आत्मबल से ही मिलता है लक्ष्य
योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
आज हमारी सबसे बड़ी समस्या यह हो गई है कि हम अपने अंतर्मन की आवाज़ को अनसुना कर देते हैं। सच यह है कि हमारे जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव भी उतने ही स्वाभाविक हैं, जितना कि संसार में मौसम का बदलना, पेड़-पौधों का मुरझाना और दोबारा उन पर नयी कोपलें फूटना स्वाभाविक होता है। जो व्यक्ति इस प्रक्रिया को सहजता से स्वीकारता है, वह सुख-दुख, दोनों ही स्थितियों में संतुलित और समभाव रहता है, किन्तु कुछ लोग ऐसी मुश्किलों से बहुत जल्दी घबरा जाते हैं। उनका आत्मबल कमजोर पड़ने लगता है। विधाता ने हम सभी को विपरीत परिस्थितियों से जूझने की शक्ति समान रूप से दी है, लेकिन कुछ लोग अपने अंतर्मन की इस ताकत को पहचान नहीं पाते और ऐसे ही लोग राह में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं से बहुत जल्दी घबरा भी जाते हैं। अपने ‘अंतर्मन की ताकत’ को पहचानने वाले लोग हर हाल में शांत और संयमित रहते हैं। यह सच है कि मानव का मन बेहद चंचल है। इसकी गति बिजली से भी तेज है। तभी तो श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—‘इंद्रियां बलवान हैं, इंद्रियों से बलवान मन है और मन से भी ज्य़ादा शक्तिशाली है बुद्धि।’
सबसे बड़ी बात यह है कि हम जब कभी समस्याओं के जाल में घिर जाते हैं, तब बाहर से मदद लेने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन उसी समय अगर थोड़ा-सा ध्यान अपने अंतर्मन की आवाज़ को सुनने पर भी दें, तो समस्या का हल मिल सकता है।
एक बार एक व्यक्ति कुछ पैसे निकलवाने के लिए बैंक में गया। जैसे ही कैशियर ने उसे पेमेंट दी, उस कस्टमर ने चुपचाप उसे अपने बैग में रखा और बैंक से चल दिया। उसने एक लाख चालीस हज़ार रुपए निकलवाए थे। उसे पता था कि कैशियर ने ग़लती से उसे एक लाख चालीस हज़ार रुपए देने के बजाय एक लाख साठ हज़ार रुपए दे दिए हैं, लेकिन उसने यह आभास कराते हुए कि उसने तो पैसे गिने ही नहीं और उसे कैशियर की ईमानदारी पर पूरा भरोसा है, चालाकी से चुपचाप पैसे रख लिए।
इसमें उसका कोई दोष था या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन पैसे बैग में रखते ही कैशियर द्वारा दिए गए 20,000 अतिरिक्त रुपयों को लेकर उसके मन में बड़ी उधेड़-बुन शुरू हो गई। एक बार उसके मन में आया कि फालतू पैसे वापस लौटा दे, लेकिन दूसरे ही पल उसने सोचा कि जब मैं ग़लती से किसी को अधिक पेमेंट कर देता हूं, तो मुझे कौन लौटाने आता है?
बार-बार उसके अंतर्मन से आवाज़ आई कि पैसे लौटा दे, लेकिन हर बार उसका दिमाग उसे कोई न कोई बहाना या कोई न कोई वजह दे देता था अधिक मिले पैसे न लौटाने की। लेकिन इंसान के अन्दर सिर्फ दिमाग ही तो नहीं होता… ‘दिल और अंतरात्मा’ भी तो होती है? …रह-रह कर उसके अंदर से आवाज़ आ रही थी कि तुम किसी की ग़लती से फ़ायदा उठाने से नहीं चूकते और ऊपर से ईमानदार होने का ढोंग भी करते हो?
उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक ही जाने क्या हुआ कि उसने बैग में से बीस हज़ार रुपए निकाले और जेब में डालकर बैंक की ओर चल दिया। अब उसकी बेचैनी और तनाव कुछ कम होने लगा था। वह हल्का और स्वस्थ अनुभव कर रहा था। वह कोई बीमार थोड़े ही था, लेकिन उसे लग रहा था जैसे उसे किसी बीमारी से मुक्ति मिल गई हो। उसके चेहरे पर किसी जंग को जीतने जैसी प्रसन्नता व्याप्त थी। बैंक पहुंच कर उसने कैशियर द्वारा गलती से ज्यादा दिए बीस हज़ार रुपए लौटाए तो कैशियर ने चैन की सांस ली। खुश हो कर कैशियर ने कस्टमर को अपनी जेब से हज़ार रुपए का एक नोट निकाल कर देते हुए कहा, ‘भाई साहब! आपका बहुत-बहुत आभार! आज मेरी तरफ से अपने बच्चों के लिए मिठाई ले जाना। प्लीज़, मना मत करना।’
कैशियर की बात सुनकर वह कस्टमर बोला- ‘भाई साहब, आभारी तो मैं हूं आपका और आज मिठाई भी मैं ही आप सबको खिलाऊंगा।’ आश्चर्य में डूबे कैशियर ने पूछा ‘भाई! आप किस ख़ुशी में मिठाई खिला रहे हो?’ इस पर उस कस्टमर ने जवाब दिया, ‘आभार इस बात का कि आपकी गलती से ज्यादा मिले बीस हज़ार रुपयों के इस चक्कर ने मुझे आज ‘आत्म-मूल्यांकन’ का अवसर प्रदान किया है। यदि आपसे ये ग़लती न हुई होती, तो न तो मैं मन के द्वंद्व में फंसता और न ही उस से निकल कर अपनी ‘लोभवृत्ति’ पर क़ाबू पाता। यह बहुत मुश्किल काम था। घंटों के अंतर्द्वंद्व के बाद ही मैं जीत पाया। इस दुर्लभ अवसर के लिए आपका आभार।’
निःसंदेह, यह प्रकरण हमें बहुत बड़ी उस शक्ति के बारे में बता रहा है, जिसे हम बहुत बार छोटे-छोटे से लालचों में पड़कर भूल जाते हैं। वह शक्ति है हमारे ही भीतर रहने वाला ‘आत्मबल’, जो हमें जीवन के उच्चतर मूल्यों पर अडिग रहने की शक्ति देता है। ‘आत्मबल’ में असीम शक्ति होती है, जो आदमी को अमृत बना देती है। कवि कहता है :-
‘उठना बहुत कठिन सखे/ गिरना है आसान।
अंतर्मन की जब सुने/ मानव बने महान।’
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