रूस ने दी चुनौती, अब क्या करेगा अमेरिका?

रंजीत कुमार

रूस की सीमा से लगे पूर्वी यूक्रेन के दोनबास इलाके के विद्रोही दोनेत्स्क और लुहांस्क राज्यों को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देकर रूस ने विश्व भू-राजनीति में अपनी अहमियत का अहसास कराया है। रूस के इस अप्रत्याशित कदम का किसी ने अनुमान नहीं किया था, हालांकि इस तरह की अटकलबाजी चल रही थी कि रूस दोनों राज्यों को मान्यता दे सकता है।
करीब दो महीने से सीमाओं पर टैंकों, तोपों, मिसाइलों के साथ बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों की तैनाती की वजह से रूस और यूक्रेन के बीच तनाव तो पैदा हुआ ही, अमेरिका भी इस विवाद में कूद पड़ा। वह यूक्रेन को नाटो का भावी सदस्य मानते हुए यह कह रहा था कि नाटो के किसी भी सदस्य के खिलाफ हमला, अमेरिका पर हमला माना जाएगा। पश्चिमी हलकों में कहा जा रहा था कि रूस ने यूक्रेन पर सैन्य अतिक्रमण किया तो रूस और नाटो के बीच सीधा सैन्य संघर्ष हो सकता है, जिसके अकल्पनीय नतीजे न केवल यूरोप को झेलने पड़ेंगे बल्कि बाकी दुनिया भी इससे अछूती नहीं रहेगी। इन सभी चेतावनियों की परवाह किए बगैर रूस ने अमेरिका को सीधा ललकारा है। देखना है कि नाटो यूक्रेन के दोनों विद्रोही राज्यों में कथित रूसी शांति रक्षक सेना का किस तरह मुकाबला करता है।

नाटो के विस्तार पर रोक
1991 में सोवियत संघ विघटित होने के बाद यूक्रेन सहित 15 स्वतंत्र देशों में बंट गया। उसके बाद से ही रूस विश्व राजनीति में पृष्ठभूमि में चला गया था। लेकिन अपनी नवअर्जित खनिज संपदाओं के बल पर रूस ने अपनी सैनिक ताकत बहाल की और अब वह अमेरिका और यूरोपीय देशों को चुनौती दे रहा है। रूस ने इन अनपेक्षित कदमों के जरिए अमेरिकी अगुआई वाले नाटो के विस्तार को रोकने की ऐसी कोशिश की है, जिसकी कोई काट अमेरिकी खेमे वाले देशों के पास नहीं दिखती।
2014 में यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर रूस ने अमेरिकी और यूरोपीय ताकतों को चेतावनी दी थी कि नाटो का विस्तार रूसी सीमाओं से लगे पूर्व यूरोपीय देशों तक करने की कोशिश की तो रूस इसका कड़ा प्रतिरोध करेगा। लेकिन अमेरिका ने नाटो के जरिए न केवल रूस की सामरिक घेराबंदी जारी रखी बल्कि उसे उकसाने वाले कई अन्य कदम भी उठाए। इनमें रूस से सटे पोलैंड में एंटी मिसाइल सिस्टम लगाना और अन्य पूर्व यूरोपीय देशों में नाटो की सेना भेजना शामिल है।
जाहिर है, ताजा रूसी कार्रवाई इन सबका एकमुश्त जवाब है। दोनेत्स्क (आबादी: 44 लाख, क्षेत्रफल: 8702 वर्गकिलोमीटर) और लुहांस्क (आबादी: 15 लाख, क्षेत्रफल: 8777 वर्ग किलोमीटर) राज्यों को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देने के बाद स्वाभाविक ही रूस का इन पर सामरिक और राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा। जवाब में अमेरिकी गुट रूस के खिलाफ आर्थिक और तकनीकी प्रतिबंध लगाने के अलावा उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
ध्यान रहे यह कोई अचानक की गई कार्रवाई नहीं है। पहले रूस ने यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहांस्क राज्यों में रूस समर्थक विद्रोही तत्वों को उकसा कर इन दोनों राज्यों की राजधानियों के मुख्य सरकारी भवनों और विधायिकाओं पर कब्जा करवा लिया और दोनेत्स्क पीपल्स रिपब्लिक और लुहांस्क पीपल्स रिपब्लिक की स्थापना करवाई। उसके बाद जब पूरी दुनिया इस उलझन में थी कि कहीं रूस यूक्रेन पर हमला न कर दे, अचानक इन दोनों राज्यों को संप्रभुतासंपन्न देशों के रूप में औपचारिक मान्यता देकर उसने सबको चौंका दिया।
यूक्रेन के सीमांत इलाकों में एक लाख 90 हजार सैनिकों को तैनात करने के पीछे वजह भी अब पूरी तरह साफ हो गई है। दोनेत्स्क और लुहांस्क विद्रोही इलाकों को स्वतंत्र राज्य का दर्जा घोषित करने के बाद रूस ने अब यह अच्छा बहाना हासिल कर लिया है। सैन्य कार्रवाई की नौबत आई तो वह यही कहेगा कि उसकी सेनाएं इन दोनों देशों की सरकारों के निमंत्रण पर उनकी सुरक्षा के लिए शांतिरक्षक मिशन पर भेजी गई हैं।
रूस की इस कार्रवाई के बाद अब अमेरिका और नाटो का अगला कदम क्या होगा? दोनेत्स्क और लुहांस के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा तो अमेरिका न कर दी है, लेकिन इससे आगे क्या? क्या रूस के इस कदम को निरस्त करने के लिए कोई सैन्य कार्रवाई भी की जाएगी? अमेरिका ऐसी हिम्मत करेगा, इसमें संदेह है। जहां तक आर्थिक प्रतिबंधों का सवाल है तो रूस ने यह आकलन करके ही ताजा कदम उठाया है कि वह संभावित आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कैसे करेगा। यह साफ हो चुका है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूस के आर्थिक बहिष्कार से निबटने में चीन रूस का साथ देगा। इस तरह चीन और रूस का भी एक गठजोड़ मजबूती हासिल करेगा, जो अमेरिका और यूरोपीय ताकतों के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित होने वाला है। रूस की जर्मनी तक जाने वाली नॉर्डस्ट्रीम गैस पाइपलाइन को अगर निष्क्रिय कर दिया गया तो उस स्थिति में रूस अपना पेट्रोलियम संसाधन चीन को सप्लाई करेगा। चीन के लिए भी अपनी ऊर्जा सुरक्षा मजबूत करने का यह एक अच्छा मौका होगा।
आगे क्या करेगा रूस
सही अर्थों में रूस ने ताजा कदम उठाकर नाटो के अस्तित्व को चुनौती दी है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद जब रूसी अगुआई वाले वारसा पैक्ट सैन्य संगठन का विघटन कर दिया गया तो अमेरिकी खेमे ने वादा किया था कि नाटो की मौजूदगी वारसा संधि के पूर्व सदस्य देशों बुल्गारिया, हंगरी, पोलैंड आदि देशों में नहीं होगी। लेकिन नाटो ने रूस की सीमाओं पर अपनी सेनाएं तैनात कर रूसी अहं को चोट पहुंचाई। रूस ने ताजा कदम उठाकर यह सुनिश्चित किया है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की प्रक्रिया पर विराम लगेगा। अब रूस के इस कदम के बाद सोवियत संघ से अलग हुए अन्य बाल्टिक गणराज्यों- लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया- में भी दहशत पैदा हो गई है। रूस की बुरी नजर भविष्य में उन देशों पर भी पड़ सकती है। नाटो के सामने अब बड़ी चुनौती इन बाल्टिक गणराज्यों को बचाने की होगी।

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