अंतरराष्ट्रीय यज्ञ दिवस के रूप में मनाई गई महर्षि दयानंद की जयंती
दादरी। यज्ञ योग के माध्यम से संसार को ईश्वर की दिव्य सत्ता से जोड़ने का महान कार्य करने वाले और संसार के सभी सभ्य जनों को वेदों की ओर लौटने का संदेश देने वाले महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज संसार की दिव्य विभूतियों में से एक रहे हैं। दयानंद जी महाराज का जीवन न केवल आध्यात्मिक चेतना के क्षेत्र में हमारे लिए मार्गदर्शक का काम करता है बल्कि उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी ऐसा अनुपम और अद्वितीय कार्य किया कि उसका जोड़ आज तक कहीं नहीं मिलता। इतिहास की इस अनुपम और अद्वितीय विभूति को विभिन्न आर्य समाजों ने उनके 198 वें जन्मदिवस पर अपने-अपने ढंग से पुष्पांजलि अर्पित की।
इसी क्रम में यहां स्थित ग्राम बंबावड़ में महर्षि दयानंद वेद संस्थान द्वारा महात्मा हंसराज आदर्श विद्यालय बंबावड़ गौतम बुद्ध नगर में महर्षि दयानंद की 198 वी जयंती अंतरराष्ट्रीय यज्ञ दिवस के रूप में मनाई गई। इस अवसर पर उपस्थित अनेकों विद्वानों ने महर्षि दयानंद की जयंती को अंतरराष्ट्रीय यज्ञ दिवस के रूप में मनाने के लिए भारत की केंद्रीय सरकार सहित संयुक्त राष्ट्र से भी मांग की है। जिसके बारे में एक प्रस्ताव भी पास किया गया। प्रस्ताव में कहा गया है कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज 1857 की क्रांति के सूत्रधार थे। जिन्होंने सांसारिक और सामाजिक जीवन को अध्यात्म की गहरी चेतना के साथ जोड़कर क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया था और क्रांति को भी एक महान यज्ञ के रूप में प्रतिपादित कर सोए हुए भारत को जगाने का ऐतिहासिक कार्य किया था। प्रस्ताव में मांग की गई है कि यज्ञ की संस्कृति भारत की प्राचीन संस्कृति रही है। जिसके माध्यम से वैश्विक शांति स्थापित हो सकती है। इसलिए महर्षि दयानंद के जन्मदिवस को अंतर्राष्ट्रीय यज्ञ दिवस के रुप में मनाया जाना उचित होगा।
कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष महेंद्र सिंह आर्य ने ‘उगता भारत’ को बताया कि इस कार्यक्रम में 101 कुंडीय यज्ञ का भी आयोजन किया गया । जिसे पूर्ण वैदिक विधि विधान से संपन्न कराया गया।
यज्ञ आरंभ करने से पहले ग्राम बंबावड़ में एक कलश यात्रा भी निकाली गई । जिसमें सैकड़ों महिलाओं ने भाग लिया। इसके अतिरिक्त गुरुकुल के विद्यार्थियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
कार्यक्रम में मुख्य आमंत्रित विद्वानों में पंडित महेंद्र पाल आर्य, (पूर्व इमाम ) आचार्य विद्या देव, आचार्य चंद्र देव डॉ राकेश कुमार आर्य , आचार्य विक्रम देव शास्त्री, आचार्य धर्मेंद्र शास्त्री जितेंद्र आचार्य , आचार्य दुष्यंत, धर्मपाल आर्य, स्वामी प्राण देव जी महाराज , आचार्य हनुमत प्रसाद , दिवाकर आचार्य , रघुराज आचार्य, आचार्य करण सिंह शास्त्री , देवमुनि, डॉक्टर सुशील सूरी , अनिता आर्या, कौशल आर्या, अलका आर्या, गार्गी आर्या, पंडित राधा बहन
आदि सम्मिलित रहे ।
यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी मोहन देव जी महाराज संयोजक रामेश्वर सरपंच, मुख्य अतिथि पहलवान सुखबीर आर्य, सभा अध्यक्ष मुकेश आर्य , मुख्य यज्ञमान ज्ञानेंद्र आर्य मास्टर जी, स्वागत अध्यक्ष योगेंद्र आर्य रहे। कार्यक्रम के सह संयोजक चौधरी नरपत सिंह प्रधानाचार्य, श्री धर्मवीर प्रधान , वीरेश आर्य, विजेंद्र आर्य, पंडित शिव कुमार आर्य ,जयप्रकाश आर्य, कमल आर्य थे।
इस अवसर पर सूबेदार जतन सिंह प्रेमचंद महाशय , जयकरण सिंह , दिवाकर आर्य, विजेंदर आर्य , भूदेव सिंह आर्य, विजेंद्र आर्य , चरण सिंह आर्य, सतवीर आर्य , रविंद्र आर्य, राकेश आर्य पहलवान , देवेंद्रसिंह आर्य, इल्म चंद नागर मास्टर मौजीराम नागर, पंडित धर्मवीर आर्य, विपिन आर्य, महावीर सिंह आर्य सहित सैकड़ों आर्य जनों ने यज्ञ का लाभ उठाया।
कार्यक्रम का संचालन आर्य सागर खारी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर एक शास्त्रार्थ का भी आयोजन किया गया जिसमें आर्य समाज और वेदों से जुड़े 10 प्रमुख बिंदुओं पर शास्त्रार्थ के रूप में चर्चा की गई । इसके विषय में जानकारी देते हुए श्री महेंद्र सिंह आर्य ने बताया कि आर्य जनों के साथ साथ अन्य समाज के लोगों के भीतर भी जागरूकता पैदा हो और वे वैदिक सिद्धांतों के साथ तन मन धन से जुड़ें इस दृष्टिकोण से इस शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया। श्री आर्य ने कहा कि अनेकों भ्रांतियां इस समय समाज में फैली हुई हैं। अज्ञानता के कारण फैली इन भ्रांतियों का निवारण करना आर्य समाज का सबसे पहला धर्म है। इसलिए ऐसे शास्त्रार्थ का आयोजन आगे भी होता रहेगा।