शहीद- ए -आजम भगत सिंह की मां”
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अनादि काल से भारत माता वीरों की जननी रही है | यह एक काव्यात्मक अलंकारिक कथन है निसंदेह भारत मां वीरों को पैदा करती है लेकिन वीरों को जनने का यह पवित्र महान कार्य भारत माता अपनी पुत्रियों को सौंप देती है | ब्रिटिश साम्राज्यवादी भारत में ऐसी ही भारत माता की एक महान पुत्री की कोख से जन्म लिया सच्चे व सार्थक अर्थों में राष्ट्रपुत्र शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने|
मुझे राष्ट्रपिता की उपाधि का तो पता नहीं लेकिन यदि कोई उपाधि इस देश में घोषित होनी चाहिए तो वह है भगत सिंह की माता विद्यावती को राष्ट्रमाता की उपाधी से अलंकृत करना| माता विद्यावती इस उपाधि की केवल इस आधार पर हकदार नहीं है कि उन्होंने भगत सिंह जैसे अमर क्रांतिकारी वीर को जन्म दिया|
शहीदे आजम भगत सिंह की शहादत से पूर्व तथा इसके पश्चात ऐसे अनेकों अनेक भीषण कष्ट मां विद्यावती ने उठाए जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते , वर्णन तो दूर रहा|
18 98 ईस्वी में मां विद्यावती अविभाजित पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव में आर्य समाजी सरदार अर्जुन सिंह के बड़े पुत्र सरदार किशन सिंह को बिहा कर आई विद्यावती ,सरदार किशन सिंह का विवाह सिख तरीके से ना होकर वैदिक रीति से हुआ इतना ही नहीं सरदार किशन सिंह ने वैदिक विवाह के मंत्र खुद भी पढ़े सारे गांव में चर्चा हो गई थी कि दरियाम सिंह का दामाद मंत्र बोलता है | सरदार बरियायाम सिंह की यह सुपुत्री जब सरदार अर्जुन सिंह के घर में आई तो उसे यह अनुभव करते ज्यादा देर नहीं लगी कि यह परिवार गांव के अन्य परिवारों से अलग ,असाधारण है|यह परिवार क्रांतिकारी विद्रोहियों का अड्डा था | यह परिवार ऋषि दयानंद सरस्वती की विचारधारा व आर्य समाज के प्रभाव से रंगा हुआ था अर्थात देशभक्त कुर्तियों पाखंड अंधविश्वास से मुक्त वैदिक राष्ट्रवादी था | विद्यावती के पति सरदार किशन सिंह के दो भाई थे सरदार स्वर्ण सिंह तथा सरदार अजीत सिंह… दोनों ही आला दर्जे के क्रांतिकारी | इनमें सरदार स्वर्ण सिंह की तो मौत अंग्रेजों द्वारा दी गई यातनाएं से जेल में लंबे कष्ट भोग कर तपेदिक की बीमारी से हुई… छोटे देवर सरदार अजीत सिंह 40 साल तक इटली जर्मनी वर्मा अमेरिका में देश की आजादी का बिगुल फूंकते रहे| ऐसे में सरदार अर्जुन सिंह का यह भरा पूरा परिवार संपन्न संस्कारी परिवार बिखर गया सरदार किशन सिंह का अधिकतर समय अंग्रेजों द्वारा लगाए गए भाइयों व पिता के मुकदमे की पैरवी में ही जाता था बीच-बीच में वह भी आंदोलनों में जेल जाते रहे| घर में बीमार बुजुर्ग ससुर एक विधवा देवरानी एक ना विधवा ना सुहागन देवरानी जो अजीत सिंह की पत्नी थी ऐसा इसलिए क्योंकि अजीत सिंह का 20 वर्षों तक परिवार को कोई अता पता नहीं रहा वह कहां रहे? परिवार में सभी जिम्मेदारियों का भार माता विद्यावती पर आ गया|
पति के विवाह के पश्चात 1905 में सुख की घड़ी आई जब सरदार भगत सिंह के बड़े भाई जगत सिंह का जन्म हुआ लेकिन त्रासदी तो देखिए 11 वर्ष की आयु में जगत सिंह का सन्निपात बुखार में निधन हो गया| काल का यह निष्ठुर प्रहार यहीं नहीं रुका 1907 में जन्मा इस माता का दूसरा पुत्र भगत सिंह जिसे यह भागो वाला कहती थी 23 वर्ष की भरी नौ जवानी में फांसी पर चढ़ा दिया गया | विद्यापति का पूरा जीवन लाहौर से जालंधर जालंधर से दिल्ली की यात्रा में ही बीता| भगत सिंह की शहादत के पश्चात 1931 से लेकर 1940 तक जो विद्यावती पर गुजरी वह किसी पर नहीं गुजरी पुश्तैनी घर में डकैती पड़ गई रावी नदी की बाढ़ में दो बार घर बह गया चार बार विद्यावती को सांप ने काटा अलग-अलग जगह पर| एक बार माता विद्यावती कि खड़ी फसल में आग लगा दी गई षड्यंत्र के तहत जिसमें गांव के ही किसी व्यक्ति का हाथ था |
लेकिन यह वीरमाता अनेक मुसीबतों को हंसकर सह गई उफ तक नहीं किया | भगत सिंह की शहादत के बाद भगत सिंह के छोटे भाई कुलबीर सिंह कुलतार सिंह 7 साल जेल में रहे | इस दौरान भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह को फालिस मार गया… रोग सैया पर रहते हैं उनकी कष्टदायक मौत हुई जिनकी सेवा भी विद्यावती न हीं तन मन धन से की |
जब देश 1947 में आजाद होता है तो अजीत सिंह लंबा निर्वासन काटकर वापस आते हैं लेकिन देश विभाजन की खबर के सदमे को स्वीकार नहीं पाते उनकी हृदय गति रुकने से मौत हो जाती है भगत सिंह का प्रेरणा स्रोत उसका चाचा अमर क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह चिर निंद्रा में विलीन हो जाता है|
इतने कष्ट भोगने के पश्चात अब माता विद्यावती के पास अपने प्यारे भगत की केवल यादें ही रह गई थी| अक्सर सपने में वह भगत सिंह को देखती थी| भगत सिंह की यादों को वह खुलकर लोगों के साथ, नागरिक संगठनों के साथ बांटती थी| 9 मार्च 1965 को उज्जैन मध्य प्रदेश के नागरिकों के निमंत्रण पर वह वहा गई| भगत सिंह पर लिखी गई कविताएं और गीत गाए गए वातावरण मार्मिक हो गया कि लोग फूट-फूट कर रोने लगे| माता विद्यावती ने मंच से खड़े होकर लाड के स्वर में कहा तुम लोग रोते क्यों हो ?आज तो भगत सिंह का विवाह हो रहा है देखो कितना अच्छा मंडप है फूलों की कितनी सुंदर झालरी लटक रही है बिजली जगमगा रही है ,कवि लोग सेहरा पढ़ रहे हैं घोड़ी गाए जा रही है इसी से तो कहती हूं भगत सिंह का विवाह हो रहा है फिर तुम लोग रो क्यों रहे हो रो मत ,सब लोग खुशी मनाओ|
इस दौरान कार्यक्रम के आयोजक कवि श्रीकृष्ण सरल ने लोगों को रोककर कहा कि वे दूर से माताजी पर फूल ना फेंके इस तरह माताजी को चोट लग सकती है लेकिन विद्यावती ने मना कर दिया कहा लोगों को मत रोको इनको अपने दिल की इच्छा पूरी कर लेने दो यह तो फूल ही बरसा रहे अगर मेरे बेटे भगत सिंह की जय बोल कर कोई पत्थर भी मेरे ऊपर फेंके तो मुझे वह फूल जैसे ही लगेंगे|
1 जून 1975 को यह मां भी अपनी शहीद बेटे भगत सिंह और उनके तीन अभिन्न साथियों राजगुरु सुखदेव बटुकेश्वर दत्त के साथ जा मिली | उसी स्थान पर उनके पार्थिक शरीर का भी दाह संस्कार हुआ जहां उन चारों का हुआ था, रावी नदी का किनारा हुसैनीवाला पंजाब|
पंजाब की सरकार ने उन्हें पंजाब की माता की उपाधि दी उनकी मृत्यु के पश्चात वह पंजाब कि नहीं इस राष्ट्र की माता थी जिसने भगत सिंह ,कुलतार सिंह ,कुलवीर सिंह जैसे पुत्रों को जन्म दिया… हालांकि आजादी के बाद किसी भी केंद्रीय भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह घोषणा नहीं की|
(लेख में दी गई ऐतिहासिक जानकारियां शहीद ए आजम भगत सिंह की भतीजी ( भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह की बेटी) वीरेंद्र संधू द्वारा 1968 मैं लिखित भगत सिंह की जीवनी “युग दृष्टा भगत सिंह और उनके मृत्युंजय पुरखे” नामक किताब से ली गई है)
आर्य सागर खारी ✍✍✍