लालकिले की प्राचीर से हमारे अब तक के प्रधानमंत्री
भारत अपना 68वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। यह दिवस हमारे हजारों, लाखों शहीदों और क्रांतिकारियों की बलिदानी गाथा की पावन स्मृतियों को संजोकर लाता है। हर देशवासी इस दिन अपने उन नाम अनाम असंख्य बलिदानियों का पावन स्मरण कर उन्हें अपने श्रद्घासुमन अर्पित करता है। पूरे देश की ओर से देश का प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर पर झण्डा रोहण कर अपने शहीदों को श्रद्घांजलि देकर देश के लिए और देश के युवाओं के लिए उनके आदर्शों पर चलकर नये भारत के निर्माण में अपना सहयोग देने का आवाह्न करता है।
अब तक हमारे देश के कुल 16 प्रधानमंत्री हुए हैं। इनमें से गुलजारीलाल नंदा ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो नेहरू जी की मृत्यु के बाद 27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक तथा लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के उपरांत 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक देश के दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। लेकिन उन्हें कोई सी बार भी लालकिले से झण्डा रोहण करने का अवसर नही मिला। इसी प्रकार चंद्रशेखर हमारे दूसरे प्रधानमंत्री जो 11 नवंबर 1990 से 18 जून 1991 तक देश के प्रधानमंत्री रहे और उन्हें भी झण्डारोहण करने का अवसर नही मिल पाया। इसके अतिरिक्त शेष तेरह प्रधानमंत्रियों ने अपने-अपने कार्यकाल में लालकिले की प्राचीर पर झण्डारोहण कर राष्ट्र को संबोधित किया है। जबकि नरेन्द्र मोदी जो कि वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री हैं, इस बार पहली बार लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित कर रहे हैं।
यहां पर प्रस्तुत है हमारे देश के प्रधानमंत्रियों के भाषणों के वे संक्षिप्त अंश जो उन्होंने लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में व्यक्त किये थे-
पं. जवाहर लाल नेहरू
पं. जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने, लालकिले की प्राचीर से उनका पहला भाषण 15 अगस्त 1947 को नही बल्कि 16 अगस्त 1947 को दिया गया था। 1947 का उनका भाषण हम अलग से दे रहे हैं। अत: उसके उल्लेख की आवश्यकता नही है। 1948 में उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि-‘‘हिंद बहुत दिन तक पराधीन रहा है और वह अच्छी तरह जानता है कि किसी की स्वतंत्रता का अपहरण कर लेने का अर्थ क्या होता है?
अत: वह किसी के विरूद्घ कोई बुरी भावना नही रखता। इसके विपरीत विश्व के अन्य राष्ट्रों की स्वतंत्रता के लिए यदि वह कुछ कर सकेगा तो सचमुच उसके लिए प्रयत्न करेगा। महात्मा गांधी की महत्ता तथा नेतृत्व ने विश्व की जनता में हिंद का गौरवपूर्ण स्थान बनाया है। यदि हम अपना हृदय शुद्घ नही करते और दूसरों के लिए कटुता तथा बुरी भावना का परित्याग नही करते तो हम उसकी प्रतिष्ठा को कायम नही रख सकते। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यदि हिंद को महान होना है तो उसे पूज्य बापू के पदचिन्हों पर चलना चाहिए।’’
1947 से लेकर 1963 तक निरंतर नेहरू जी लालकिले से देश को संबोधित करते रहे। उनके अंतिम भाषण का अंश था-‘‘मिलकर चलना सीखें। काम करने की शक्ति व उत्साह मिलकर चलने से आती है….औरों से दोस्ती, भरोसा अपने पर। जो दूसरों पर भरोसा करने लगता है वह निकम्मा हो जाता है। जिन देशों ने भारत को मदद दी है, उनकी हमदर्दी से हमारा बोझ कम हुआ है।’’
लालबहादुर शास्त्री
शास्त्री जी ने पाकिस्तान को सचते करते हुए 1965 में दिये गये अपने भाषण में कहा था-‘‘कश्मीर में जो-जो घटनाएं घटी हैं उसके लिए पाकिस्तान पूरी तरह जिम्मेदार है, और हमलावरों को भारतीय क्षेत्र खदेड़ दिया जाएगा। पाकिस्तान को कश्मीर की एक इंच भूमि भी नही लेने दी जाएगी।…कश्मीर के सवाल पर बातचीत का कोई प्रश्न ही नही है।
हम सोच भी नही सकते।…. आज हम यहां हैं, कल हम ना भी हों, तो भी देश रहेगा, और हमारा झंडा आसमान में ऊंचा उड़ता रहेगा।….चीन दूसरे देशों को सहायता और परामर्श देता रहा है, कि वे भारत को चैन से नही बैठने दें।…हम मरें चाहे जियें, लेकिन हमें इस झंडे को धूलि लुंठित नही होने देना है।’’
इंदिरा गांधी
इंदिरा गांधी ने 1966 में लालकिले की प्राचीर से पहली बार देश को संबोधित करते हुए कहा कि-‘‘यहां खड़े-खड़े भारत की लंबी कहानी याद आती है, पुराना इतिहास, इतने वर्ष पहले, भारत ने दुनिया को नेतृत्व दिया, चाहे विज्ञान हो, चाहे दर्शन हो, चाहे किसी भी दिशा में, भारत बहुत आगे था, भारत बहुत महान था। आज यह सब बातें हमारे सामने हैं और हमारी और आपकी जिम्मेदारी है कि हम कोई काम ऐसा न करें लंबे इतिहास पर, इस शानदारी कहानी में किसी तरह का धब्बा पड़े।’’
इंदिरा जी 1976 तक लगातार लालकिले से झंडा लहराती रहीं। 1972 में उन्होंने बांग्लादेश निर्माण के समय कहा था-‘‘सबके साथ मित्रता और किसी की भी अधीनता नही-यह रहा है हमारे अन्वेषण का लक्ष्य…। मुक्ति के लिए संघर्ष तब आरंभ हुआ था जब विश्व के पहले मानव को दासता की बेडिय़ों में जकड़ा था, और वह तब तक जारी रहेगा जब तक विश्व का अंतिम व्यक्ति न केवल दासता के बाह्चिन्हों से, बल्कि जाति, रंग और लिंग भेद से उत्पन्न छोटी, बड़ी भावना से छुटकारा न पा लेगा।’’
1977 में इंदिरा जी सत्ता से अलग हो गयीं, परंतु 1980 में वह फिर सत्ता में लौटी, और 1984 तक लालकिले पर फिर झंडा फहराती रही। 1984 में उन्होंने कहा था कि एशियाई खेलों और दिल्ली में संपन्न निर्गुट शिखर सम्मेलन ने यह दिखा दिया है कि भारत के लोग अनुशासन और निष्ठा से क्या काम नही कर सकते।
मोरारजी देसाई
मोरारजी देसाई ने 1977 और 1978 में दो बार लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित किया। उन्होंने अपने पहले भाषण में कहा था कि-‘‘हमने इस दौरान (आजादी के बीते सालों में) कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, दुख, सुख झेले हैं।
तीन हमलों का हमने सफलतापूर्वक सामना किया और राष्ट्र का स्वाभिमान निखरा है।….हम गांधीजी के बताये रास्ते से भटक गये और पश्चिम का अनुकरण करने लगे।….आपात स्थिति से दुनिया में हमारी इज्जत गिरी और यहां भय का वातावरण बना।’’
मोरारजी भाई ने 1978 के अपने भाषण में कहा था कि-‘‘राष्ट्र केवल अनुशासन और स्वच्छ साधनों से ही मजबूत हो सकता है। जनता पार्टी इसके लिए सचेष्ट है।’’
चौधरी चरणसिंह
चौधरी चरणसिंह ने 1979 में लालकिले की प्राचीर से झंडा रोहण कर राष्ट्र को संबोधित किया।
उन्होंने कहा था कि-‘‘परमाणु बम बनाने के लिए सामग्री एकत्रित करने का पाकिस्तान का प्रयास केवल भारत के विरूद्घ हो सकता है। केवल भारत के विरूद्घ, क्योंकि उसका, पाकिस्तान का अपने किसी अन्य पड़ोसी देश के साथ कोई गंभीर विवाद नही है।
राजीव गांधी
राजीव गांधी ने 1985 में पहली बार लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने कहा था-‘‘मैंने स्वतंत्रता की लड़ाई नही देखी है। उस समय मैं तीन वर्ष का था, लेकिन अब जब देशवासियों ने मेरे कंधों पर देश की जिम्मेदारी सौंपी है, तो मैं उनके समक्ष यह वायदा करता हूं कि देश की आजादी को अक्षुण्य रखने के आर्थिक विकास के लिए अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभाऊंगा।….
मैं चाहता हूं कि सर्वत्र शांति रहे। भूटान, नेपाल, चीन, और श्रीलंका से हम दोस्ती बनाये रखने के पक्ष में हैं। पाकिस्तान से भी भारत मैत्री संबंध कायम रखना चाहता है। किंतु उसका परमाणु कार्यक्रम उसमें बाधक बन रहा है।’’
1989 में राजीव गांधी ने अपने अंतिम भाषण में कहा था कि-‘‘हम किसी भी कीमत पर देश को टूटने नही देंगे। देश को टूटने से बचाने के लिए जान की बाजी लगा देने तक का हमारा संकल्प है’’।
विश्वनाथ प्रताप सिंह
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1990 में लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए कहा-‘‘गरीबी हटाने वालो, अब हट जाओ। या तो गरीब अपनी गरीबी
खुद दूर कर लेगा या अपनी किस्मत पर तसल्ली कर लेगा। गरीब को पूंजी नही सत्ता दो, परिवर्तन वह खुद ले आएगा।’’
पी.वी. नरसिम्हाराव
पीवी नरसिम्हाराव ने 1991 से 1995 तक लालकिले की प्राचीर पर झंडारोहण किया। उन्होंने अपने पहले भाषण में कहा था-‘‘धर्म-निरपेक्ष भारत सरकार इस बात के लिए वचनबद्घ है कि किसी भी धर्म के लिए कोई संकट न पैदा हो। अल्पसंख्यकों के हित के लिए अल्पसंख्यक आयोग को कानूनी जामा पहनाया जाएगा। किसानों ने देश के लिए पैदावार तो की है अब निर्यात के लिए भी पैदावार करें, ताकि देश समृद्घ हो। हमें समृद्वि बांटनी है, गरीबी नही।’’
1995 में उन्होंने कहा-पाकिस्तान यदि कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन और सहयोग देना बंद कर दे, तो भारत उसके साथ बिना किसी पूर्व शर्त के बात करने को तैयार है। कश्मीर भारत का अभिभाज्य अंग है और कोई उसे न तो हमसे छीन सकता है और न ही अलग कर सकता है।…यदि राष्ट्र अपनी शक्ति का अपव्यय न करे तो अगले 25 वर्षों में यह विश्व के विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने की क्षमता रखता है।’’
एच.डी. देवेगौड़ा
एच.डी. देवेगौड़ा ने 1996 में अपने भाषण में कहा था-‘‘देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नही किया जाएगा और भारत व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि के वर्तमान स्वरूप से किसी कीमत पर सहमत नही हो सकता। इस बारे में पूरा देश एकमत है कि पड़ेासी देश के प्रत्यक्ष और गुप्त परमाणु शस्त्र कार्यक्रमों को देखते हुए भारत को अपनी सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है।’’
इंद्रकुमार गुजराल
1997 में आपने देश को संबोधित करते हुए कहा-‘‘भ्रष्टाचार आज कल देश को अंदर-अंदर ही दीमक की तरह चाट रहा है। देश के दुश्मनों से सेना निपट सकती है, लेकिन रिश्वत खोरों से साहस और दृढ़ निश्चय से ही जनता को निपटना होगा। उनके साथ कोई समझौता नही किया जाएगा, तथा कानून के हाथ इतने लंबे
किये जाएंगे कि उनसे कोई बचकर नही निकल पाएगा। जनता रिश्वत खोरों का सामाजिक बहिष्कार करे और उनके साथ रोटी-बेटी का संबंध नही रखे। इस संबंध में लोकपाल विधेयक शीघ्र ही संसद में पेश किया जाएगा।’’
अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई 1996 से 28 मई 1996 तक देश के पहली बार प्रधानमंत्री बने। उसके पश्चात 19 मार्च 1998 को वह देश के दोबारा प्रधानमंत्री बने और 21 मई 2004 तक इस पद पर रहे। उनके काल में कारगिल युद्घ हुआ।
उन्होंने 52वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने पहले भाषण में 1998 में कहा था-‘‘हमारा देश विदेशी आक्रमणों का शिकार होता रहा है। पचास वर्षों के इस छोटे से कालखण्ड में भी हम चार बार आक्रमणों के शिकार हुए हैं। फिर हमने अपनी स्वतंत्रता और अखण्डता अक्षुण्ण रखी, इसका सर्वाधिक श्रेय जाता है सेना के जवानों को। अपनों से दूर, अपना सर हथेली पर रखकर वे रात दिन हमारी सीमा की रखवाली करते हैं, इसलिए हम अपने घरों में चैन की नींद सो सकते हैं। सियाचीन की शून्य से 32 अंश कम बर्फीली वादियां हों या पूर्वांचल का घना जंगल…..सभी स्थानों पर हमारा जवान चौकस खड़ा है। ये सभी जवान थल सेना, वायु सेना और जल सेना के साथ-साथ अन्य सुरक्षाबलों से संबंधित है।
….हे भारत के वीर जवानो! हमें तुम पर नाज है। हमें तुम पर गर्व है।’’ अटल जी ने इसी भाषण में पोखरण विस्फोट के विषय में इंदिरा जी को याद करते हुए कहा-‘‘25 वर्ष पूर्व श्रीमती इंदिरा गांधी ने जिस कार्य की नींव रखी थी, मैंने उस पर इमारत खड़ी करने का प्रयास किया है।’’
उन्होंने नेहरू जी को याद करते हुए कहा था पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी स्थान पर प्यारा तिरंगा नीले आसमान में फहराया था।….मैंने कभी यह नही सोचा था कि यह सौभाग्य मुझे भी एक दिन मिलेगा।’’
डा. मनमोहन सिंह
डा. मनमोहन सिंह 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। वह एक सफल अर्थशास्त्री रहे हैं। उनके किसी भाषण के अंश को देना हम यहां इसलिए उचित नही मान रहे हैं क्योंकि उनसे देश की जनता दस वर्ष तक भली प्रकार परिचित रही है।
नरेन्द्र मोदी
श्री मोदी 26 मई 2014 देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए हैं।”मैं आपके बीच प्रधान मंत्री के रूप में नहीं, प्रधान सेवक के रूप में उपस्थित हूँ। देश की आज़ादी की जंग कितने वर्षों तक लड़ी गई, कितनी पीढ़ियाँ खप गईं, अनगिनत लोगों ने बलिदान दिए, जवानी खपा दी,जेल में ज़िन्दगी गुज़ार दी। देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने वाले समर्पित उन सभी आज़ादी के सिपाहियों को मैं शत-शत वंदन करता हूँ, नमन करता हूँ।”