यूक्रेन – रूस युद्ध और भारत
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सारा यूरोप पहली बार एक बड़े युद्ध को देख रहा है । युद्ध की विभीषिकाओं ने न केवल यूरोप को बल्कि सारे विश्व के शांति प्रिय लोगों को भी इस समय भयाक्रांत कर दिया है। सन 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका ने जिस प्रकार बम बरसा करके सारे संसार को आतंकित किया था। उसका मंजर फिर न देखना पड़ जाए ? – इस आशंका से सारे संसार के लोग ग्रसित दिखाई दे रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन के सामने इस समय अपने देश के हित इस प्रकार आ खड़े हुए हैं कि उनके लिए यूक्रेन पर हमला करना अनिवार्य हो गया था। इस बात को अमेरिका सहित संसार के सभी देश भली प्रकार जानते हैं। यद्यपि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस समय अतिवादी दृष्टिकोण अपना रहे हैं और उनकी कार्यशैली इस प्रकार की है कि वह सारे संसार को विश्व युद्ध की ओर ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। राष्ट्रीय हितों को सामने रखना विश्व राजनीति में अनिवार्य होता है, लेकिन ऐसा सदा नहीं होता। जब सारी मानवता के हित दांव पर लग रहे हों तो उस समय राष्ट्रीय हितों को तिलांजलि देनी पड़ती है। पर यह बहुत ही दु:खद है कि इस बात को अब पुतिन समझने वाले नहीं हैं।
यूक्रेन को अमेरिका और उसके साथी देशों ने जिस प्रकार अपना मोहरा बनाया है, उससे उसकी स्थिति बड़ी दयनीय हो गई है। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन सचमुच एक कमजोर राष्ट्रपति सिद्ध हो रहे हैं, जिन्होंने अमेरिका को एक स्थान पर नहीं, कई स्थानों पर अपमानित कराया है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि अमेरिका और रूस यदि इस युद्ध में सीधे भिड़ गए तो फिर इसे विश्व युद्ध में परिवर्तित होते समय नहीं लगेगा। पहले और दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने दूर रहकर अपना माल बेचा था। अभी भी उससे यही अपेक्षा है कि वह अपनी बनियागीरी दिखाते युद्ध से दूर भागेगा। वह जानता है कि इस बार पाला किससे पड़ा है ?
विश्व के लोगों को हथियार बेचने वाला देश उन दोनों विश्व युद्धों में बड़ा नेता बन कर उभरा था। लेकिन यदि इस बार इतिहास की परिक्रमा पूर्ण हो गई तो 1945 में जो कुछ अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के साथ किया था उसका हिसाब किताब उसे मय ब्याज लौटाना पड़ जाएगा। अमेरिका इस बात को भली प्रकार जानता है कि वह इस बार रूस से भिड़कर अपना कितना बड़ा नुकसान करवाने की स्थिति में आ जाएगा ? यदि उसका हिसाब किताब नियति ने इस बार वसूलने की तैयारी कर ली हो तो यह अमेरिका के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति होगी।
गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है कि शुभ – अशुभ जो भी कर्म किया जाता है उसका परिणाम अवश्य ही भोगना पड़ता है । संसार के राजनीतिज्ञ कूटनीति के दांव पेंचों में एक दूसरे को नीचा दिखाने का काम करते रहते हैं और अपनी इस प्रकार की गतिविधियों में इतने अधिक संलिप्त हो जाते हैं कि गीता के उपदेश को पूर्णतया या तो भूल जाते हैं या उपेक्षित कर देते हैं।
इनका अध्यात्मवाद इनकी राजनीतिक गतिविधियों में विलीन होकर रह जाता है। यही कारण है कि विश्व राजनीति हृदयहीन लोगों का जमावड़ा बनकर रह गई है।
अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बम बरसाए थे तो लाखों लोग या तो मारे गए थे या अपंग हो गए थे। बहुत देर बाद तक वहां जन्म लेने वाले बच्चे अपंग पैदा होते रहे। आज भी अगस्त के महीने में 6 और 8 तारीख को विश्व के तथाकथित शांतिप्रिय नेता हिरोशिमा नागासाकी में जाकर मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और नाटक करते हुए कहते हैं कि हम संसार के रचयिता परमपिता परमेश्वर से यह भी प्रार्थना करते हैं कि सृष्टि पर्यंत ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना हो।
पर अब जो कुछ रूस के नेता पुतिन यूक्रेन के साथ करते जा रहे हैं और संपूर्ण संसार को तनावग्रस्त कर युद्ध की आग में झोंकने की तैयारी कर रहे हैं , उसे देखकर लगता है कि 1945 में जो कुछ हुआ था उससे संसार के बड़े नेताओं ने कोई शिक्षा नहीं ली।
उस समय अमेरिका ने कहा था कि हिरोशिमा नागासाकी पर बम बरसा करके उसने जापानी नौसेना द्वारा 8 दिसंबर 1941 को अमेरिका के नौसैनिक बेस पर्ल हार्वर पर किए गए हमले का प्रतिशोध ले लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस समय कहा था कि उन्होंने जो बम गिराए हैं, वे 20000 टीएनटी टन की क्षमता के थे। जापान में उस समय पेट्रोल की बड़ी भारी समस्या चल रही थी। विमानों के लिए भी इंधन नहीं था, इसलिए जब अमेरिका के बम वर्षक जहाज जापान के आकाश पर उड़ते हुए दिखाई दिए तो निहत्था जापान अपनी सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं कर पाया था।
जब भारत विश्व गुरु था तो वह युद्ध के नियम बनाया करता था। जिसका एक नियम यह भी होता था कि निहत्थे पर कभी भी हथियार नहीं चलाया जाएगा ।सोते हुए को नहीं मारा जाएगा । पीठ दिखा कर भागते हुए को नहीं मारा जाएगा ।महिलाओं, बच्चों बुजुर्गों और ऐसे सभी लोगों पर हमला नहीं किया जाएगा जो युद्ध क्षेत्र से बाहर हैं। लेकिन आज की तथाकथित सभ्य दुनिया इन नियमों को नहीं मानती। इसमें वीरता या बहादुरी इसी में मानी जाती है कि सोते हुए लोगों को मार लो। निहत्थों को मार लो । गरीबों, असहायों और कमजोरों को मार लो। इस समय बड़े नेताओं के अहंकार आपस में टकरा रहे हैं। इनकी अहम प्रवृत्ति संसार के लिए भारी पड़ती दिखाई दे रही है। जिन लोगों के हृदय में तनिक भी दया भाव नहीं हैं उनके हाथों में बड़े बड़े भारी हथियार आ चुके हैं। वे इन हथियारों का प्रयोग कहां कब कैसे कर बैठें ? – कुछ नहीं कहा जा सकता।
यदि इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन कमजोर पड़ते हैं और आगे नहीं बढ़ते हैं तो रूस एकतरफा भारी विनाश करके युद्धविराम की स्थिति में आ सकता है। यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ने मजबूती के साथ कुछ करना आरंभ कर दिया तो निश्चय ही तीसरा विश्व युद्ध आरंभ हो जाएगा। उसके पश्चात संसार में कितना विनाश होगा ? – कुछ नहीं कहा जा सकता।
इस समय भारत के लिए यही उचित है कि वह बहुत सावधानी से विश्व शक्तियों की गोटियों को देखता रहे। कश्मीर के मुद्दे पर हमारा विश्वसनीय मित्र केवल रूस रहा है । जिसने कई नाजुक क्षणों में हमारा साथ दिया है। इसलिए उसे छोड़ना या उसके विरोध में जाना हमारे लिए उचित नहीं होगा। वैसे भी इस समय रूस और चीन एक साथ हैं और इन्हीं के साथ चीन का पिट्ठू पाकिस्तान भी दुम हिलाता हुआ वहीं वहीं घूम रहा है जहां जहां चीन घूम रहा है।
इसके अतिरिक्त इस समय हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यूक्रेन ने हमें संयुक्त राष्ट्र में कभी साथ नहीं दिया। कश्मीर के बिंदु पर वह पाकिस्तान के साथ खड़ा हुआ दिखाई दिया है। इसलिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाकर यूक्रेन के साथ खड़ा होना भारत के लिए अपने राष्ट्रीय हितों के दृष्टिगत उचित नहीं होगा। ऐसे में यदि चीन पाकिस्तान और रूस का गठबंधन भारत के विरुद्ध बन गया तो हमारे लिए कई परेशानियां खड़ी हो जाएंगी। अमेरिका इस समय वैसे ही कमजोर पड़ता जा रहा है। उस पर अधिक भरोसा करना उचित नहीं होगा। यूक्रेन के साथ उसने जो कुछ किया है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि यूक्रेन के दो भागों को अलग करवाने में उसकी शिथिलता बहुत अधिक सहयोगी रही है । वह यूक्रेन को उकसाता तो रहा पर उसका सही समय पर सहयोग नहीं कर सका । यूक्रेन का अब तक उसने जितना विनाश करा लिया है उससे उबरने में भी यूक्रेन को बहुत समय लग जाएगा।
भारत के लिए उचित होगा कि इस युद्ध को दूर से तटस्थ भाव से देखता रहे। अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए हमें चौकस रहना है ,पर युद्ध को आमंत्रित नहीं करना है। वैसे भी हमारी परंपरागत नीति विश्व शांति के सिद्धांत में विश्वास रखने की रही है। हम शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति पर चलते रहें और तब तक किसी से कुछ नहीं कहें जब तक कि वह हमारे राष्ट्रीय हितों पर चोट न करे।
युद्ध भौतिकवाद में पगला गए लोगों का उन्माद होता है। यही कारण है कि अब तक जितने भर भी महायुद्ध हुए हैं वह सब भौतिकवाद में पगलाए यूरोप की धरती पर हुए हैं । आध्यात्मिक मनोवृति के लोग शांत रहते हैं। यद्यपि उनकी शांति का अर्थ कायरता नहीं होता। वह अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति सावधान रहते हैं और राष्ट्रीय हितों को चोटिल करने वाले लोगों का मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता रखते हैं। भारत को अपने पक्ष पर मजबूत रहना चाहिए , पर अनावश्यक किसी प्रकार के नरसंहार या रक्तपात में सम्मिलित नहीं होना चाहिए।
भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस सारे घटनाक्रम के विषय में कहा है कि दोनों देशों को बातचीत के माध्यम से अपनी समस्या का समाधान करना चाहिए । भारत बातचीत का पक्षधर है प्रधानमंत्री मोदी से रूस के राष्ट्रपति पुतिन की बातचीत हुई है, जिन्होंने भारत की भूमिका की सराहना की है ।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि यदि इस युद्ध में भारत को कूदेगा तो निश्चित रूप से यह विश्व युद्ध में परिवर्तित हो जाएगा ।क्योंकि तब नाटो देश या तो घर बैठे मारे जाएंगे या फिर उनके लिए युद्ध में कूदना अनिवार्यता हो जाएगा। भारत की चुप्पी इस समय बहुत महत्वपूर्ण है। जिसे टूटती हुई देखने के लिए कई देश प्रतीक्षा कर रहे हैं। स्पष्ट है कि भारत की चुप्पी ही भारत की आत्मरक्षा का एक हथियार बन चुकी है और इस प्रकार की चुप्पी से भारत का महत्व भी बढ़ता जा रहा है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत