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वैदिक सम्पत्ति तृतीय खण्ड, अध्याय – चितपावन और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे…

जिस प्रकार भारत देश में श्री नामी देवी के अंशों से दुर्गा, काली, भवानी, भैरवी, चण्डी, अन्नपूर्णा और चामुण्डा आदि रूप बनाए गए हैं, उसी प्रकार मिस्र देश में भी आदिमाया इसिस के अंशों से मिनर्वा, जूनो, वेनसा,ह्वीआ, हेकेटी, डायन और ह्या आदि रूप माने जाते हैं। यहां वाले जिस प्रकार चंदन, अक्षत, धूप, दीप, मांस, रुधिर से अपनी देवियों की पूजा अर्चना करते हैं, ठीक उसी प्रकार मिश्र वाले भी करते हैं। जिस तरह यहां की देवियों के चतुर्भुज, अष्टभुज और सहस्त्रभुज आदि रूप हैं, उसी तरह मिश्र की प्रतिमाओं के भी हैं। जिस प्रकार के अस्त्र-शस्त्र यहां की देवियां रखती हैं, वैसे ही मिस्र की देवियों के पास भी है। जिस तरह यहां की देवी ने महिषासुर – भैंस के से मुंहवाले राक्षस को मारा है। वैसे ही मिस्र की इसिस – मिनेर्वा देवी ने भी ‘हीकस – हिपोपोटेमस’ नामी (दरियाई घोड़े के से मुंहवाले) राक्षस को मारा। जिस प्रकार के नवरात्र यहां होते हैं, ठीक वैसे ही नवरात्रि का उत्सव मिश्र में भी होता है। जिस तरह उत्सव में यहां उदकपूर्ण कुम्भ रक्खा जाता है, वैसे ही मिस्र में भी रखा जाता है। वहां इस घट कों के ‘केनाव’ कहते हैं। जिस प्रकार यहां घट पर स्वास्तिक आदि चिन्ह बनाए जाते हैं,वैसे ही मिश्र वाले भी स्वास्तिक,द्वित्तव, त्रिकोण, त्रिपुण्ड्र तथा त्रिशूल आदि चिन्ह बनाते हैं।
इस समता के अतिरिक्त देवियों की उत्पत्ति के विषय में यहां एक कथा प्रचलित है।उस कथा का सार इस प्रकार है कि, दक्ष की लड़की पार्वती थी। उसका विवाह शिव के साथ हुआ। एक दिन उसके पिता ने अनेक पशुओं की बलि दी, किन्तु इस बलिदान के समय अपनी कन्या को न बुलाया। पर कन्या वहां तो खुद गई। कन्या ने वहां जाकर जब अपने पति का भाग ने देखा, तो उसने प्राण त्याग दिया। इस पर शिव ने क्रोध किया और वीरभद्र नामी एक भयानक जन्तु को पैदा कर और वहां भेजकर दक्ष का सिर कटवा लिया। दक्ष के मरने पर शिव अपनी स्त्री के शव को लेकर नाचने लगे। इसी बीच में विष्णु ने अपने चक्र से उस स्त्री- सव के 51 टुकड़े कर डाले और अनेक स्थानों में फेंक दिये। शब टुकड़े कामाक्षी, मीनाक्षी आदि नाम से मातापुर और कोलकाता आदि में उग्रपीठ बन गए। इनमें सबसे प्रधान कामाक्षी है। इसका काम – अक्षी नाम इसलिए पड़ा है कि, यह उस शव की काम की आंख अर्थात गुप्तांग है। यहां कथा ज्यों की त्यों दूसरे नामों के साथ मिश्री लोगों में भी प्रचलित है। उनके यहां लिखा है कि, उस इसिस के टुकड़े मिनेर्वा आसरपायन, डायना आदि हो गये और इन-इन नामों से प्रख्यात हुए। इस कथा की श्रंखला तब बिल्कुल ही समझ में आ जाती है, जब हम दत्तात्रेय के जन्म की कथा को ध्यान से पढ़ते हैं।
दत्तात्रेय की कथा पुराणों के अनेक भागों के जोड़ने से जो रूप बनाती है, वही रूप में मिश्रियों की तमाम कथा के मिलान से भी बनता है। दत्तात्रेय के इतिहास के तीन भाग हैं। दत्तात्रेय किस से पैदा हुए, जिससे दत्तात्रेय पैदा हुए, वह किस से पैदा हुए और जिससे वे सब पैदा हुए, वह कौन हैं ? यहां हम तीनों भागों को लिखते हैं। देवी भागवत में लिखा है कि, श्रीपूरनिवासिनी देवी ने अपने हाथ को घिसा। घिसने से हाथ में छाला पड़ गया। छाला फूटा। उस छाले से एक लड़का पैदा हुआ, जिसका नाम ब्रह्मा था। माता ने उससे कुचेष्टा की पर उसने माता का कहना न माना। माता ने उसे भस्म कर दिया और हाथ रगड़ कर फिर एक लड़का पैदा किया, जिसका नाम विष्णु था। इससे भी इच्छा प्रकट की, किन्तु उसने भी न माना और भस्म कर दिया गया। जब तीसरी बार देवी ने फिर हाथ रगड़ा और छाले से शिव नामक लड़का पैदा किया। इस शिव से भी आज्ञा की गई। शिव ने कहा कि, पहले यह बताइए कि, यह दोनों राख की ढेरियां क्या है। माता ने कहा कि ये दोनों ढेरियाँ तेरे बड़े भाइयों की है। शिव ने कहा, मां ! इन्हें जिला दे। माता ने उन दोनों को जिला दिया। देवी के यही तीनों पुत्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामी विख्यात देवता हुए। इन तीनों देवताओं से दत्तात्रेय कैसे उत्पन्न हुए, यह कथा इस प्रकार है।
क्रमश:

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