मोदी की ‘नीलक्रांति’
देश के एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में आज तक सम्मानित रहे लालबहादुर शास्त्री ने जब देश का नेतृत्व किया था, तो उन्होंने देश को ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा देकर देश में जवान और किसान की महत्ता को स्थापित करने पर बल दिया था। उनका मानना था कि देश की सीमा पर जवान और देश के भीतर किसान मिलकर ही देश में वास्तविक शांति एवं समृद्घि की बयार बहाने में सक्षम होते हैं। शास्त्री जी ने अपने संक्षिप्त प्रधानमंत्रित्व काल में जितना किया चाहे वह थोड़ा किया पर किया मन से। इसीलिए इस पीढ़ी के लोग और यह देश उनकी सच्ची भावना का आज तक सम्मान करता है। बाद में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने इस देश की ‘कमान’ संभाली तो उन्होंने देश में ‘जय जवान-जय किसान’ के साथ-साथ ‘जय विज्ञान’ का उद्घोष भी सम्मिलित कर लिया।
ऐसा नही था कि जब शास्त्री जी थे तो उस समय देश को ‘जय विज्ञान’ की आवश्यकता नही थी या शास्त्री जी मानवीय जीवन में ‘विज्ञान’ की उपयोगिता और महत्ता से परिचित नही थे। ‘जय विज्ञान’ की आवश्यकता तो उस समय भी थी और शास्त्रीजी भी ‘विज्ञान’ की उपयोगिता और महत्ता से भली भांति परिचित थे, परंतु सही बात ये है कि उस समय देश को स्वतंत्र हुए अधिक समय नही हुआ था, इसलिए हमारी विवशता थी कि हम ‘जय-जवान और जय किसान’ तक ही सीमित रहते। पर जब अटल जी आए तो उस समय तक देश ने कई क्षेत्रों में अप्रत्याशित उन्नति कर ली थी, विज्ञान की आवश्यकता की अनुभूति देश का बच्चा-बच्चा करने लगा था और विज्ञान देश की अनिवार्यता बन गया था। देश की सशस्त्र सेनाओं के लिए आधुनिकतम हथियारों की उपलब्धता सुनिश्चित कराना आवश्यक हो गया था, इसलिए अटल जी ने समय को समझा और ‘जय विज्ञान’ को जय जवान और जय किसान के साथ लाकर बिठा दिया।
अब मोदी ने सत्ता प्राप्त करते ही मानसून की जटिलताओं का सामना किया है। पूरे देश में मानसून की प्रगति कहीं मध्यम तो कहीं सामान्य से भी कम रही है। परंतु मोदी सरकार का सुप्रबंधन देखिए कि देश में मानसून चाहे देरी से ही सक्रिय हुआ परंतु देश में किसी भी व्यक्ति को बनावटी महंगाई पैदा करने कराने की अनुमति नही दी गयी। यदि मोदी के स्थान पर देश में अब भी मनमोहन सरकार ही काम कर रही होती तो परिस्थितियां जटिलतम हो सकती थीं। अब ऐसी परिस्थितियों में मोदी ने किसानों को समृद्घ करने के लिए देश में ‘श्वेत क्रांति’ और ‘हरित क्रांति’ के पश्चात ‘नीलक्रांति’ कराने की भावना पर बल दिया है।
श्री मोदी ने प्रयोगशालाओं में विकसित कृषि तकनीक को खेती तक ले जाने तथा फसलों का अधिक उत्पादन करने के साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों से आगे आने की अपील की है। प्रधानमंत्री मोदी का सपना है कि हरित क्रांति और ‘श्वेत क्रांति’ के पश्चात देश में मत्स्य पालन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बड़ी संभावनाएं हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 86वें स्थापना दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने विगत 29 जुलाई को यह महत्वपूर्ण बात कही है। वह चाहते हैं कि देश की कृषि योग्य भूमि को विस्तार देना तो असंभव है पर देश में जल्दी तैयार होने वाली फसलों को किसानों द्वारा अधिक उत्पादन करने के लिए अपनाना होगा।
वास्तव में देश में ‘नीलक्रांति’ के माध्यम से (अर्थात मत्स्य पालन के माध्यम से) देश की निर्यात क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। किसी भी देश की आर्थिक समृद्घि का पैमाना ही ये है कि वह देश आयात अधिक करता है या अधिक निर्यात करता है। निर्यातक देश होना एक अच्छी बात है और आयातक देश होना घाटे का सौदा है। यदि हम मछली उत्पादन के माध्यम से विदेशी मुद्रा का अर्जन करते हैं तो उस विदेशी मुद्रा को ईमानदारी से देश के किसानों पर और उनकी समृद्घि पर ही व्यय करना हमारा राष्ट्रीय संकल्प होना चाहिए। यद्यपि मांसाहार और जीव हत्या भारत की संस्कृति के विरूद्घ है, परंतु जिन देशों में अन्नोत्पादन संभव ही नही है, उनके लिए हम अच्छी मछली उपलब्ध करा सकते हैं। ऐसा हमारे कुछ नीति विशेषज्ञों का मानना है। श्री मोदी को किसानों को ही नही, अपितु हर व्यक्ति को या देशवासी को ‘नीलक्रांति’ का अर्थ जलक्रांति के रूप में स्थापित कर समझाना चाहिए। ‘जलक्रांति’ से समुद्री जीवों की रक्षा तो हो ही, साथ ही देश की प्रदूषित होती जा रही नदियों का जल संरक्षण और उनके स्वरूप का संरक्षण भी इसमें सम्मिलित हो। नदियों से व्यक्ति का और अन्य बहुत से जीवों का संरक्षण होता है, पर आदमी ने नदी भक्षण अभियान जारी कर दिया है। जिससे कितनी ही नदियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। हर व्यक्ति को ‘जल क्रांति’ के लिए अभी से तैयार करने का समय आ चुका है। यदि इसमें देर की गयी तो परिस्थितियां बड़ी ही विकट बन सकती हैं।
प्रधानमंत्री का यह कहना उचित ही है कि हमारे वैज्ञानिक कृषि तकनीक को प्रयोगशाला से खेतों तक ले जाएं। हमारी एक समस्या ये भी है कि जिन तकनीकों का आविष्कार हम कर लेते हैं, उसको अपने पात्र व्यक्ति के हाथों तक जाने में या उसके समझने में बहुत देर हो जाती है। हम परंपरागत खेती को प्राथमिकता देते हैं, और नई तकनीकी से लाभ उठाने में कतराते हैं। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण ये है कि हमारे तकनीक विशेषज्ञ नई तकनीक का आविष्कार अपनी भाषा में नही करते हैं, और ना ही उस नई तकनीक की प्रयोगविधि ही अपनी भाषा में समझायी बतायी जाती है। अत: नई तकनीक और तकनीकी ज्ञान को अपनी देशी भाषा में जाकर लोगों को बताना समझाना आवश्यक है। यदि यह व्यवस्था देश की आजादी के पहले दिन से लागू हो जाती तो बहुत से किसानों को ‘आत्महत्या’ करने से रोका जा सकता था। हरितक्रांति को हरी-भरी रखने, ‘श्वेतक्रांति’ को सफल करने हेतु ‘जलनीति’ की आवश्यकता है। जिसे नीलक्रांति से आगे बढ़ाकर जलक्रांति के माध्यम से कम पानी में अधिक से अधिक फसल उगाने की एक युगांतरकारी क्रांति के रूप में राष्ट्रीय पटल पर स्थापित किया जाना चाहिए। यह सौभाग्य की बात है कि इस समय देश मोदी को ‘समय’ देना चाहता है और मोदी देश को ‘समय’ दे रहे हैं। ‘समय’ दोनों के अर्थ को समझने का है।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।