गुरुकुल सिकंदराबाद में ऋषि बोधोत्सव के रूप में मनाई गई महाशिवरात्रि ; कृण्वंतो विश्वमार्यम् ही था महर्षि दयानंद का एकमात्र जीवन उद्देश्य : डॉ राकेश कुमार आर्य

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सिकंदराबाद। ( विशेष संवाददाता) यहां स्थित गुरुकुल सिकंदराबाद में महाशिवरात्रि ऋषि बोधोत्सव के रूप में मनाई गई। कार्यक्रम में मुख्य व्याख्याता के रूप में उपस्थित रहे इतिहासकार एवं  ‘उगता भारत’ के मुख्य संपादक डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ ही महर्षि दयानंद के जीवन का एकमात्र उद्देश्य था। डॉक्टर आर्य ने कहा कि महर्षि दयानंद ने अपने जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के कल्याण के लिए कार्य किया। उन्होंने केवल अपने लिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए साधना न करके मां भारती के पराधीनता के बंधनों को काटने पर अधिक ध्यान दिया। इसी कारण उन्होंने 1857 की क्रांति में बढ़ चढ़कर भाग लिया और अनेकों क्रांतिकारियों को प्रेरित कर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष को तेज किया। महर्षि दयानंद ने आबू पर्वत से लेकर हरिद्वार तक की यात्रा कर अनेकों युवाओं को क्रांति में कूदने के लिए प्रेरित किया।
  डॉक्टर आर्य ने कहा कि महर्षि दयानंद की प्रेरणा पाकर 1857 की क्रांति के पश्चात भी अनेकों क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावती तेवर अपनाए रखे और अंग्रेजों के प्रत्येक अत्याचार का विरोध करते हुए वीरता पूर्वक प्रतिशोध लिया। डॉ श्याम जी कृष्ण वर्मा, महादेव गोविंद रानाडे, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि गोखले जैसे शांति प्रिय नेता भी किसी न किसी प्रकार महर्षि दयानंद की विचारधारा से जुड़े थे। डॉक्टर आर्य ने कहा कि महर्षि दयानंद ने हीं चित्तौड़ को अंग्रेजों के अधीन होने से अपनी युक्ति से बचा लिया था । उनकी राष्ट्रभक्ति को देखकर ही 1877 के दिल्ली दरबार में उन्हें राजाओं के समक्ष क्रांतिकारी ओजस्वी भाषण देने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि महर्षि दयानंद की शुद्ध प्रेरणा और विचारधारा से प्रभावित होकर चलते रहने वाले भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के कारण अंग्रेजों को एक दिन भारत को छोड़ना पड़ा था।
   उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि जब देश आजाद हुआ तो महर्षि दयानंद की विचारधारा को पीछे छोड़ कर एक ऐसे भारत का निर्माण करना आरंभ कर दिया गया जो धर्मनिरपेक्ष भारत कहलाया। इस भारत में भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को और महर्षि दयानंद जैसे महापुरुषों को भुला दिया गया । झूठा इतिहास लिखकर हमें परोस दिया गया और इस्लाम ईसाई धर्म के लोगों को अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने का खुला आमंत्रण दे दिया गया। उसी का परिणाम है कि आज महर्षि दयानंद का मिशन बहुत पीछे जा रहा है।
  उन्होंने कहा कि आज हम फिर से आत्मावलोकन करें। हमें भारत में तेजस्वी राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए महर्षि दयानंद के सपनों का भारत बनाने के लिए विशेष आंदोलन चलाने की भी आवश्यकता है।

    इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित रहे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉक्टर सूरत सिंह ने कहा कि भारत सबसे प्राचीन देश है। इसके चारों वेद सृष्टि के लिए लिखे गए संविधान हैं। जिनका सनातन ज्ञान जितना शृष्टि प्रारंभ में हमारे लिए उपयोगी था उतना ही आज भी उपयोगी है। डॉक्टर सूरत सिंह ने कहा कि न्यायालय तक में वेदों के मंत्र आज भी न्याय कराने में सक्षम हैं और ऐसी प्रक्रिया सृष्टि पर्यंत बनी रहेगी।

अपना मार्गदर्शन देते हुए आर्य जगत के सुप्रसिद्ध सन्यासी स्वामी चंद्र देव जी महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि महर्षि दयानंद का चिंतन ही विश्व शांति की मानव समाज की चिर प्रतीक्षित खोज को पूर्ण कर सकता है। क्योंकि उनका चिंतन पूर्णतया वैज्ञानिक और वैदिक दृष्टिकोण का है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि वैदिक संत नहीं पंथनिरपेक्ष समाज की स्थापना करा सकता है।


डॉक्टर सूरत सिंह ने कहा कि महर्षि दयानंद यदि नहीं होते तो भारत स्वाधीन नहीं होता, क्योंकि ऋषि दयानंद ने हमारे भीतर आध्यात्मिक चेतना को तो प्रवाहित किया ही साथ ही सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना भी प्रवाहित कर नई ऊर्जा का संचार किया। उसी का परिणाम रहा कि भारत में अनेकों क्रांतिकारियों ने जन्म लेकर मां भारती के गुलामी के बंधनों को काटने का बीड़ा उठाया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानंद की शिक्षा प्रणाली को अपनाकर ही भारत का कल्याण हो सकता है। शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर वैदिक शिक्षा के माध्यम से ही हम सशक्त, समृद्धि और सुसंस्कृत भारत का निर्माण कर सकते हैं।
   इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजक / संयोजक व गुरुकुल के प्रबंधक प्रताप सिंह आर्य ने कहा कि इस गुरुकुल से अनेकों क्रांतिकारी देशभक्तों का निर्माण हुआ। यहां से निकले हुए कितने ही विद्यार्थी उच्च पदों पर तैनात हुए और कितनों ने ही अपनी विद्वता का परचम लहराकर इस गुरुकुल के आचार्यों का नाम रोशन किया। उन्होंने कहा कि गुरुकुल की यह शिक्षा प्रणाली निरंतर आगे भी जारी रहेगी और यहां पर और भी बेहतरीन कार्यक्रम कराने की योजना पर काम किया जाएगा।
  कार्यक्रम की अध्यक्षता आर्य समाज के पूर्व प्रधान और वयोवृद्ध नेता सरपंच रामेश्वर सिंह ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि ऋषि दयानंद का बोधोत्सव हमें आज भी बहुत कुछ सीखने और देश के लिए काम करने की शिक्षा देता है। उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे ऋषि दयानंद के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन का निर्माण करें।
  इस अवसर पर सुप्रसिद्ध भजनोपदेशक ओमप्रकाश फ्रंटियर, मोहनलाल आर्य, सावित्री आर्या, महाशय जगमाल सिंह आदि ने भी अपने भजनोपदेशन के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन किया और आर्य समाज की विचारधारा से उन्हें परिचित कराया। आर्य जगत के सुप्रसिद्ध वक्ता और कवि महेश क्रांतिकारी ने भी अपनी ओजपूर्ण कविता सुनाकर सबको प्रभावित किया।
  कार्यक्रम में राकेश आर्य, स्वाति आर्य, विपिन आर्य , आर्य सागर खारी , जयप्रकाश आर्य, मूलचंद शर्मा, पंडित धर्मवीर शर्मा
आदि सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।

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