देश के अगले राष्ट्रपति के लिए सुगबुगाहट आरम्भ हो चुकी है। जुलाई 2022 में वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूर्ण हो रहा है । ऐसे में वर्तमान में पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यदि इन राज्यों में भाजपा अधिकतम विधायक लाने में सफल होती है तो निश्चित रूप से उसे इन विधायकों का लाभ राष्ट्रपति चुनाव में मिलेगा। यही कारण है कि भाजपा इस समय इन सभी प्रांतों में अपनी सरकार बनाने का हर संभव प्रयास करती हुई दिखाई दे रही है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि इन प्रान्तों के विधानसभा चुनावों पर राष्ट्रपति के चुनाव की छाया स्पष्ट दिखाई दे रही है।
सभी राजनीतिक दलों ने चुपचाप अगले राष्ट्रपति के नाम पर विचार करना भी आरंभ कर दिया है । अभी पिछले दिनों शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा है कि विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में यदि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम आता है तो उनकी पार्टी उनके नाम का समर्थन नहीं करेगी।
क्योंकि वह एनडीए का हिस्सा हैं। इस प्रकार के बयान से स्पष्ट होता है कि पक्ष – विपक्ष अगले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सक्रिय हो चुके हैं और राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी हैं।
हमारा मानना है कि रायसीना हिल्स पर निष्पक्ष और राष्ट्रवादी छवि का व्यक्ति पहुंचना चाहिए। जितना ही निष्पक्ष और राष्ट्रवादी व्यक्ति राष्ट्रपति भवन में बैठेगा उतनी ही लोकतंत्र और संसदीय परंपराओं का निर्वाह करने में सुविधा होगी। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो हामिद अंसारी का अनुकरण करता हो, राष्ट्रपति भवन के लिए उचित नहीं हो सकता। हमें इस समय वास्तविक पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र की मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए राष्ट्रपति भवन के लिए किसी व्यक्तित्व का चयन करना चाहिए। वह व्यक्ति ऐसा हो जो भारत के संविधान के प्रति निष्ठा रखता हो, भारत की वैदिक संस्कृति को विश्व की सर्वोत्कृष्ट संस्कृति मानने में उसे हिचक नहीं होनी चाहिए और ना ही श्री राम और श्री कृष्ण जी जैसे महापुरुषों का नाम लेने में उसे कोई आपत्ति होनी चाहिए।
यूं तो ऐसे कई नाम इस समय भारत की राजनीति में हो सकते हैं लेकिन उन सबमें एक महत्वपूर्ण नाम इस समय आरिफ मोहम्मद खान का उभरकर सामने आता है। आरिफ मोहम्मद खान मुस्लिम समाज से होकर भी भारतीय सामाजिक परंपराओं और राष्ट्रवादी चिंतन के प्रतिनिधि पुरुष हैं। उन्हें किसी मुस्लिम की मूर्खता को मूर्खता कहना , आतंकवादी को आतंकवादी कहना और किसी भी राष्ट्र विरोधी व्यक्ति के चिंतन को राष्ट्र विरोधी चिंतन कहना आता है। उनकी वेदों में भी निष्ठा है और भारतीय साहित्य पर उन्हें अच्छी व गहरी पकड़ है।
आरिफ मोहम्मद खान की निष्पक्षता और साहस के साथ अपनी बात को कहने की उनकी संकल्प शक्ति सबसे पहले उस समय देखने को मिली थी, जब उन्होंने 1986 में विवादास्पद शाहबानो मामले को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए अपने पद और कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दे दिया था। यदि उनके भीतर सत्तालोलुपता होती तो वह उस समय की सरकार की नीतियों की आलोचना न करके शाहबानो प्रकरण में सरकार का समर्थन करते। राजनीति में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो अंतरात्मा की आवाज पर काम करते हैं । उन अत्यंत विषम परिस्थितियों में आरिफ मोहम्मद खान ने यह दिखाया कि वह अंतरात्मा की आवाज पर काम करने वाले राजनीतिज्ञ हैं और यदि कोई उनकी अंतरात्मा की आवाज को कुचलेगा तो वह सत्ता पद को त्यागने में तनिक भी देर नहीं करेंगे। ऐसे लोग सिद्धांतों के आधार पर काम करने वाले होते हैं। राजनीति के लिए यह सच है कि इस क्षेत्र में उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो सिद्धांतों की बात करने में विश्वास रखते हों।
श्री खान आजकल केरल के राज्यपाल हैं और वह वहां बैठकर भी इस्लामिक कुरीतियों और रूढ़िवादिता के विरुद्ध बड़ी निर्भीकता से अपनी बात कहते रहते हैं। अपनी जन हितैषी छवि वाले खान ने पिछले दो दशक के दौरान वैदिक साहित्य का भी अध्ययन किया है। जिससे उनका ज्ञान और भी अधिक शुद्ध और निर्मल हुआ है । यही कारण है कि वह श्रीराम के प्रति निष्ठा व्यक्त करने में तनिक भी संकोच नहीं करते । वैदिक संस्कृति की मानवतावादी सोच और चिंतन को भी वह खुले दिल से स्वीकार करते हैं। अपनी इसी प्रकार की छवि के चलते भारत में वह वास्तविक पंथनिरपेक्ष राजनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं।
आरिफ मोहम्मद खान वी0पी0 सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार में भी मंत्री रहे थे । भाजपा में शामिल होने से पहले कुछ समय के लिए वह बहुजन समाज पार्टी में भी रहे थे।
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा के दिग्गज नेता श्री खान की समझ की गहराई और निर्मलता को समझते थे। यही कारण रहा कि पिछले 20 – 25 वर्षों में भाजपा के इन नेताओं ने विभिन्न धार्मिक मुद्दों पर आरिफ मोहम्मद खान की राय लेना उचित समझा।
आरिफ मोहम्मद खान को केरल जैसे संवेदनशील राज्य का राज्यपाल बनाया जाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह और भी अधिक अच्छी बात है कि उन्होंने केरल राजभवन में जाकर भी अपनी मान्यताओं और सिद्धांतों से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया है। वह तलाक , हलाला और हिजाब जैसी कुप्रथाओं के विरोधी रहे हैं। इस संबंध में उनकी सोच और विचारों का उद्धरण वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने वक्तव्यों में दिया है।
राजनीति एक कीचड़ है। इस कीचड़ में बनी दलदल में कितने ही लोग फँसकर रह जाते हैं। जबकि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कीचड़ और दलदल में उतरकर भी अपना स्थान बनाते हैं। निश्चय ही आरिफ मोहम्मद खान उन्हीं लोगों में गिने जाते हैं । राजनीति में गहराई से जुड़कर भी उन्होंने अपने कपड़ों को कीचड़ में सनने से बचाया है। उनकी इस प्रकार की छवि को आरएसएस ने भी स्वीकार किया है । इसके अतिरिक्त भारतीय साहित्य में उनकी गहरी रुचि को भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी स्वीकृति प्रदान की है।
भारतीय संस्कृति के प्राण भगवान श्रीराम के प्रति भी उनके विचार बहुत सराहनीय हैं । उनका स्पष्ट मानना है कि- “राम इस देश की आत्मा हैं। यह मायने नहीं रखता कि मैं मुसलमान हूं, बल्कि राम की आत्मा मेरे भीतर और इस देश में रहने वाले हर किसी के भीतर मौजूद है। आठवीं सदी के प्रसिद्ध अरब यात्री और इतिहासकार, अल-मसूदी ने भी कहा है कि हिंदू बहुदेववादी नहीं थे।”
आरिफ मोहम्मद खान का जन्म 1951में गांव मौहम्मदपुर बरवाला तहसील स्याना जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पास ऊर्जा से लेकर नागरिक उड्डयन तक के कई मंत्रालय थे। वह 1980,1984,1989 व 1998 में लोकसभा के सदस्य चुने गए। इसके अतिरिक्त 1977 में वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि उन्हें राजनीति और शासन का का गहरा ज्ञान है। सबसे बड़ी बात है कि वह राष्ट्रवादी चिंतन में विश्वास रखते हैं। जिन लोगों ने एक आक्रमणकारी के रूप में भारतीय धर्म व संस्कृति को किसी भी प्रकार से क्षतिग्रस्त किया ,उस आक्रमणकारी को ऐसा ही आतंकवादी कहने में भी श्री खान को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होती।
जिन लोगों को राष्ट्रपति भवन में किसी अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति को भेजने की इच्छा रहती है ,उनके लिए भी श्री आरिफ मोहम्मद खान का नाम स्वीकार्य होना चाहिए। यदि कोई राजनीतिक दल उनके नाम पर इसके उपरांत भी असहमति व्यक्त करता है तो उसके राजनीतिक पूर्वाग्रह को इसी दृष्टिकोण से देखना चाहिए कि वह मुस्लिम रूढ़िवादिता और कट्टरवाद में विश्वास रखने वाला राजनीतिक दल है।
अभी तक भारत के कुल 14 राष्ट्रपति हुए हैं। जिनका कार्यकाल इस प्रकार रहा है –
1 डॉ राजेंद्र प्रसाद ( जनवरी 26, 1950 – मई 13, 1962)
2- डॉ. एस0 राधाकृष्णन ( मई 13, 1962 – मई 13, 1967)
3 – डॉ. जाकिर हुसैन ( मई 13, 1967 – मई 03, 1969)
डॉ जाकिर हुसैन की पद पर रहते हुए मृत्यु हो गई थी, इसलिए कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में उपराष्ट्रपति वी0वी0 गिरी ने कार्यभार संभाला (मई 03, 1969 – जुलाई 20, 1969) जब श्री विवेक री चुनाव में खड़े हो गए तो न्यायमूर्ति मोहम्मद हिदायतुल्लाह ( जुलाई 20, 1969 – अगस्त 24, 1969) तक कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे।
4 – वराहगिरी वेंकट गिरी ( अगस्त 24, 1969 – अगस्त 24, 1974)
5 – फखरुद्दीन अली अहमद ( अगस्त 24, 1974 – फरवरी 11, 1977)
डॉ फखरुद्दीन अली अहमद की भी पद पर रहते हुए मृत्यु हो जाने पर उपराष्ट्रपति बी.डी. जत्ती ने कार्यभार संभाला। (फरवरी 11, 1977 – जुलाई 25, 1977)
6 -नीलम संजीव रेड्डी (जुलाई 25, 1977 – जुलाई 25, 1982)
7 -ज्ञानी जैल सिंह (जुलाई 25, 1982 – जुलाई 25, 1987)
8 -आर. वेंकटरमण (जुलाई 25, 1987 – जुलाई 25, 1992)
9 – डॉ शंकर दयाल शर्मा ( जुलाई 25, 1992 – 24 जुलाई 1997)
10 -के. आर. नारायणन ( जुलाई 25, 1997 – जुलाई 25, 2002)
11 – डॉ एपीजे कलाम ( जुलाई 25, 2002 – जुलाई 25, 2007)
12 – श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ( जुलाई 25, 2007 – जुलाई 25, 2012)
13 – प्रणब मुखर्जी ( जुलाई 25, 2012 – जुलाई 25, 2017)
14 – श्री रामनाथ कोविंद (जुलाई 25, 2017 से अब तक )
अब 25 जुलाई 2022 को वर्तमान राष्ट्रपति श्री गोविंद का कार्यकाल पूर्ण हो रहा है।
हमारा मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी को श्री खान के नाम पर विचार करते हुए उन्हें राष्ट्रपति भवन भेजने का मार्ग सुगम करना चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत