यदि राम धर्म से गिर जाते ….
कविता — 43
जब तैंतीस कोटि देवों की यह भारत भूमि होती थी।
भारत के रहते सारी दुनिया तब बेफिक्री से सोती थी।।
आलम की मस्ती न्यारी थी भारत के दुनिया गुण गाती,
चहुंओर शांति पसरी थी हर भोर शांति पर इठलाती ।।
धनुर्धारी वीर भारत के तब धर्म की रक्षा करते थे,
जितने भी हिंसक दानव थे , विनाश उन्हीं का करते थे।
था विश्व रक्षित भारत के कारण सब नींद चैन की लेते थे,
था सबका भरोसा भारत पर सब भारत से शिक्षा लेते थे।।
जो लोग हमारे भारत को दिन-रात कोसते यह कहकर।
भारत ने ज्ञान हमसे सीखा वह कैसे गर्व करे खुद पर।।
उन अज्ञानी पशुओं को भारत के समाज का ज्ञान नहीं,
दिव्य समाज के भावों का अपने अंतर में कुछ भान नहीं।।
जब शेष विश्व सोता था अज्ञान की निंदिया में गहरा,
तब भारत चांद को छूता था सब लोकों में था उसका पहरा।
भारत ने ज्ञान की आभा दी और विश्व को दीप्तिमान किया,
वेदों वाले पावन भारत ने ही विश्व को अनुपम ज्ञान दिया।।
चालाकी में हो लोमड़ी सा और शूरता में हो शेर सा,
सही अर्थों में राजा है वही अनोखी जिसकी वीरता ।
शक्ति का प्रतीक बन जो निज देश का सम्मान हो,
गौरव बढ़ाए राज्य का और राष्ट्र का अभिमान हो।।
नैराश्यभाव था नहीं जब श्रीराम वन को थे चले ,
सहजता से छोड़ दिए जिनकी गोदियों में थे पले।
निज आत्मा की मूर्ति घोषित किया अनुज भरत को ,
प्रजा जनों से कह दिया पूरा सम्मान देना भरत को।।
संपूर्ण लोक और वर्णों के रक्षक स्वयं श्री राम हुए ,
उनकी मर्यादा के कारण पवित्र सारे धाम हुए ।
नीच अधर्मी पापीजन के संहारक श्रीराम हुए
धर्मशील मानव जन के उद्धारक भी श्रीराम हुए।।
यदि राम धर्म से गिर जाते तो समझो फिर क्या होता ?
धरा पर ‘ त्राहिमाम’ मची होती और सर्वत्र अंधेरा होता।
राक्षसों की प्रबलता से सज्जन शक्ति धरा से मिट जाती,
शिवसंकल्पी राम नहीं होते तो जीवन से मर्यादा हट जाती।।
जो देश अपने आदर्श का कभी गुणगान भी ना कर सके,
जीवन उनका व्यर्थ है जो आदर्श का मान भी ना कर सके। सफलता संदिग्ध सदा उनकी रही जो करने की डींग हाँकते,
मनोरथ व्यर्थ उनके रहें और वही धूल जंगलों की फांकते ।।
ऋषियों की पवित्र वेद वाणी भारत के उत्कर्ष का आधार है,
संस्कृत इसकी मूल भाषा और वेद इसके धर्म का आधार है।
अहिंसा की रक्षार्थ हिंसा करना – वेद धर्म के अनुकूल है,
‘ राकेश’ अहिंसा कहते उसको जो हिंसा के प्रतिकूल है।।
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत