ओ३म्
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हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डौन सिटी की ओर से ‘अवसरानुकूल भजन’ पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। पुस्तक की संकलनकत्र्री बहिन मिथलेश आर्या हैं। प्रकाशक महोदय का डाक से सम्पर्क करने का पता है: हितकारी प्रकाशन समिति, ब्यानिया पाड़ा, द्वारा-‘अभ्युदय’ भवन, अग्रसेन कन्या महाविद्यालय मार्ग, स्टेशन रोड, हिण्डौन सिटी (राजस्थान)-322230। प्रकाशक महोदय ऋषिभक्त श्री प्रभाकरदेव आर्य जी से पुस्तक प्राप्त करने के लिए मोबाइल फोन सम्पर्क नम्बर हैं 7014248035 एवं 9414034072। पुस्तक को श्री ऋषिदेव जी, www.vedrishi.com चलभाष: 9818704609 सहित श्रीगणेशदास-गरिमा गोयल, वैदिक साहित्य प्रतिष्ठान, 4058-59, बिजलीघर के सामने, नया बाजार, दिल्ली-110006 (सम्पर्क नम्बर 9329125396 एवं 9212458841) से भी प्राप्त किया जा सकता है। पुस्तक की पृष्ठ संख्या 72 तथा मूल्य रुपये 25.00 है।
पुस्तक की भूमिका में भजनों का संकलन करने वाली बहिन मिथलेश आर्या जी ने बताया है कि एक गृहस्थिन होने के नाते उनका महिलाओं के कार्यक्रमों में जाना रहा है। चाहे वह विवाहों के अवसर पर महिला संगीत हो या पारिवारिक भजनों का कार्यक्रम हों अथवा मनोरंजन के लिये आयोजित महिलाओं के सामूहिक कार्यक्रम रहे हों। इनके अन्तर्गत उन्हें अनुभव हुआ कि मर्यादा और शालीनता का पूर्ण निर्वहन नहीं होता है। लम्बे समय से उनके मन में व्याकुलता रही। फिर विचार आया कि वह स्वयम् ही क्यों न इस प्रकार के भजनों का संकलन करें जो अवसर के अनुकूल दिशा देने वाले तथा शालीन और मर्यादित हों। इसी विचार का मूर्तरूप पुस्तक ‘अवसरानुकूल भजन’ है। बहिनजी ने आशा व्यक्त की है कि इस पुस्तक के भजनों से सकारात्मकता की उत्पत्ति होगी और कार्यक्रम सुन्दर व मर्यादित होंगे।
पुस्तक का प्रकाशकीय ऋषिभक्त श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने लिखा है जिसमें वह बताते हैं कि गायन से जीवन में सरसता व उत्साह-उमंग उत्पन्न होता है। जीवन में जब-जब निराशा या विपरीत स्थितियां आयें तब यह स्कूर्ति प्रदान कर अन्तर में कुछ कर सकने की शक्ति भरता है। पशु-पक्षी, वृक्षों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। जिस प्रकार का गायन होता है उसके अनुरूप प्रभाव इन पर पाया गया है। प्राचीन काल में राजा-महाराजा अपनी सेना को उत्साहित व शौर्य प्रदर्शन के लिये तत्पर करने हेतु कवियों का समावेश करते थे। निराश, हताश व टूटे हुए जनों को आशा की किरण दिखाता है, गायन। जिस परिवार में प्रातःकाल से लोरियों की ध्वनि निकलती हैं उसके बालक सुसंस्कार लेकर अपना, परिवार, समाज, देश का उज्जवल भविष्य निर्माण करते हैं। हमारी मान्या बहिन मिथलेश जी आर्या ने परिवारों में मांगलिक अवसरों पर गाये जाने वाले अनुपयोगी भजन, गीतों के स्थान पर सारगर्भित व प्रेरणा देने वाले भजन, विवाहों के लिये बरनी, बेटी, को सुशिक्षा, पौली पर गाने योग्य गीत व विभिन्न सामाजिक अवसरों के लिये उपयुक्त गीतों का संकलन किया है। प्रारम्भ में सब के लिये प्रभुभक्ति के भजन लेकर तथा अनेक प्रसंगों के लिये भजनों का संकलन किया है।
पुस्तक में विविध विषयों के 129 भजन दिये गये हैं। पुस्तक से एक पुराना लोकप्रिय भजन प्रस्तुत कर रहे हैं जिसे कई दशक पूर्व हम कुछ पुराने भजनोपदेशकों से सुनते थे। भजन कविरत्न श्री प्रकाश जी की रचना है।
पास रहता हूं तेरे सदा मैं अरे,
तू नहीं देख पाये तो मैंक्या करूं?
मूढ! मृग-तुल्य चारों दिशाओं में तू,
ढूंढ़ने मुझको जाये तो मैं क्या करूं?
कोसता, दोष देता मुझे है सदा,
मुझको यह ना दिया मुझको वह ना दिया।
श्रेष्ठ सबसे मनुज तन तुझे दे दिया,
सब्र तुझको न आये तो मैं क्या करूं?
तेरे अन्तःकरण में बिराजा हुआ,
कर न यह पाप करता हूं संकेत मैं।
लिप्त विषयों में हो सीख तेरी भली,
ध्यान में तू न लाये तो मैं क्या करूं?
जांच अच्छे-बुरे कर्म की हो सके,
इसलिए बुद्धि मैंने तुझे दी अरे।
किन्तु तू मन्दभागी! अमृत छोड़कर,
घोर विष आप खाये तो मैं क्या करूं?
फूल-फल-शाक-मेवा व दुग्धादि सम,
दिव्य आहार मैंने तुझे हैं दिये।
तू तम्बाकू, अमल-मद्य मांसादि खा,
रोग तन में बसाये तो मैं क्या करूं?
अति मनोहर, सरस-भव्य-दृश्यों भरा,
विश्व सुन्दर प्रकाशार्य मैंने रचा।
अपनी करतूत से स्वर्ग वातावरण,
नरक तू ही बनाये तो मैं क्या करूं?
पुस्तक उपयोगी एवं संग्रहणीय है। हमें आशा है कि पाठक इस पुस्तक का स्वागत करेंगे और संकलनकत्र्री बहिन मिथलेश आर्या जी तथा प्रकाशक श्री प्रभाकरदेव आर्य जी का उत्साहवर्धन करेंगे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य