गोरक्षा राष्ट्र रक्षा है और गोहत्या राष्ट्र.हत्या है
संसार में तीन पदार्थ अनादि हैं ईश्वर जीव व सृष्टि। जीवात्मा का स्वरूप सत्यए चेतन अल्पज्ञ एकदेशी सूक्ष्म आकार रहित जन्म.मरण धर्म शरीर को धारण करना अपने ज्ञान व अज्ञान के अनुसार अच्छे व बुरे कर्म करना ईश्वर उपासना अग्निहोत्र करना माता.पिता.आचार्यों व अतिथियों की सेवा सत्कार आज्ञा पालन आदि का करना है। इससे वह अभ्युदय व नि:श्रेयस को प्राप्त होता है। जीव जब मनुष्य जीवन में अच्छे. बुरे कर्मों को करता है तो कर्मों की कुछ स्थितियां ऐसी भी आती है जब किसी को मनुष्य काए किसी को गो का एवं अन्यों को अन्य.अन्य प्राणियों का जन्म मिलता है। गो को ही वर्तमान भाषा में गाय कहा जाता है। गाय इस संसार का एक सर्वोत्तम प्राणी है जिसके मनुष्य पर इतने उपकार हैं कि उनकी गणना नहीं की जा सकती। इसी कारण हमारे पूर्वजों ने गाय को मां की उपमा से नवाजा है। मां के गर्भ में पलकर बच्चा जन्म लेता है और मां के दुग्ध का पान कर उसका शरीर पुष्ट होकर वृद्धि को प्राप्त होता है। गाय का दूध भी मां के दूध के ही समान गुणकारी है। गाय के बाद बकरी का दूध गुणवत्ता में मां व गाय के दुध के कुछ समान होता है परन्तु इनसे कुछ कम हितकर होता है। ऐसा देखा गया है कि यदि किसी निर्धन परिवार में जन्में बच्चे की मां का किसी कारण से निधन हो जाये तो वह गाय और बकरी का दूध पीकर जीवित रहता है व उसकी पालना हो जाती है। अत: वेदों ने गाय के गुणों के कारण उसे गो विश्वस्य मातर: अर्थात् गाय सारे संसार के लोगों की मां है और गो विश्वस्य नाभि: अर्थात् गाय सारे विश्व की नाभि या केन्द्र है की यथार्थ उपमाओं से गौरवान्वित किया है।
आईये देखते हैं कि मनुष्य के जीवन के आधार क्या.क्या हैं मनुष्य का शरीर अन्नमय है। अन्न में गोदुग्ध की गणना भी होती है। सभी अन्नों मे ंगोदुग्ध प्रमुख अन्न है जिसका सेवन करके मनुष्य का शरीर न केवल पुष्ट होता है अपितु निरोगी स्वस्थ बलवान तेजस्वी ओजस्वी मेधावी बुद्धिमान प्रज्ञावान होता है। दुग्ध के अतिरिक्त गाय से गोमूत्र बछड़ा या बछड़ी गोचर्म आदि भी प्राप्त होते हैं। गोमूत्र के अनेक उपयोग हैं जिसमें से औषधीय उपयोग भी होते हैं। कैंसर रोग को ठीक करने के लिए भी गोमूत्र का सेवन किया व कराया जाता है। गोमूत्र हमारे खेतों में एक उपयोगी खाद का काम करता है। इसी प्रकार से गोबर का उपयोग ईधनए रसोई गैस बनानेए घर व यज्ञशाला आदि की लिपाई खाद तैयार करने आदि के रूप में किया जाता है जो प्राय: नि:शुल्क ही हमारे कृषकों को उपलब्ध हो जाता है। गोबर की खाद से जो अन्न उत्पन्न होता है वह शरीर को स्वस्थ व निरोग रखने के साथ उसे बलवान व मेधावी बनाता है। गोबर की खाद से उत्पन्न अन्न को खाकर ही श्रेष्ठ सन्तान का जन्म होता है इसी लिए भगवान राम के पूर्वज व भगवान श्री कृष्ण गोपालन करते थे और अभीष्ट फल प्राप्त करते थे। इसी प्रकार से गो के बछड़े व बछड़ी की भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है।
बछड़े खेती द्वारा अन्न के उत्पादन में काम आते हैं व बैलगाड़ी में जोते जाते हैं तथा बछडय़िां आयु बढऩे के साथ गाय बन कर हमारे परिवार के छोटे.बड़े सभी सदस्यों को गोदुग्ध से अमृतपान कराकर सभी को स्वस्थ व प्रसन्न रखती हैं। इस प्रकार से गाय का मनुष्य प्राणी से मां व पुत्र का सम्बन्ध है।
राष्ट्र क्या होता है। मनुष्यों के समूह से मिलकर एक राष्ट्र बनता है। राष्ट्र की अपनी भौगोलिक सीमायें होती है। वहां की एक मुख्य भाषा होती हैए बड़े राष्ट्रों में एक से अधिक भाषायें भी हो सकती हैं। एक ही प्रकार के रीति.रिवाजए संस्कृति एवं सभ्यता होती है अथवा कुछ बाह्य अन्तर होते हुए भी आन्तरिक एकता उनमें होती है। शिक्षा की व्यवस्था के साथ चिकित्सा की व्यवस्था होती है और सेना भी होती है जो पड़ोसी व अन्य बाह्य किसी शत्रु के द्वारा देश पर हमला करने पर राष्ट्र की रक्षा करती है।
इस कारण से भी राष्ट्र का बलवान व स्वस्थ होना अति आवश्यक है तभी उसका अस्तित्व सुरक्षित रह सकता है। इसके लिए राष्ट्र के नागरिकों को भरपूर अन्न गोदुग्ध, दही, म_ा गोधृत आदि पदार्थों के साथ बैल व गायों की बड़ी संख्या में आवश्यकता होती है। यह गोधन कम होगा तो राष्ट्र सुरक्षित नहीं रह सकता। अत: हमें अपने जीवन की रक्षा की तरह ही गोधन की भी रक्षा करनी चाहिये तभी हम सुरक्षित व सुखी रह सकते हैं अन्यथा हम सुखी कदापि नहीं हो सकते। जिस राष्ट्र में गोहत्या होती है मानों वह राष्ट्र न होकर बुद्धिहीन मनुष्यों का समूह मात्र है।
इसका कारण आगामी पंक्तियों मे महर्षि दयानन्द के शब्दों में प्रस्तुत करेगें। यहां इतना ही कहना समीचीन है कि गोहत्या से गो आदि पशुओं की संख्या में कमी होने से राष्ट्र में गोदुग्ध व इससे निर्मित होने वाले अन्यान्य पदार्थ तथा अन्न की कमी आदि होने से देशवासियों का स्वास्थ्य सुरक्षित नहीं रह सकता। आज अमेरिका बौद्धिक दृष्टि से समुन्नत देश होने पर भी वहां रोग अधिक होते है। तभी तो वहां साइड एफेक्ट वाली अंग्रेजी दवाइयों का प्रयोग सम्भवत: विश्व में सर्वाधिक होता हैै। यदि वहां के लोग बुद्धिमान हैं तो उन्हें स्वस्थ व निरोग रहने की जीवन पद्धति विकसित व उन्नत नहीं करनी चाहिये। यदि ऐसा करने पर भी रोग हो रहे हैं तो फिर उनकी जीवन पद्धति व भोजन.छादन में दोषों का होना ही रोग व दवाओं की भारती मात्रा में खपत का प्रमुख कारण है जिसे या तो वह अब तक जान ही नहीं पाये हैं या जीभ के स्वाद के कारण उसे छोड़ न पाने के कारण रोगी होते हैं। पुनर्जन्म के सिद्धान्त का ज्ञान न होने के कारण भी वह ईश्वर की यथार्थ उपासना व सत्कर्म न करके विनाश के मार्ग को अपना कर अपना व भावी सन्ततियों का भविष्य बिगाड़ रहे हैं जिससे उन्हें वर्तमान व भावी जीवन में भारी हानि होने की सम्भावना है।
वेद में गो को माता व विश्व की नाभि कहकर सम्बोधित किया गया है। गो के प्रति अश्रद्धा प्रकट करने वालों को दण्ड देने का विधान है।
किसी भी प्राणी को अकारण दु:ख देना मनुष्यता नहीं अपितु दानवता है। यह कृत्य निन्दनीय कृत्य है और दु:ख है कि आज सारे संसार में गोहत्या व अन्य प्राणियों की हत्या के इस दुष्कृत्य को सबसे अधिक पढ़े.लिखे बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग कर रहे हैं जो किताबी ज्ञान ही रखते हैं परन्तु यथार्थ ज्ञान व विद्या से शून्य हैं।