दीपिका अरोड़ा
पंजाब में विधानसभा चुनावी प्रचार चरम पर पहुंच चुका है। एक ओर लुभावने प्रस्तावों द्वारा मतदाताओं को भरमाने का प्रयास जारी है तो दूसरी तरफ बड़ी-बड़ी घोषणाओं के माध्यम से अपने मॉडल को सर्वोत्तम घोषित करते हुए सभी दल, अधिकाधिक वोट बैंक भुनाने की होड़ में एक-दूसरे को पछाड़ने की फिराक में हैं। परस्पर आरोप-प्रत्यारोप के मध्य वादों एवं आश्वासनों की भरमार है।
स्मरण करें, ऐसे ही कुछ वादे पांच वर्ष पूर्व भी किए गए थे, जिनमें एक था घर-घर रोजगार पहुंचाना। पंचवर्षीय अवधि के दौरान यह अभियान कितना गतिशील हो पाया, इस वास्तविकता से शायद ही कोई प्रांत निवासी अनभिज्ञ हो। विगत् वर्षों में बेरोजगारी दर में अपेक्षाकृत वृद्धि दर्ज की गई।
प्राप्त आंकड़े बताते हैं, बीते वर्षों, प्रतिवर्ष डिग्री धारक युवाओं की आवश्यकता के विपरीत प्रांत स्तरीय रोजगार उपलब्धता व सृजन क्षमता कहीं कम रही। पंजाब की मौजूदा स्थिति के अंतर्गत, सीएमआईई के सर्वेक्षणानुसार मार्च, 2016 में बेरोजगारी दर 2.6 प्रतिशत थी, जो अप्रैल में 1.8 प्रतिशत पर पहुंचकर, 5 वर्ष के मध्य निम्नतम स्तर पर रही। जनवरी, 2022 की बेरोजगारी दर 9 प्रतिशत आंकी गई।
केंद्रीय सर्वेक्षणानुसार पंजाब की बेरोजगारी दर 7.4 प्रतिशत है। उच्च माध्यमिक उत्तीर्ण बेरोजगारी दर 15.8 प्रतिशत, डिप्लोमा प्रमाणपत्र प्राप्तकर्ता 16.4 प्रतिशत तथा परास्नातक प्रमाणपत्र प्राप्तकर्ता 14.1 प्रतिशत है। ‘सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल इंडस्ट्रियल डेवलपमेंटÓ’ के सर्वेक्षणानुसार पंजाब में 22 लाख युवा बेरोजगार हैं। पंजाब घर-घर रोजगार पोर्टल पर सरकार अधिकृत रोजगार की निर्धारित संख्या 19,464 बताई गई, जिनमें 10,552 सरकारी व 8912 प्राइवेट सेक्टर के अंतर्गत आते हैं। 13,38,603 युवा रोजगार हेतु पंजीकृत हैं। नौकरी प्राप्तकर्ताओं का मासिक वेतन मात्र 8-10 हजार है, जो कि उनकी योग्यतानुसार कहीं कम है। आजीविका की तलाश में दर-ब-दर भटकना अथवा मामूली वेतन पर अस्थाई नौकरी करने हेतु बाध्य होना, विदेश पलायन की विवशता के रूप में सामने आ रहा है। अब तक पंजाब के लगभग 15 लाख लोग विदेश प्रस्थान कर चुके हैं। वास्तव में यह मुद्दा पंजाबियों की दुखती रग है, जो उन्हें अपनी मिट्टी से दूर होने के लिए बाध्य कर रहा है। अवसरवादिता का लाभ उठाना और संवेदनशील विषयों की नब्ज पकड़ना राजनीतिक शतरंजी चाल रहा है, यही कारण है कि चुनावी प्रचार रणनीति में पुन: यह मुद्दा शीर्ष स्थान पर है।
कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने 5 वर्षीय कार्यकाल में प्रतिवर्ष 1 लाख नौकरी देने की घोषणा की है। आप संयोजक केजरीवाल ने प्रवासी युवाओं को 5 वर्षों के दौरान प्रांत में बेहतरीन अवसर देने का वादा किया है। शिअद प्रधान सुखबीर बादल 5 वर्ष में 1 लाख सरकारी नौकरी देने की बात कर रहे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। एनडीए के अनुसार संकल्प-सक्षम युवा योजना में प्रतिमाह 150 घंटे कार्य होगा। एक वर्ष के भीतर रिक्त पद भर दिए जाएंगे।
दरअसल, बेरोजगारी प्रांतीय मुद्दा न होकर एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, जो अपने भयावह रूप में सामने आ रही है। शिक्षित होने पर भी उपयुक्त अवसर न मिल पाने की हताशा व आक्रोश युवाओं में मनोविकार बनकर उभर रहे हैं जो कि दिमागी असंतुलन व आत्महत्या के आंकड़ों में हो रही लगातार वृद्धि का एक बड़ा कारण है। संसद के मौजूदा सत्र में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद ने एक प्रश्न के उत्तर में वर्ष 2020 में बेरोजगारों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं का आंकड़ा 3,000 पार कर जाने की जानकारी दी। नशे की लत, चोरी-छीना झपटी आदि अपराधों के बढ़ने के पीछे एक मुख्य कारण बेरोजगारी है। हालिया बजट चर्चा के दौरान विपक्ष द्वारा भी यह मुद्दा उठाया गया। जहां सत्तापक्ष द्वारा 2022-23 के बजट में एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स (एवीजीसी) सेक्टर के माध्यम से युवाओं को रोजगार प्रदान करने की संभावनाएं व्यक्त की गईं, वहीं मौजूदा संसद सत्र में प्रश्नकाल के दौरान विपक्ष द्वारा विगत वर्षों में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर सत्तापक्ष पर निशाना साधा गया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया की सार्थकता पर सवाल उठाए, वहीं पी. चिदंबरम ने भी आगामी पांच वर्षों में 60 लाख नौकरियां देने के वादे पर सरकार को घेरा।
हमारे प्रतिभा सम्पन्न युवाओं में ऊर्जा का असीम प्रवाह विद्यमान है। रोजगार अनुपलब्धता के चलते विद्वता का यह प्रवाह विदेशों की ओर स्थानातंरित हो जाए अथवा नशे, अपराधीकरण, मनोविकार, आत्महत्या जैसी दुष्वृत्तियों का ग्रास बन जाए, प्रत्येक अवस्था में यह समूचे राष्ट्र के लिए अपूरणनीय क्षति है। प्रतिभाओं का पलायन अथवा अवसान राष्ट्र की छवि एवं विकास दोनों को प्रभावित करता है। योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन व अपेक्षित रोजगार अवसरों का सृजन वर्तमान की महत्ती आवश्यकता है।