उठो! स्वाभिमानी भारत के निर्माण के लिए
पाकिस्तान ने अपने जन्म के पहले दिन से ही भारत के लिए समस्याएं खड़ी करने का रास्ता अपनाया। पराजित मानसिकता के इतिहास बोध से ग्रसित भारत के शासक वर्ग ने पाकिस्तान द्वारा देश में और देश के बाहर बोयी गयी समस्याओं के काटने पर तो ध्यान दिया, पर कभी इन समस्याओं के जनक को ललकारने या उसे पाठ पढ़ाने का साहस नही दिखाया। फलस्वरूप हम पर पाकिस्तान प्रभावी होता चला गया। उसने हमारी मानवता को हमारी दुर्बलता समझा। हमने जितना ही अधिकअपने आपको समेटने और सीमित रखने का प्रयास किया, पाकिस्तान उतना ही हमारे सिर पर चढ़ता गया। हमने जम्मू कश्मीर से अपने ही लोगों का पलायन होने दिया, हमने 26/11 को होने दिया, हमने संसद पर हमला होने दिया और कारगिल में शत्रु को अपनी चालें चलने दीं। हम शत्रु से बचने का एक ही उपाय खोजते रहे कि अपनी ‘सीमा’ पर कांटेदार बाड़ लगा लो। ‘चीन की दीवार’ ने चीन को विदेशी आक्रमणों से चाहे सुरक्षा प्रदान कर दी थी, परंतु इस दीवार का निर्माण क्यों किया गया? जब यह प्रश्न आज भी पूछा जाता है, तो अध्यापक यही बताता है कि उस समय चीन एक दुर्बल राष्ट्र था, और नित्य प्रति के होने वाले आक्रमणों से अपने बचाव के लिए उसने दीवार बनाने का यह सरल रास्ता अपना लिया। वैसे ही हमने अपनी सीमा पर कंटीले तार लगा दिये, उन पर कितना व्यय हुआ? यह हममें से कितनों ने सोचा है। सचमुच इतना भारी व्यय हुआ कि इतने से पाकिस्तान को सदियों के लिए पाठ पढ़ाया जा सकता था।
अब नरेन्द्र मोदी ने पिछले सप्ताह 12 अगस्त को पाकिस्तान के निकट जाकर उसे छद्म युद्घ लडऩे के लिए बड़ी साहसपूर्ण लताड़ लगायी। उन्होंने पाकिस्तान को एकप्रकार से खुले युद्घ का खुला निमंत्रण ही दे डाला और कह दिया कि पाकिस्तान में भारत से सीधा युद्घ लडऩे का साहस नही है। सारे देश ने अपने नेता के साहस को ‘दाद’ दी। भारत में ‘जिहादी’ उन्माद फेेलाकर भारत को इस्लामिक झण्डे के नीचे लाने के लिए पाकिस्तान ही नही अपितु बांग्लादेश भी सक्रिय रहा है। एक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि पश्चिम बंगाल में अठारह प्रतिशत और आसाम में 32 प्रतिशत विधानसभा क्षेत्रों में बंगलादेशी प्रवासी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की स्थिति में है। बिहार के किशनगंज में 96 प्रतिशत बंगलादेशी प्रवासियों ने मतदान में भाग लिया। बात स्पष्ट है कि अपने चहेते जनप्रतिनिधियों को देश की संसद या विधानसभाओं में भेजकर अपने लिए अनुकूल नियत या कानून बनवाना इन घुसपैठियों का मुख्य उद्देश्य है। वोटों के लालची गिद्घ प्रवृत्ति के भारतीय राजनीतिक अपने देशवासियों के भाग को या अधिकार को छीनकर इन घुसपैठिए शत्रुओं को देने में तनिक भी नही लजाते, जिससे देश की स्थिति बहुत ही हास्यास्पद होती जा रही है।
आसाम की लगभग 85 सीटों पर (कुल सीट 126) बांगलादेशी घुसपैठिए निर्णायक भूमिका निभाते हैं। आसाम और उसके पड़ोसी भारतीय राज्यों के हिंदू अपनी स्थिति के लिए आंसू बहा रहे हैं और उन्हें अपने देश में ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है जो कि किसी भी स्वाभिमानी देश के लिए लज्जाजनक है।
इतना ही नही त्रिपुरा में एन.एल.एफ.टी. व ए.टी.टी.एफ. आसाम में उल्फा व एन.डी.एफ.बी. मेघालय में एच.एन.एल.सी. व ए.एन.वी.सी. नागालैंड में ए.एस.सी.एन. व आई.एम. मणिपुर में पी.एल.ए. व यू.एन.एल.एफ. जैसे जो अलगाववादी संगठन सक्रिय है, उन सबको भोजन पानी की व्यवस्था बांग्लादेश से होती है। बांग्लादेश के लगभग दस करोड़ लोग भारत में घुसपैठिए बन चुके हैं, जो उत्तर भारत तक फेेल गये हैं। इन घुसपैठियों के छोटे-छोटे बच्चे रेलवे स्टेशनों पर जेबतराशी का काम करते हैं और इससे अलग भी कई प्रकार के जघन्य अपराध करते हैं। बांग्लादेश के बंदरबन, रंगामारी, चितरगोंग, खगराचरी, मौलवी बाजार, हबीबगंज, स्लीट मेमनसिंग, कुरीग्राम को मिला और ढाका में पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय आतंकी तैयार होकर आते हैं और भारत के विकास को विनाश में परिवर्तित करने के लिए कार्य करते हैं। दक्षेस जैसे क्षेत्रीय सहयोग संगठन में पाकिस्तान और बांग्लादेश यद्यपि महत्वपूर्ण सहयोगी देश हंै, परन्तु इनकी मित्रता में भी विष है और इनके सहयोग में भी विनाश की योजनाएं हैं। इसलिए इन जैसे देशों को भूलकर भी भारत को अपना मित्र नही मानना चाहिए।
‘मूर्खों का स्वर्ग’ सचमुच धर्मनिरपेक्ष भारत है। इसी भारत में बहुत से ऐसे बुद्घिजीवी निवास करते हैं, जो वास्तव में तो बुद्घि के शत्रु ही हैं, ये लोग आज तक पाकिस्तान का उल्लेख आते ही कहने लगते हैं कि भारत पाक की विरासत सांझा है, इतिहास सांझा है। पर पिछले 67 वर्ष में पाकिस्तान ने अपने मदरसों और कॉलेजों के माध्यम से ‘इतिहास बदलो’ का जो विशेष अभियान चलाया है, उसी का परिणाम है कि आज पाकिस्तान की तीसरी पीढ़ी पाकिस्तान का जन्म 14 अगस्त 1947 को नही अपितु सन 712 ई. में मौहम्मद बिन कासिम के पहले आक्रमण से मानने लगी है। वहां ये बताया जा रहा है कि पाकिस्तान को उसी समय एक स्थिर आधार प्राप्त हो गया था। गांधीजी और गांधी की कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के जिन आदर्शों, को अपने सामने रखकर चलते रहे और ‘हिंदू मुस्लिम’ भाई-भाई का नारा लगा-लगाकर दिन में सपने देखते रहे। उन्हीं गांधीजी और उनकी कांग्रेस को पाकिस्तान में हिंदू नेता और हिंदू पार्टी कहा जाता है, जिन्होंने मुसलमानों पर अत्याचार ढहाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इस ‘मानसिकता का बीजारोहण’ पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना ने ही कर दिया था। जब 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या की गयी थी तो उस समय पाकिस्तान के इस संस्थापक और गांधीजी के ‘कायदे आजम’ ने गांधीजी को एक ‘महान हिन्दू-नेता’ कहकर श्रद्घांजलि दी थी। जब उन्हें इस प्रकार की शब्दावली के लिए टोका गया तो उन्होंने कह दिया था कि मैंने जो कुछ भी लिखा है वह सोच समझकर लिखा है, इसलिए परिवर्तन की आवश्यकता नही है।
1998 के अपने अंक में ‘द हेराल्ड’ ने लश्कर-ए-तैय्यबा के अमीर मौहम्मद खान का साक्षात्कार प्रकाशित किया था, जिससे पता चलता है कि भारत के संदर्भ में ‘जिहाद’ में क्या अर्थ है। उसने कहा था-‘‘हमारा जिहाद अपरिहार्य रूप से गैर मुस्लिमों, विशेषकर हिन्दुओं और यहूदियों जो मुसलिमों के दो प्रमुख शत्रु हैं, तक ही सीमित है। कुरान में भी यह कहा गया है कि ये दोनों इस्लाम के शत्रु हो, सकते हैं। ये दोनों शक्तियां मुस्लिमों और पाकिस्तान के लिए परेशानियां उत्पन्न करती हैं। मेरा मानना किजैसा किकुरान में कहा गया है हिंदू मुशरिक हैं, और हिंदूवाद शिव का बदतर रूप है, जहां तीस करोड़ देवताओं की पूजा होती है, यहीं से सिर्फ अन्य देशों में फेेल रहा है। इस तरह हिंदू प्रत्यक्ष रूप से हमारे लिए परेशानियां पैदा कर रहे हैं। यदि अल्लाह हमें ताकत दे, तो यहूदियों के खिलाफ भी चलाएंगे, जो मुसलिमों के कट्टर शत्रु हैं। अमीर की इस घोषणा को केवल किसी संगठन या किसी संगठन के एक मुखिया की सोच नही माना जाना चाहिए, विशेषत: तब जब इस सोच को कुरानी आदेशों के नाम पर फेेलाया जा रहा है। निस्संदेह यही वह सोच है जिसने कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को निकलवाया है और यही वह सोच है जिसने पाकिस्तान को पहले दिन से ही भारत का शत्रु राष्ट्र बनने में सहायता की है। जम्मू कश्मीर में 1989 से 2006 तक के सत्रह वर्षों में 13,500 से अधिक आम नागरिक और 5300 से अधिक सुरक्षाकर्मी आतंकवादियों द्वारा मारे जा चुके हैं। जबकि इस अवधि में राज्य में केवल 62 व्यक्तियों की पहचान आतंकवादी के रूप में की गयी। 1987 से 2006 तक के बीस वर्षों में लगभग 64000 लोग आतंकवादी हिंसा में अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें से सभी भारत के सीमा क्षेत्र में मारे गये हैं। सन 2004 तक देश के 40-45 प्रतिशत क्षेत्रफल में बसे 220 जिले किसी न किसी रूप में हिंसात्मक विद्रोह की चपेट में थे।
पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की तस्वीर भारत के लिए और भी अधिक भयानक है। हमने यहां केवल कुछ संकेत मात्र दिये हैं। कहने का अभिप्राय ये है कि जिस पाकिस्तान की शिक्षा प्रणाली में भी भारत विरोध और भारत के प्रिति शत्रुता की भावना भरी हो उस देश से मानवतावादी होने या भारत का कभी परमहितैषी होने की अपेक्षा नही की जा सकती। ऐसी परिस्थितियों में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाक के नापाक इरादों को भली प्रकार समझकर उसे सही समय पर सही उत्तर दिया है। मोदी अपने देश को बचाव की मुद्रा में नही अपितु आक्रामकता की भावभंगिमा में देखना चाहते हैं। इसे आप अतिवादी राष्ट्रवादी नही कह सकते। शत्रु को युद्घ का खुला निमंत्रण देना भी कूटनीति का उस समय एक आवश्यक अंग बन जाया करता है जब देश छद्मयुद्घ से भारी क्षति उठा चुका हो, भारत अपनी अस्मिता के लिए पिछले 1300 वर्षों से लड़ रहा है, मित्र के लिए वह फूल से अधिक कोमल है तो शत्रु के लिए वह फौलादी होना भी जानता है। बस भारत की इसी परंपरा का व वीरोचित शैली का परिचय पाकिस्तान को भारत के पी.एम. श्री मोदी ने दिया है। ‘मोदी युग’ का शुभारंभ हो चुका है और हम पहले से अधिक समृद्घ और स्वाभिमानी भारत के निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं। जब वीरांगनाओं के जौहर रचते हैं तो जिहाद उसकी आग से सदा डरकर भागा है। आज का समय फिर हमें कुछ करने के लिए प्रेरित कर रहा है। नरेन्द्र मोदी उसका आगाज दे चुके हैं, एक स्वाभिमानी भारत के निर्माण का संकल्प लेकर।