पुस्तक समीक्षा : ‘एक चादर कोहरे की’
डॉ सुदेश बत्रा जी हिंदी साहित्य की एक सशक्त हस्ताक्षर हैं।
विभिन्न विधाओं में लिखकर उन्होंने हिंदी साहित्य की अप्रतिम सेवा की है। प्रस्तुत पुस्तक ‘एक चादर कोहरे की’ भी उनकी एक अद्भुत कृति है । जिसमें उन्होंने कहानियों के माध्यम से समाज के लिए अपना गहरा संदेश देने का प्रयास किया है।
कोई भी कहानीकार कहानियों के माध्यम से समाज के लिए किसी अपनी ऐसी कल्पना को साकार रूप देने का प्रयास करता है जो समाज की विकृत दशा को सुधारने में सहायक हो। उसका प्रयास होता है कि समाज को सही दिशा देकर वह अपने मन की बात को पाठकों के हृदय में स्थापित कर सके। वह पाठकों के हृदय को उकेरता, खोदता व जोतता है और उसमें अपनी कल्पनाओं के बीज बोकर उन बीजों से तैयार पौधों को देश और समाज के विशाल खेतों में रोपित करते रहने का प्रयास करता रहता है। जिससे जनसामान्य उन पौधों से बने व बड़े हुए वृक्षों की शीतल छाया का लाभ ले सके। डॉ बत्रा के साहित्य का यदि अनुशीलन किया जाए तो यह बात उन पर पूर्णतया सही सिद्ध होती है।
मानव जीवन में अनेकों विसंगतियां आती हैं। कितने ही प्रकार के दबाव झेलती हुई जिंदगी उन विसंगतियों में कई बार भटक भी जाती है तो कई बार बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लेकर और उनका पार पाकर अर्थात विजयी होकर निकलती हुई भी दिखाई देती है। बेचैनियों और भटकाव में भटकती जिंदगी उस नाव की तरह है जो नदी की छाती पर तैरकर अनेकों प्रकार के तूफानों को झेलती है लेकिन दूसरे किनारे पर भी पहुंचने में सफल हो ही जाती है। जो जीत गया वही मुकद्दर का सिकंदर कहलाता है । इसलिए जिंदगी वही शानदार होती है जो बहुत सारे तूफानों को झेलकर भी शानदार ढंग से किनारे पर पहुंच जाती है। डॉ बत्रा की कहानी भी जिंदगी को कुछ ऐसा ही गंभीर संदेश देती हुई दिखाई देती हैं।
सत ,रज और तम इन तीन वृत्तियों से हमारा शरीर बना होता है। यही कारण है कि कभी हम सतो प्रधान मानसिकता में जी रहे होते हैं तो कभी रजो प्रधान और कभी तमो प्रधान मानसिकता में जी रहे होते हैं। समय के अनुसार मनुष्य जैसी वृत्ति में होता है वैसे निर्णय भी लेता है। समय और समाज पर हमारे इन निर्णयों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। कहानियों के माध्यम से विदुषी लेखिका ने बड़ी गंभीरता से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि समय और समाज के परिवर्तन को समुचित स्थान दिया जाए । उन्होंने समाज में प्रचलित मान्यताओं व धारणाओं पर कहीं विद्रोही तेवर दिखाया है तो कहीं हताश व निराश मानव को आशा का संचार देने का भी प्रयास किया है।
एक अच्छे साहित्यकार का लक्ष्य भी यही होता है कि वह उदास, निराश और हताश मन को सृजनात्मक शक्तियों से भर दे। उदासी के स्थान पर विधेयात्मक शक्तियां हावी प्रभावी हों और मनुष्य फिर एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने के लिए अपने आप को ऊर्जावान अनुभव करने लगे। डॉ बत्रा की प्रत्येक कहानी इसी प्रकार का सृजनात्मक और विधेयात्मक संदेश देती हुई जान पड़ती है।
डॉ बत्रा ने समाज के लिए समय देकर साहित्यकार के पुनीत धर्म का निर्वाह किया है।
इस पुस्तक में डॉ बत्रा ने कुल 16 कहानियों को स्थान दिया है। ये कहानियां निम्न प्रकार हैं :- टूटती जंजीरें, मंजिलें और भी हैं, रोशनी की लकीर, मरजीवा, लागी नाही छूटे, भोर का सूरज, मन नाही दस बीस, डरना मना है, एक चादर कोहरे की, खंडहर पर बुगेनवेलिया, घर बहुत दूर है, सांच को आंच , आखिर कब तक, खरी कमाई, यूं ही चलते चलते , दरीचों से झांकती उदास हंसी।
इस पुस्तक के प्रकाशक साहित्त्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर – 302003, हैं । 0141- 2310785 व 4022382 पुस्तक प्राप्ति के लिए इन फोन इन नंबरों पर संपर्क किया सकता है। पुस्तक का मूल्य ₹200 है। पुस्तक की पृष्ठ संख्या 140 है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत