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इतिहास के पन्नों से

राजीव गांधी ने उदारता दिखाते हुए जब बदल दिया था चंद्रशेखर के लिए नियम


संतोष भारतीय, वरिष्ठ पत्रकार

1984 का चुनाव विपक्षी दलों के लिए विनाश का तूफान लेकर आया। सारे दल और सारे नेता कांग्रेस या कहें कि राजीव गांधी की आंधी में तिनकों की तरह उड़ गए। चंद्रशेखर चुनाव हार गए। वह तीन दिनों तक अपनी झोंपड़ी में बंद रहे। उन्हें इतना धक्का लगा कि किसी से मिले तक नहीं। मैंने जितनी सभाएं चंद्रशेखर की देखी थीं, वे कहीं से यह संकेत नहीं दे रही थीं कि तूफान आने वाला है… विनाशकारी तूफान! चंद्रशेखर के लिए एक और समस्या खड़ी हो गई थी। उनके पास दिल्ली में कोई घर नहीं था। या तो उन्हें परिवार सहित बलिया लौटना पड़ता या फिर किराये के मकान में जाना पड़ता। चंद्रशेखर का संयुक्त परिवार था। उनके साथ उनके छोटे भाई कृपाशंकर रहते थे, जिनके बेटे-बेटियां थीं। चंद्रशेखर के भी दो बेटे थे, अब तक सब 3- साउथ एवेन्यू में रहते थे। तभी एक ऐसी सूचना आई जिसने राजनीति के एक सुखद पहलू से परिचय करवाया। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन गए थे। उनके साथ चार सौ चौदह सांसदों का समर्थन था। उन्होंने अब्दुल गफूर को अपने मंत्रिमंडल में लिया था और उन्हें शहरी विकास मंत्रालय दिया था, जिसमें सांसदों की आवास व्यवस्था भी आती थी। चंद्रशेखर अपने भावी निवास को लेकर चिंतित थे। चंद्रशेखर के एक मित्र ने गफूर साहब से पूछा कि कब तक चंद्रशेखर साउथ एवेन्यू में रह सकते हैं, तो गफूर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘हमेशा’। वह सज्जन चौंक गए। तब गफूर साहब ने कहा कि उन्हें राजीव गांधी ने आदेश दिया है, ‘चंद्रशेखर जी को 3-साउथ एवेन्यू में ही रहने दिया जाए। इसके लिए उन्होंने एक नया नियम बनाया है। अभी तक यह नियम नहीं था कि कोई संसद का चुनाव हारने के बाद भी घर में रह सके। राजीव गांधी ने कहा कि चंद्रशेखर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इसीलिए उन्होंने मुझसे कहा कि नियम बनाइए कि किसी भी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तब तक मकान में रह सकता है जब तक वह पार्टी अध्यक्ष है।’

वीपी सिंह की वह आदत
वीपी सिंह अक्सर कुछ फैसले बदल दिया करते थे। मेरे पास एक जानकारी आई और मुझे लगा कि प्रधानमंत्री को बताना चाहिए। जानकारी यह थी कि एक मंत्री ने 15% कमिशन की मांग की थी और मांग प्रधानमंत्री के नाम पर हुई थी। उन दिनों भारत सरकार कोशिश करती थी कि विदेशों से सामान मंगवाया जाए। मेरे पास एक कॉर्पोरेशन के चेयरमैन आए और उन्होंने मुझसे कहा, किसी भी विदेशी सौदे में 10% ईमानदारी का कमिशन होता है जो मंत्री के पास जाता है। परेशानी तब होती है जब इससे ज्यादा की मांग होती है। इस बार प्रधानमंत्री के नाम पर 5% ज्यादा मांगा जा रहा है।’ मैंने प्रधानमंत्री को बताया तो उन्होंने चेयरमैन का नाम पूछा, मैंने बता दिया। उन्होंने फौरन कैबिनेट सेक्रेटरी से कहा, ‘इस अफसर के खिलाफ सीबीआई जांच बैठाइए, यह अफवाह फैला रहा है।’ मैं चौंक गया। बुरा भी लगा मुझे। मैंने फौरन प्रतिवाद किया, ‘आप करवाइए सीबीआई जांच लेकिन इसके बाद कोई भी भ्रष्टाचार की जानकारी नहीं देगा।’ कहकर मैं उठ गया। 45 मिनट बाद मेरे पास वीपी सिंह का बुलावा आया। मुझसे बोले, मैं कैबिनेट सेक्रेटरी से फौरन मिलूं। मैं कैबिनेट सेक्रेटरी के पास गया तो वह मुस्कुरा रहे थे, पूछा- क्या बात है ? मैंने सारी घटना बता दी पर, फिर उनसे कहा, आपने तो सीबीआई जांच का आदेश दे दिया होगा? वह बोले, ‘नहीं दिया, मैं एक घंटे इंतजार करता हूं क्योंकि मुझे मालूम है कि वह फैसले बदल देते हैं। ठीक 40 मिनट बाद पीएम का फिर फोन आया और उन्होंने कहा, ‘जैसा संतोष कहें वैसा कीजिए।’

मौलाना बुखारी की सिफारिश
लोकसभा में एक हस्ताक्षर अभियान चला। वह हस्ताक्षर अभियान गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के खिलाफ था। लगभग 80 सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए थे। यह तीन दिनों से चल रहा था। अचानक खबर फैली कि यह हस्ताक्षर अभियान संतोष भारतीय के इशारे पर हो रहा है। मैं चौंका, फौरन प्रधानमंत्री के पास पहुंचा और मंत्री पद पर अपना दावा ठोक दिया। अब वीपी सिंह चौंक पड़े, पूछा, ‘क्या हो गया?’ मैंने कहा, ‘आपको कहा गया है कि 80 सांसदों ने मेरे कहने पर हस्ताक्षर किए, मतलब आधे से ज्यादा दल के सांसद मेरे साथ हैं तो मुझे मंत्री बनना चाहिए।’ वीपी सिंह हंस दिए। कहने लगे, ‘मुझे पता है किसके इशारे पर यह सब हुआ है, आप परेशान न हों।’
सरकार बनी ही थी कि एक दिन वीपी सिंह ने सुबह नाश्ते पर कहा, ‘किसी मुस्लिम समाज के व्यक्ति का नाम बताइए जिसे राज्यसभा में लाया जा सके।’ उन्हें डर था कि जामा मस्जिद के इमाम मौलाना बुखारी किसी ऐसे नाम पर जोर डालेंगे, जिसे वह बनाना नहीं चाहते। मौलाना बुखारी ने फोन पर मौलाना किछौछवी के लिए कहा था। उन्होंने फोन करने के बाद एक खत भेजा, जिसमें तीन नाम थे पर वह चाहते एक को थे। मैंने राय दी- मीम अफजल का नाम है उसमें, उन्हें लाना चाहिए क्योंकि वह पत्रकार भी हैं और आरिफ मोहम्मद खान भी उनका समर्थन करेंगे।’ वीपी सिंह ने सलाह मान ली। इसी तरह महाराष्ट्र से राज्यसभा के लिए उम्मीदवार तय करना था। नॉमिनेशन का आखिरी दिन आ गया। कमल मोरारका ने मुझे फोन किया और कहा कि उन्होंने देवीलाल से बात कर ली है पर वह बोल रहे हैं कि ‘फ़ैसला वी.पी. सिंह को लेना है।’ मैंने पूछा, ‘मुझसे वे क्या चाहते हैं?’ इस पर उन्होंने कहा कि मैं वीपी सिंह को तैयार करूं।

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