10 मार्च को तय होगा, किसका बनेगा अगला राष्ट्रपति ?
नरेंद्र नाथ
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, पर इस बीच इसी साल होने वाले एक और चुनाव पर जोर आजमाइश शुरू हो चुकी है। वह है देश के नए राष्ट्रपति का चुनाव। इसी साल जून-जुलाई में जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का टर्म पूरा होगा, देश में नए राष्ट्रपति का चुनाव होगा। इस चुनाव के लिए अभी से सियासी हिसाब-किताब शुरू हो गया है। चूंकि इसमें आम लोगों की जगह चुने हुए जनप्रतिनिधियों की भागीदारी होती है, इसलिए इसमें नए-नए समीकरण बनने-बिगड़ने की संभावना बनी रहती है। जाहिर है, विपक्ष को इस बार राष्ट्रपति के चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार को दबाव में लाने का मौका दिख रहा है।
पिछली बार 17 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति का चुनाव हुआ था। तब लगभग पचास फीसदी वोट एनडीए के पक्ष में थे, साथ ही उसे क्षेत्रीय दलों में भी अधिकतर का समर्थन मिल गया था। लेकिन इस बार आंकड़े उस तरह से एनडीए के पक्ष में नहीं हैं। इसी गणित के बीच खबर आई कि क्षेत्रीय दल विपक्ष से एक मजबूत उम्मीदवार की तलाश में जुट चुके हैं। चर्चाओं का दौर शरद पवार से लेकर लेकर नीतीश कुमार तक गया। लेकिन नीतीश कुमार ने इस चर्चा को पूरी तरह गलत बताया। दूसरी तरफ विपक्षी नेताओं ने इस चर्चा का खारिज करते हुए कहा कि जब तक उनके पास 10 मार्च के नतीजे सामने नहीं आते हैं, तब तक इस बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं है। नतीजों के बाद ही विपक्षी धड़े के पास स्पष्टता होगी कि वे एनडीए को किस हद तक चुनौती दे सकते हैं।
पांच राज्यों के नतीजे
उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से बीजेपी की अगुआई वाला एनडीए अपना दबदबा और बढ़ाना चाहेगा। यही नहीं एनडीए के अंदर का अनुपात भी चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा। अगर बीजेपी को बेहतर परिणाम मिले, तो उसे अपने हिसाब से अगले राष्ट्रपति को चुनने में मदद मिलेगी। अभी तक राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट के जो समीकरण हैं, उस हिसाब से एनडीए अपने दम पर अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। मगर फिर भी उत्तर प्रदेश में 300 से अधिक विधायकों के कारण एनडीए मजबूत स्थिति में है। उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक विधायकों के वोट हैं और उनकी वैल्यू भी सबसे अधिक है। इस हिसाब से बीजेपी को उम्मीद है कि अगर वह इस बार के चुनाव में पिछली बार के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब हो गई, तो वह बहुमत के और करीब पहुंच जाएगी। लेकिन अगर उत्तर प्रदेश में जीत के बावजूद बीजेपी विधायकों की संख्या में कमी हुई, तो दिक्कत आ सकती है। उत्तराखंड और गोवा में भी बीजेपी के सामने पहले की तरह नंबर बनाए और बचाए रखने की चुनौती है।
उधर एसपी या बीएसपी अगर उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन करती है तो फिर इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी राजनीतिक दलों को फायदा मिोगा। विधायकों के अधिक वोट वैल्यू वाले अधिकतर राज्य मसलन- तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल आदि में गैर कांग्रेसी, गैर बीजेपी पार्टियां हैं। बिहार में भी पहले के मुकाबले आरजेडी की संख्या काफी अधिक है। ऐसे में बीजेपी को अपना मनमाफिक उम्मीदवार चुनने में दिक्कत हो सकती है।
दरअसल बीजेपी इस साल भी 2017 वाले राष्ट्रपति चुनाव की तरह अपनी पसंद का उम्मीदवार खड़ा करना चाहती है। इसके लिए जो मौजूदा तस्वीर उभर रही है उस हिसाब से न सिर्फ उसे उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत हासिल करनी होगी, बल्कि पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में भी अच्छा करना होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो बीजेपी के लिए अपने दम पर अपनी पसंद का राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर उसे जितवाना आसान नहीं होगा। पिछली बार रामनाथ कोविंद को नया राष्ट्रपति बनाकर बीजेपी ने चौंकाया था। तब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी ने अपने दम पर बीजेपी से जुड़े पुराने दलित चेहरे को उतारा था। उस समय नंबर उसके पक्ष में थे तो दूसरे दलों से अधिक मदद की जरूरत भी नहीं थी।
वहीं कांग्रेस के सामने भी इस चुनाव में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने का बड़ा सवाल है। वह अपने विधायकों की संख्या को बढ़ाने के साथ ही अपनी ताकत भी चुनाव में दिखाना चाहेगी। लेकिन ओपिनियन पोल के अनुसार पंजाब में पार्टी के विधायकों की संख्या बनाए रखना बेहद कठिन लग रहा है। ऐसे में अगर दोनों राष्ट्रीय दल अपने-अपने गठबंधन में बारगेन पावर खोते हैं, तो फिर दोनों क्षेत्रीय दलों की आम राय वाले उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव में उतारने का प्रयास कर सकते हैं। जाहिर है, आने वाले राष्ट्रपति चुनाव में जहां नजदीकी लड़ाई देखते हुए एक-एक वोट की अहमियत होगी, वहीं पांच राज्यों के चुनाव के दौरान वहां हुए प्रदर्शन पर भी सभी की नजर रहेगी।
वोटों का गणित
राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट की वैल्यू 10,98,882 होती है। किसी को जीतने के लिए कम से कम 5.49 लाख वोटों की जरूरत होती है। एक एमपी के वोट की वैल्यू 708 होती है। देश के सभी राज्यों के कुल विधायकों की तादाद 4120 है, जिनके वोट की कीमत 5,49,474 है। इस मामले में जिस राज्य का विधायक हो, वहां की आबादी देखी जाती है। इसके साथ ही उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी ध्यान में रखा जाता है। वैल्यू निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को कुल एमएलए की संख्या से डिवाइड करना होता है। इस हिसाब से उत्तर प्रदेश में विधायक के वोट की कीमत 83,824 होती है। पंजाब में वोट की कीमत 13,572, उत्तराखंड में 4,480, गोवा में 800 और मणिपुर में 1080 है। मतलब कुल वोट से दस फीसदी से अधिक इस चुनाव में तय होगा। साथ ही हालिया ट्रेंड देखें तो पिछले चार बार से वाइस प्रेजिडेंट को प्रेजिडेंट बनाने की परंपरा टूट गई है। कृष्णकांत और भैरों सिंह शेखावत को वाइस प्रेजिडेंट पद से प्रेजिडेंट बनने का मौका नहीं मिला। उनके बदले एपीजे अब्दुल कलाम और प्रतिभा पाटिल प्रेजिडेंट बनीं। फिर प्रणब मुखर्जी बने और हामिद अंसारी को मौका नहीं मिला। इसके बाद रामनाथ कोविंद बने।