाती है। हिंदू महासभा के 1928 ई. के अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण में भी डा. मुंजे ने सैनिकीकरण की आवश्यकता प्रतिपादित की थी। तदुपरांत वर्षानुवर्ष हिंदूमहासभा द्वारा देश के युवकों के सैनिकीकरण पर बल दिया जाता रहा। डाक्टर बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने ही देश के युवकों को सैनिक प्रशिक्षण दिये जाने की दृष्टि से नासिक में भौंसला मिलिट्री स्कूल की भी स्थापना की। गोलमेज सम्मेलन में जहां हिंदूमहासभा के प्रतिनिधि डाक्टर मुंजे ने सेना के भारतीयकरण की मांग की वहां कांग्रेस दल के प्रवक्ता श्री मोहनदास करमचंद गांधी ने यहां तक कह दिया कि स्वतंत्र भारत को सीमाओं की सुरक्षा के लिए भी सेना रखने की आवश्यकता नही रहेगी।
द्वितीय महायुद्घ के दिनों में हिंदूमहासभा ने राष्ट्र के सैनिकीकरण का आह्ववान दिया। हिंदूमहासभा के नेता वीर सावरकर ही भारत के ऐसे नेता थे जिन्होंने कांग्रेस द्वारा चलाये जा रहे जन अभियान की थी चिंता न करते हुए सैनिकीकरण का समर्थन किया।
स्वतंत्रता की प्राप्ति के उपरांत भी वीर सावरकर ने देश की सुरक्षा की दृष्टि से जनता और देश के युवकों से एक सुदृढ़ सेना के गठन पर बल दिया। किंतु उनकी इन चेतावनियों पर कोई ध्यान नही दिया गया और सरकार के नेतागण शांति और पंचशील के मोह जाल में फंसे रहे। संसद के केवल हिंदूमहासभा के प्रतिनिधयों ने ही समुचित स्तर पर देश की सुरक्षा सिद्घांत बल दिया।
6. हिंदूमहासभा सुदीर्घ कालखंड से सरकार को असम में नागा उपद्रवों के संबंध के सतर्क करती आई है। 1930 में भी इस संबंध में हिंदू महासभा ने ही राष्ट्र को सतर्क किया तो 1940 ई. में जब वीर सावरकर इस प्रदेश में गये तो उन्होंने आने वाले संकटों का अनुमान लगाया तथा सरकार को उनके विरूद्घ चेतावनी भी दी।