वर्तमान का मैसूर राज्य प्राचीन काल में महिष्मति पुर कहा जाता था। इसी का राजा महिदंत था, जो महान चक्रवर्ती राजा था और लंका भी उसके आधीन थी। एक समय पुलस्त्य ऋषि महाराज ने महाराज शिव से निवेदन करके लंका में एक स्थान प्राप्त किया था, जो स्वर्ण का बना हुआ ग्रह था। जिसमें ऋषि पुलस्त्य  विश्राम किया करते थे। कुछ समय पश्चात ऐसा हुआ कि जिस राष्ट्र का राजा था वह उस राष्ट्र का राजा चुना गया । लंका का स्वामी महाराजा कुबेर बन गया और वह भी सब राजाओं ने अपने अपने राज्य को अपना लिया। इसलिए राजा महिदंत का एक छोटा सा राज्य रह गया।
राजा महीदंत के एक कन्या उत्पन्न हुई थी। इस कन्या को गुरुकुल में  महर्षि तत्व मुनि महाराज के पास शिक्षा ग्रहण हेतु छोड़ा गया था।
यह कन्या शिक्षा प्राप्त करके वैदिक यज्ञ और कर्मकांड की प्रकांड पंडित हो गई, फिर इसके विषय में यह सोचा गया कि अब यह कर्म से पंडित है परंतु उत्तरी राजा की अर्थात क्षत्रिय की है तो अब इसको कौन से वर्ण में जाना  चाहिए?
एक दिन राजा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र मनी चंद के द्वार जा पहुंचे। मणि चंद के जो पुत्र था वह बाल्मीकि के कथनानुसार 48 वर्ष का आदित्य ब्रहमचारी था। वह परजन्य ब्रह्मचारी वेदों का महान प्रकांड पंडित था। महाराज ने मनी चंद से निवेदन किया कि महाराज !-मेरी कन्या को स्वीकार कीजिए। मैं तुम्हारे पुत्र से अपनी कन्या का संस्कार करना चाहता हूं।
उस समय मनी चंद ने कहा कि महाराज ! हमारे ऐसे सौभाग्य कहां जो इतनी तेजस्वी कन्या हमारे कुल में आए ? उस समय ब्रह्मचारी वरुण ने ,माता-पिता ने उसके संस्कार को स्वीकार कर लिया। बहुत सारे ऋषियों तथा मुनियों को निमंत्रण दिया गया। राजा महिदंत ने यथाशक्ति सभी का स्वागत किया। ऋषियों की परिपाटी के अनुकूल ब्रह्मचारिणी अपने पति का स्वयं सत्कार करने जा पहुंची। बड़े आनंद से संस्कार हुआ ।वेदों के मंत्रों के साथ संस्कार संपन्न हुआ।
संस्कार से अगले दिन बहुत ही सर्द वायु चल रही थी । जिसके कारण स्नान नहीं कर पा रहे थे । तब रावण से कहा गया कि आप स्नान क्यों नहीं कर रहे ? उन्होंने कहा कि स्नान कैसे करें, बहुत ही  सर्द वायु चल रही है।
तत्पश्चात उस बाल ब्रह्मचारी ने जो वेदों का ज्ञाता था ,जो विज्ञान की मर्यादा जानता था ,उसने प्रयत्न किया और महान वायु देव को कुछ समय के लिए शांत कर दिया। तब सबने स्नान किया। इस प्रकार वरुण जिसका नाम बाद में रावण बना , महान विद्या का धनी था।
राजा महिदन्त ने बेटी का कन्यादान करने के पश्चात अपनी यथाशक्ति सभी का स्वागत और दान दहेज किया।परंतु किसी ने ऐसा बोल दिया कि राजा महिदंत ने अच्छी प्रकार स्वागत नहीं किया । इससे राजा  बहुत व्याकुल होने लगे और उन्होंने व्याकुल होकर कहा कि संबंधियों ! मैं क्या करूं ?  मेरा तो यह काल ही ऐसा है, कोई समय ऐसा था  जब चक्रवर्ती राज्य था। अब तो जितना द्रव्य था, सब लंका चला गया। महाराजा कुबेर उसका स्वामी बन गया। उस समय इन वार्ताओं को स्वीकार कर सबने अपने-अपने यथा स्थान प्रस्थान कर दिया।
रावण का लंका पर आक्रमण।
उस बात को सुनकर रावण ने निश्चय कर लिया कि लंका को जीतना है और अपने घर पहुंचा तथा कुबेर पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगा ।
ऋषि का पुत्र होने के कारण वह जिस राज्य में जाता वहीं उसका विशेष सम्मान होता था और जो स्वागत में कुछ देता तो वह 10000 सेना की मांग रखता था। इस प्रकार प्रत्येक राज्य से तो सेना एकत्र करके उसने लंका पर हमला किया और राजा कुबेर को जीत लिया।
राजा महि दंत के समक्ष उपस्थित होकर उसको राज्य प्राप्त करने के लिए स्वीकार करने के लिए विनती की । लेकिन राजा ने राज्य स्वीकार करके अपनी कन्या के दहेज में रावण को ही वापस कर दिया।इस प्रकार राजा महि दंत की कन्या का संस्कार ऐसे ब्रह्मचारी से  हुआ जो बचपन में ब्राह्मण के गुणों वाला था।
हम यहां पर यह भी देख रहे हैं कि कन्या का संस्कार जिस परिवार में हो जाता है अर्थात वह जिस परिवार के योग्य होती है प्राचीन काल में ऐसी परंपरा थी कि कन्या की शादी ऐसे कुल में करनी चाहिए जिसके लिए कन्या योग्य हो।

देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन :  ‘उगता भारत’ समाचार पत्र

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