*महाशिवरात्रि पर ऋषि जागरण के साथ भारत के भाग्य का जागरण हुआ था- आचार्य वीरेन्द्र विक्रम*

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*महाशिवरात्रि पर्व एवं महर्षि दयानन्द बोधोत्सव धूमधाम से सम्पन्न*

*”त्रेतवाद का सिद्धान्त” महर्षि दयानन्द सरस्वती की अनुपम देन है-चौधरी सत्यवीर*

गाजियाबाद,मंगलवार,01/03/2022 को आर्य केंद्रीय सभा महानगर गाजियाबाद के तत्वाधान में महाशिवरात्रि पर्व पर महर्षि दयानन्द बोधोत्सव का भव्य कार्यक्रम आर्य समाज राज नगर में धूमधाम से सम्पन्न हुआ जिसमें मुख्य वक्ता आचार्य वीरेन्द्र विक्रम (दिल्ली)ने बताया कि महाशिवरात्रि पर ऋषि जागरण के साथ भारत के भाग्य का जागरण हुआ था।उनके कितने जन्मों की तपस्या थी जो उनको जन्मजात वैराग्य प्राप्त हुआ।ऋषि दयानंद ने इस देश से पाखंड और अंधविश्वास को मिटाने और सत्य का प्रचार प्रसार करने के लिए अपना पूरा जीवन लगाया हम सब भी आज ऋषि बोधोत्सव के अवसर पर यह संकल्प लें कि हम भी अपने जीवन से भ्रष्टाचार अंधविश्वास और पाखंड को हटाएंगे और सत्य के रास्ते पर चलकर अपने जीवन को प्रशस्त करेंगे।

बिजनौर से पधारे कुलदीप आर्य जी एवं साथी कलाकारों ने भजनोपदेश के माध्यम से ऋषि महिमा का गुणगान किया, जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर हो गए।

मुख्य अतिथि ओम प्रकाश आर्य (प्रसिद्ध समाज सेवी एवं उद्योपति) ने ऋषि दयानंद के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा संसार का उपकार करना आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य है के लिए स्वामी जी ने आर्य समाज की स्थापना की ओर वेदों की लोटो का नारा दिया ताकि विश्व में स्थाई रूप से शांति स्थापित हो सके।

सभा की अध्यक्षता आर्य समाज वृन्दावन गार्डन के प्रधान श्री कृष्ण कुमार यादव ने की।उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द जी ने अपनी इन मान्यताओं को बिना किसी की चुनौती के स्वयं ही अपने ग्रन्थों में प्रस्तुत किया है जिससे अद्वैतवाद खण्डित हो जाता है और त्रैतवाद अखण्डित रहता है वा सत्य सिद्ध होता है।

सभा का कुशल संचालन आर्य केंद्रीय सभा गाजियाबाद के यशस्वी प्रधान श्री सत्यवीर चौधरी ने करते हुए उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने वेद,वेदांग, उपांग,उपनिषद सहित समस्त उपलब्ध प्राचीन साहित्य का अध्ययन किया था जिससे वह जान सके कि ईश्वर का जीवात्मा और प्रकृति से पृथक स्वतन्त्र अस्तित्व हैं।ईश्वर-जीव-प्रकृति की एक दूसरे से भिन्न पृथक व स्वतन्त्र सत्ताओं को ही त्रैतवाद के नाम से जाना जाता है।ये तीनों मिलकर ही सृष्टि को बनाते व चलाते हैं।

विशिष्ठ अतिथि राजेंद्र सिंह ने कहा महर्षि दयानन्द ने सच्चे शिव की प्राप्ति हेतु मानव जाति का समग्र कल्याण वेद के प्रचार ओर प्रसार से किया।उन्होंने युवाओं को आर्य समाज से जोड़ने का आह्वान किया।

डा वीरपाल विद्यालंकार ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी ने अपनी इन मान्यताओं को बिना किसी की चुनौती के स्वयं ही अपने ग्रन्थों में प्रस्तुत किया है जिससे अद्वैतवाद खण्डित हो जाता है और त्रैतवाद अखण्डित रहता है वा सत्य सिद्ध होता है।

सभी विद्वानों और श्रोताओं का धन्यवाद स्वागताध्यक्ष श्री श्रद्धानन्द शर्मा ने किया।

डा. वीरेन्द्र नाथ सरदाना प्रधान आर्य समाज राज नगर ने सभी विद्वानों का स्वागत किया।

इस अवसर पर मुख्य रूप से सर्वश्री श्रद्धानंद शर्मा, सन्त लाल मिश्रा,विजेंद्र सिंह जगबीर सिंह, सुभाष चंद गुप्ता,गोरव आर्य श्रीमती कौशल गुप्ता,वंदना अरोड़ा,सुधीर धमीजा,प्रमोद चौधरी,सुभाष शर्मा,चौधरी मंगल सिंह,राम निवास शास्त्री,वीके धामा,डा प्रतिभा सिंघल,प्रवीण आर्य व महानगर की समस्त आर्य समाजों के प्रतिनिधियों ने बड़ चढ़ कर भाग लिया।

शांतिपाठ व प्रसाद वितरण के साथ समारोह सम्पन्न हुआ।

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