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आतंकवाद

आजादी का मखौल चौधरी चरणसिंह को खालिस्तानी चिट्ठियां


खालिस्तान जिंदाबाद , दल खालसा और शिरोमणि अकाली दल जिंदाबाद ( हमारे साथ जो अड़़े सो चढ़े , सिख होमलैंड जिंदाबाद ) जहां सिखों का खून बहे , वहां केसरी निशान बहे , हमारा धर्म करो या मरो। जो हमारी मांगों का विरोध करेगा उसका काम तमाम कर देंगे। ओ चरणसिंह , तुझे हम पहले भी इत्तला दे चुके हैं कि हमारे साथ खामखा छेड़खानी मत करना वरना तुमको खत्म कर देंगे परन्तु तुम बाज नहीं आया हमें तो अब खड़े लेन लगाना पड़ेगा , तुम अपनी मौत के दिन गिन लो , तुम्हारे को पहले ही याद होगा कि सरकार हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। १. बाबा निरंकारी गुरुबचनसिंह , २. महाशय जगतनारायण का हमने दुनिया में नाम ही मिटा दिया है , तू हमारे लिए किस खेत की मूली है , तुम्हारे साथ हम निपटकर ही रहेंगे। तुम लोग खालिस्तान का विरोध करने से बाज नहीं आए , तुमने पार्लियामेंट में कहा था कि खालिस्तान को कुचल दिया जायेगा। अब हम चरणसिंह को कुचलने का मजा चखाएंगे और तुम्हारा नाम लेने वाला नहीं रहेगा। नोट — अब तक हमारी जिसने भी मुखालिफत की उसका हमने नामोनिशान मिटा दिया है। अब तेरे साथ भी निपट लेंगे। खालिस्तान जिंदाबाद , संत भिंडरांवाले जिंदाबाद , सुखजिंदर सिंह जिंदाबाद , जगजीत सिंह राष्ट्रपति जिंदाबाद , शिरोमणि अकाली दल जिंदाबाद। करनैल सिंह , गुरुनानक निवास अमृतसर , खालिस्तान स्टेट जो अड़े सो चढ़े बोलो दल खालसा और खालिस्तान जिंदाबाद – गुरुनानक निवास , अमृतसर चरणसिंह तैनू असी नहीं जीने देना , तैनू इसका नतीजा बड़ा महंगा भुगतना पड़ेगा हुण तेरी जिंदगी दी खैर नहीं। तेरी जबान वड़ी फड़फड़ करन लगी है , हुण तेरी खैर नहीं। तू सिखां दी कौम नू चैलेन्ज कर रहा है। हुण तेनू भी गुरबचन बांग ऊपर दे चुक देंगे। दिल्ली सारी की सारी फूंक देंगे , हिंदू समाज को भी सबक सिखा देंगे। तेरी मौत बहुत आवाज मार रही है। इंदिरा रंडी नू भी ऐसा सबक सिखा देंगे। अभी गैस नू आग लगाई है और जलवे दिखा देंगे , बुढ़िया तेनू हुण ऊपर पहुंचा देना है , हुण तेरा खात्मा कर देना है। गुरु पन्थ दास जागीर सिंह जत्थेदार खालिस्तान जिंदाबाद। भेजने वाला — सरदार जागीरसिंह , जत्थेदार सकिल खालिस्तान , देश पंजाब

सरकार पृथक्तावादी शक्तियों को कुचले
लोकसभा में चौ० चरण सिंह की मांग –

२६ अप्रैल को भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह ने लोकसभा में पंजाब की स्थिति पर बहस के दौरान जो भाषण दिया था , वह अपिकल रुप में नीचे दिया जा रहा है :

खालिस्तान की मांग या सिखिस्तान या सिख स्टेट , कुछ भी कहिये , यह काफी समय से चली आ रही है। हिन्दुओं ने हिन्दुस्तान ले लिया , मुसलमानों ने पाकिस्तान ले लिया और हमारी मांग खालिस्तान के लिए है। इन्हीं अल्फाजें में नहीं तो दूसरे अल्फाजे में , यह आवाज पहले से उठती रही है। सरदार पटेल के सामने मास्टर तारासिंह ने करीब करीब यही बात कही थी। अल्फाजें में फर्क हो सकता है। सरदार पटेल ने उनको बुलाया और उनसे कहा कि यह मुमकिन नहीं है। यह आपके लिए और देश के किसी नागरिक के लिए मुनासिब नहीं है। उन्होंने जो कहा मास्टर तारा सिंह उसको समझ गये। जो कुछ वे कह रहे थे उसको वे राजसत्ता के बल पर करने के लिए तैयार भी थे। मास्टर साहब जिस प्रबल भाषा में आवाज उठा रहे थे उसको उन्होंने बंद किया और देश शांति से चलने लगा। देश – भर में किसी व्यक्ति के जहन में यह बात नहीं रही कि हमारे सिख भाई हम से अलग होने की बात सोच रहे हैं। उसके बाद बहुत अरसे तक पं० गोविन्दवल्लभ पंत यू० पी० के चीफ मिनिस्टर रहे – वे होम मिनिस्टर थे। १२ जून १९६० को पंजाबी सूबा या पंजाबी स्टेट या जो कुछ भी कहा जाये , इस मांग को लेकर हमारे सिख भाइयों ने एक जुलूस निकालना चाहा। वह जुलूस शीशगंज से रकाबगंज गुरुद्वारे तक निकालना चाहते थे। पंडित जी ने कहा कि यह बात गलत होगी क्योंकि यह मांग भी गलत है। लिहाजा वह जुलूस शीशगंज से निकल कर रकाबगंज तक नहीं आया और जो लोग जुलूस में थे वे तितर – बितर हो गये। देश में कोई अवांछनीय घटना नहीं हुई और यथापूर्व शांति से देश चलता रहा। इसके बाद सबसे पहले १० जून १६६८ को दिल्ली में सिख होमलैंड की आवाज उठती है। बाकायदा मेरे पास एक प्रेस रिपोर्ट है जो बात आज तफसील से कही जा रही है , करीब – करीब वही मांग थी। इस पर गवर्नमेंट ने कुछ किया या नहीं , यह मुझको नहीं मालूम। लेकिन , बाजाब्ता यह आवाज उठी। मैं यह अर्ज कर देना चाहता हूं कि इससे पहले सन् १९६६ में पंजाब और हरियाणा के दो टुकड़े हो गये। रोहतक में प्रक्टिस करने वाले एक प्रमुख वकील थे , उन्होंने मुझको एक चिट्ठी में यह लिखा कि हरियाणा एक छोटा सूबा रह जायेगा और पंजाब भी छोटा सूबा होगा। लेकिन मुगलों के जमाने से दिल्ली सूबा एक था। मेरठ और आगरा डिवीजन तथा हरियाणा का इलाका , यह सब एक ही सूबा था अंग्रेजों के जमाने में एक सिविलियन आफिसर कारबेट ने यह कमी रखी थ । सन् १६२८ में हिन्दू – मुस्लिम एकता का सवाल उठा। उस समय पं० मोतीलाल नेहरू हमारी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। मुस्लिम भाई अल्पमत में थे लेकिन उन को तरजीह दी जाती थी।

हमारे सिख भाइयों ने कहा कि पंजाब में हमको प्रमुखता मिलनी चाहिए , जैसे मुस्लिम अल्प संख्यकों को और सूबों में मिलती है। मुसलमानों का यह जवाब था कि हमारी कुल ५२-५३ प्रतिशत आबादी है इसलिए हमें पजाब में प्रमुखता मिलनी चाहिए। दलील दोनों की ठीक थी। इस मामले को हल करने के लिए ब्रिटिश सिविलियन ने एक योजना रखी थी , जिसपर राउण्ड टेबल कान्फरन्स पर विचार हुआ। जहां तक मुझे याद है , महात्मा गांधी और जिन्ना साहब ने उसको माना। लेकिन डा० गोकुलचन्द नारंग ने , जो हिंदू महासभा के लीडर थे , स्वीकार नहीं किया। योजना यह थी कि हिन्दी भाषी क्षेत्र घग्गर नदी तक है। वह कभी पंजाब का अंग नहीं था लेकिन सन ५७ में शामिल कर दिया गया। वह क्षेत्र , मेरठ और आगरा डिवीजन का क्षेत्र तथा दिल्ली सूबे का क्षेत्र १८०३ में लार्ड लेक की विजय के बाद अंग्रेजों के हाथ में आया। उसे हरियाणा , पंजाब में जोड़ दिया और मेरठ तथा आगरा डिवीजन लखनऊ में शामिल कर दिये गये।

एक साहब ने मुझे चिट्ठी लिखी , उसका नाम मेरे पास मौजूद है।। उन्होंने कहा कि आप यू० पी० से आवाज उठाइये । यू० पी० से आवाज पहले उठ चुकी थी। मैंने उस आवाज में पहले कभी हिस्सा नहीं लिया था कि यु० पी० का पुनर्गठन होना चाहिए। मैंने उसमें सक्रिय हिस्सा नहीं लिया क्योंकि पंडित जी इस चीज को नहीं चाहते थे। जब जनता पार्टी बनी तो मेरी राय थी कि बिहार , मध्य प्रदेश और यू० पी० का पुनर्गठन होना चाहिए। हमारे उस वक्त के जो प्रधान मन्त्री थे वे उसके लिए शुरू में राजी नहीं हुए , बाद में राजी हो गये।

विभाजन गलत

हां ; तो मैं अर्ज कर रहा हूं कि मुझसे कहा गया कि उधर से यह आवाज उठायें कि मेरठ , आगरा डिवीजन हरियाणा के साथ मिलाकर दिल्ली सूबा हो जाये। तो उस वक्त जो चिट्ठी मैंने लिखी , वह मैं सुनाता हूं। मेरी राय यह थी कि पंजाब का बंटवारा होना गलती हुई। यह नहीं होना चाहिए था। क्योंकि इसके नतीजे आगे जाकर गलत निकलने वाले हैं । मैंने उनको लिखा , यह चिट्ठी नवम्बर २४ , १९६५ की है

प्रिय चौधरी साहब , आपका १८ नवम्बर का पत्र प्राप्त हुआ। बहुत – बहुत धन्यवाद। मेरा स्पष्ट रूप से कहना है कि मैं नहीं समझता कि एक पंजाबी भाषी राज्य का गठन देश के हित में होगा। इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

अब उसके प्रभाव हमारे सामने हैं। यह मैं बता रहा हूं कि १९६६ में बँटवारा हुआ और दो साल बाद खालिस्तान की आवाज उठनी शुरू हो गई। मेरे पास बाकायदा प्रस्ताव की प्रति मौजूद है , १९६८ की। १९७३ में आनन्दपुर साहब में उस प्रस्ताव को फिर दोहराया गया और साफ बात कही गई। जो उसका शुरू में अर्थ लगाया गया , वह कहते हैं हमारा मतलब यह नहीं था कि सिख राज्य अलग बने , पिख देश या खालिस्तान लेकिन जो अल्फाज उसमें इस्तेमाल किये गये हैं उनसे अगर यह अर्थ निकाला जाय कि सिख समुदाय एक सिख राष्ट्र होगा और वह एक अलग देश या हिस्सा चाहते हैं , मुल्क से अलग होना चाहते हैं तो गलत न होगा , क्योंकि प्रस्ताव में अल्फाज ये हैं

” शिरोमणि अकाली दल के बुनियादी आधार तत्त्व ”

( अ ) अभिधारणा : ” शिरोमणि अकाली दल सिख राष्ट्र की आशाओं और आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने के लिए है और इस प्रकार पूर्ण रूप से।
इसका प्रतिनिधित्व करने का अधिकारी है।
” सिख कम्युनिटी नहीं , सिख राष्ट्र , फिर अगले पृष्ठ २० पर वह कहते हैं

” राजनीतिक लक्ष्य :
निःसन्देह पन्थ का राजनीतिक लक्ष्य सिख इतिहास के पृष्ठों में दसवें गुरु के धर्मादेशों को प्रतिष्ठापित करना और खालसा पन्थ का जो मूलभूत लक्ष्य है , वह है खालसा का पुनः उत्कर्ष। ”

अब प्रीएमीनेंस आफ दि खालसा का मतलब आम भाषा में यही हुआ कि और लोगों से ज्यादा अधिकार खालसा पंथ के सदस्यों को होंगे। प्रीएमीनेंस खालसा पंथ की होगी और लोगों की नहीं होगी। १९७३ में यह प्रस्ताव पास हुआ। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी दरअसल कायम हुई धार्मिक मामलों को तय करने के लिए। ननकाना साहब में जो उस वक्त मैनेजर थे वह मिसमैनेजमेंट कर रहे थे , जिसके लिए सत्याग्रह हुआ , केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मामले में। जहां तक मेरा अन्दाजा है उनका उद्देश्य सीमित था। धीरे – धीरे उसने राजनीतिक रूप धारण किया और हमारी गलती की वजह से , हमारे नेताओं की गलती की वजह से आज हम वर्तमान स्थिति में पहुँच गये हैं। अब सब पर यह बात जाहिर हो गई है।

पंजाब के सिलसिले में बात करने के लिए अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में इंदिरा जी ने मुझको बुलाया। मेरी उनकी कोई ४०-४५ मिनट तक बात चीत हुई। मैंने बहुत साफगोई से उनसे बातें की। मैंने इंदिरा जी से कहा कि मैं चाहता था कि वह यहां होतीं , लेकिन वह यहां नहीं हैं। मैंने कहा कि जो कुछ हुआ है , यह आपकी गलती के कारण हुआ है। साम्प्रदायिक , जातिगत , भाषाई भेदभाव , यह सब कांग्रेस नेतृत्व , जो कि शुरू से ही शासन में है , की गलत नीतियों के कारण है । उन्होंने एक पैटर्न सैट कर दिया , जिसका नतीजा यह हुआ कि सारे राजनैतिक दलों ने भी यह नीति अपनानी शुरू कर दी जो आपने अपनायी। सब को वोट की फिक्र थी। वोट मिल जाय किसी सूरत में , किसी भी शर्त पर और हम सत्ता में आ जायें। पूरी सत्ता में न आ पायें तो कुछ में आ जायें। लेकिन जिस ढंग से वोट मांगे जायें , जिस तरीके से लोगों से अपील की जाये , चाहे उसके नतीजों के तौर पर देश के टुकड़े क्यों न हो जायें , मसलन धर्म की बात , साम्प्रदायिकता की बात।

धार्मिक संगठन और राजनीति

पंडित जी कहा करते थे और हम सब लोग कहा करते थे कि साम्प्र दायिकता , जातिवाद और भाषावाद , ये तीनों कारण हैं बिखराव के। लेकिन हमने क्या किया साम्प्रदायिकता के बारे में ?

मैंने इन्दिरा जी से यह कहा कि होना यह चाहिए था कि जब देश का बंटवारा हो गया , जिसके लिए न मालूम कितने लोगों ने तकलीफ उठाई , जो हम स्वप्न देखते थे , जो हमारी सांस्कृतिक विरासत थी , जिस पर हमें गर्व था , जिस देश के दो टुकड़े हो गये , तो १६ अगस्त को पंडित नेहरू को यह अध्यादेश जारी करना चाहिए था कि हर धर्म के प्रचार के लिए , अपनी संस्कृति को बढ़ाने के लिए , शैक्षिक संस्थान खोलने के लिए छूट होगी , संगठन बनाने का अधिकार होगा। लेकिन जिस संगठन की सदस्यता किसी सम्प्रदाय या एक धर्मालम्बी लोगों तक सीमित होगी उसे राजनीति में दखल नहीं देने दिया जायेगा। मुस्लिम लीग ने बँटवारा कराया। लेकिन मुस्लिम लीग ही नहीं , चाहे अकाली दल हो , हिन्दू महासभा हो या हिन्दुओं का कोई और संगठन हो , या ईसाइयों का हो , एक ही धर्म के मानने वाले लोगों तक जिसकी सदस्यता महदूद होगी , उसे सभी स्वतंत्रताएं होंगी सिवाय इसके कि वह राजनीतिक क्षेत्र में काम कर सके। यह करना चाहिए था , लेकिन नहीं हुआ।

देश आजाद हुआ और पांच महीने बाद एक धर्मान्ध हिन्दू ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी । उसके दो महीने बाद ३ मई १ ९ ४८ को अपनी विधायी हैसियत में संविधान सभा ने एक प्रस्ताव पास किय । उसे हैसियत थी संविधान बनाने की और जो संसद् के अधिकार होते हैं , विधान बनाने की। उसी पर अगर अमल कर लिया जाता तो आज देश की दुर्गति न होती।

तीन मई को यह प्रस्ताव पारित किया गया

” चूंकि लोकतंत्र को उचित रूप से चलाने और राष्ट्रीय एकता में वृद्धि ; भाईचारे के लिए यह अत्यावश्यक है कि साम्प्रदायिकता को भारतीय जन जीवन से समाप्त कर दिया जाये। संविधान सभा का विचार है कि किसी भी ऐसे साम्प्रदायिक संगठन को , जो कि अपने संविधान द्वारा या अधिकारियों या विभागों द्वारा किये गये कार्यों , निहित सूझबूझ से अपने संगठन में किसी भी व्यक्ति को धर्म , प्रजाति तथा जाति या इनमें से किसी भी आधार पर सदस्यता से अलग रखता हो , समाज की धार्मिक , सांस्कृतिक , सामाजिक तथा शैक्षणिक मूलभूत आवश्यकताओं को छोड़कर किसी भी क्षेत्र में कार्य करने की अनुमति नहीं है तथा इसको रोकने के लिए वैधानिक और प्रशासनिक कदम उठाये जाने चाहिए।

संविधान सभा ने यह प्रस्ताव पास किया था। मैंने इन्दिरा जी से कहा कि बहनजी , अगर खुद पंडित जी ने यह काम नहीं किया तो आपको ही करना चाहिए। मुझे तारीख तो याद नहीं है , मैंने अखबारों में पढ़ा था , इसी सदन में जब यह पूछा गया कि मुस्लिम लीग , जो दक्षिण में काम कर रही है , उसको क्यों बर्दाश्त किया जा रहा है , तो पंडित जी ने यह जवाब दिया था कि यह साम्प्रदायिक नहीं है ; यह दूसरी ही मुस्लिम लीग है। खैर , मैंने इन्दिरा जी से कहा कि आप १९५६ में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और १९६० में पं० नेहरू प्रधानमन्त्री थे। आप दोनों की रजामंदी से यह हुआ होगा — यह नहीं हो सकता कि आपने विरोध किया हो और वे चाहते हों या आप चाहती हों और उन्होंने विरोध किया हो , फिर भी यह हो गया हो। आपने मुस्लिम लीग से मिलकर केरल में मिली – जुली सरकार बना ली ।

१९६६ में रबात में मुस्लिम देशों और मुस्लिमबहुल देशों की कान्फरेन्स हुई। भारत सरकार ने फखरुद्दीन अली अहमद को , जो उस वक्त औद्योगिक विकास मंत्री थे , अपना प्रतिनिधि बनाकर वहां भेजा। जो उनकी तैयारी समिति थी , उसने कहा कि आप हकदार नहीं हैं , क्योंकि इंडिया न तो मुस्लिम राष्ट्र है और न ही मुस्लिमबहुल राष्ट्र है। टर्की ने कहा था कि हम मुस्लिम राष्ट्र जरूर हैं , लेकिन हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं। उन्होंने अपना प्रतिनिधि नहीं भेजा। इंडोनेसिया ने भी अपना प्रतिनिधि नहीं भेजा और यह कहा कि हम धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं , इसलिए वहां पर जाना ठीक नहीं समझते। यह तो दो मुस्लिम देशों का रवैया था। लेकिन हमारे राजनीतिक नेता का यह रवैया था कि हमारा प्रतिनिधि वहां पर जाकर बैठे। जब पाकिस्तान ने एतराज किया तो उनको निटिंग छोड़नी पड़ी और हिंदुस्तान की नाक एक तरह से सारी दुनिया के सामने कट गई। इसके बारे में उस वक्त बहुत सारे राष्ट्रवादी मुसलमानों ने भी एतराज किया था। मेरे पास उनके नाम मौजूद हैं। चागला साहब ने तो बहुत सख्त बयान दिया था कि वहां पर हमारा नुमाइन्दा क्यों भेजा गया। लेकिन इन्दिरा जी की मर्जी से वे वहां पर गये। इरादा इसके पीछे यह था कि मुस्लिम वोट्स को हासिल किया जाये। मौजूदा प्रधानमन्त्री ने ऐसा किया।

लीग से गठबंधन क्यों ?

१९७० में केरल में कांग्रेस ( आई ) मुस्लिम लीग के साथ चुनाव लड़ने का फैसला करती है। प्रेस कान्फरन्स होती है , उसमें लोग ऐतराज करते हैं कि आपकी पार्टी तो धर्म निरपेक्ष है , आपने मुस्लिम लीग के साथ चुनाव लडने का फैसला क्यों किया ? कहा जाता है कि हमने उन के साथ चुनाव नहीं लड़ा , लेकिन हमारे और इनके प्रोग्राम एक हैं , इसलिए उनके साथ सरकार बना रहे हैं। इसका क्या मतलब है ? हमारे इनके प्रोग्राम एक है यह क्या दलील है ?

उसके बाद जनवरी या फरवरी १९७१ में बम्बई कारपोरेशन में कांग्रेस ( आई ) मुस्लिम लीग के साथ मिल कर चुनाव लड़ती है। केरल के मामले को इनकी नेता यह कह कर फर्क करती हैं कि हमने चुनाव साथ नहीं लड़ा , ये चुनकर आ गये , हमारा इनका दृष्टिकोण एक है , प्रोग्राम एक है , इसलिए मिलकर सरकार बनाने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन पांच – छः महीने के बाद ही वह दलील खत्म हो जाती है और कांग्रेस ( आई ) मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है। यह इनका रवैया रहा है , जिसकी वजह से हिंदुस्तान में आज जो हो रहा है , यह सब उसी का नतीजा है।

मुस्लिम मजलिस भी एक साम्प्रदायिक पार्टी थी। मेरी पार्टी और कुछ दूसरी पार्टीज ने मिलकर चुनाव लडा — यह बात टीक है। ऐसा नहीं होता तो ज्यादा ठीक होता , मैं इस बात को स्वीकार करता हूं । लेकिन नकल हमने आपके ( काँग्रेस ) लीडर से की। उसमें मेरी पार्टी थी और चार – पांच पार्टियां थीं , सबने मिलकर चुनाव लड़ । मैं पहले ही इस बात को कह चुका हूं – शासक दल सबसे बड़ी पार्टी है। जिस का नेतृत्व सबसे पुराना है , उसने सबसे पहले ऐसा नमूना पेश किया। दूसरे राजनीतिक दलों ने भी उसी तरीके पर कोशिश की , जो मैं समझता हूं कि गलती की है। लिहाजा इस पर खुश होने का कोई मौका नहीं है। नमूना शासक दल ने स्थापित किया और करीब – करीब सभी विपक्षी दलों ने उस पर अमल किया। इसलिए बजाय इसके कि कांग्रेस ( आई ) यह स्वीकार करे कि गलती की है , उसके कुछ सांसद कहते हैं कि हमने भी गलती की है। हम तो कह चुके हैं – जो बड़े भाई ने गलती की , वही गलती हमने भी की।

जातिवाद : जिम्मेदार कौन ?

अब जाति की बात को लिजिए मैंने पडित जवाहर लाल नेहरू का नाम नहीं लिया , लेकिन यह बात सच है कि पंडित जी कश्मीरी पंडितों की कांग्रेस में जाया करते थे , वे एक बार नहीं अनेक बार उनकी कांग्रेस में सम्मिलित हुए हैं। मैंने अपनी किताब में इसका हवाला दिया है , आप चाहें तो मैं डसे सुना सकता है। समय कम है इसलिए नहीं पढंगा , लेकिन एक बार मैंने इन्दिरा जी के सामने भी कहा था कि ऐसे बहुत से सम्मानित कांग्रेसजन है , जिन का मैं बहुत आदर करता हूँ वे इस तरह की कास्ट कांग्रेस में हिस्सा लेते है। एक बार पी० सी० सी० की एग्जीक्यूटिव में यह सवाल उठाया कि क्या एग्जीक्यूटिव के सदस्य को कास्ट काँग्रेस में जाना चाहिए। कुछ मुलाफलत के बाद यह तप हुआ कि नहीं जाना चाहिए। लेकिन मेरे एक बजुर्ग नेता थे , जिनकी मेरे मन में ज्यादा इज्जत थीं – मैंने कहा , — बाबूजी आप खत्री समाज की कांफ्रैंस में कानपुर गए थे। ” मैं दण्डन जी की तरफ इशारा कर रहा हूं। मैं कोई ऐसी बात नहीं कह रहा हूं जो असंगत हो। मैं कह रहा हूं कि हमारे राजनितिक नेतृत्व ने शुरू में गलती की है और उसकी ज्यादा जिम्मेदारी शासक दल की है , जिसमें बरीब – करीब सारे नेता शामिल थे। दूसरे लोगों ने भी नकल को , यह मैं शुरू में ही कह चुका हूं। पंजाब की जो बात है , वहां तो आग लगी हुई है।

अब इन्दिरा जी जोर दे रही है , मेरे पास उनकी स्पीचें है , रोज उनकी स्पीच हो रही है कि युनिटी की जरुरत है , साम्प्रदायिकता बढ़ रही है , जातिवाद बढ़ रहा है। मैं जानना चाहता हूं कि साम्प्रदायिकता को बढ़ाया है , तो किसने बढ़ाया है ? सबसे ज्यादा इन्होंने बढ़ाया है। जातिवाद भी इन्होंने ही बढ़ाया है। अगर आप कहते हैं कि मैंने बढ़ाया है , तो कोई बात बतला नहीं सकता कि मैं कभी जाति कांग्रेस में गया हूं। शुरु से ही , जबसे मैंने होश सभांला , मैंने कहा है कि जाति को मैं हिन्दुस्तान के पतन का सबसे बड़ा कारण समझता हूं , जिसकी वजह से देश बर्बाद हुआ है। पंडित नेहरु को यह मालूम होना चाहिए था कि अंदरूनी कमियों की वजह से देश गुलाम हुआ , जिनमें एक बड़ा कारण जातिवाद भी था। मैं कभी जाट सभा में नहीं गया और न ही इसे किसी तरीके से बढ़ाया है। आप सबने ( इं का मन्त्रियों के ) डिपार्टमेंट में जाकर देखियो , जो मैंने काम किया है। कभी जाति के बारे में किसी को कोई शिकायत नही हुई। आति में मेरा विश्वास नहीं है।

मैं यह कह रहा था कि आजकल इन्दिरा जी बहुत कुछ कह रही है। कि विभाजक तत्त्व देश में मजबूत हो रहे हैं और यह हो रहा है। बिल्कुल ठीक है , लेकिन मैं अर्ज करना चाहता हूं कि इन विभाजक तत्त्वों को किसने मजबूत किया है ? सारे देश में जहां भी कांग्रेस ( आई ) की गवर्नमेंट है , चाहे आप कैबिनेट का गठन देख लीजिए , आल इन्डिया का देख लें और यू० पी० के अन्दर प्रशासन को देख लें कि कि तरह से वहां पर नियुक्तियां होती हैं , किस तरह से वहां पर प्रोन्नतियां होती हैं। मैं इसकी तफसील में नहीं जाना चाहता। मेरे कहने का मतलब यह है कि साम्प्रदायिकता को कांग्रेसी नेताओं ने बढ़ाया है और जातिवाद को कांग्रेसमैन लाये हैं।

राष्ट्र भाषा की समस्या

जहां तक भाषावाद की बात है , हिन्दी को पूह – पूह करके खत्म कर दिया और कहा नो नो , वी आर वन नेशन। ३१ वर्ष पहले १९५३ में इन्होंने कहा था कि हिन्दी को किसी पर लादा नहीं जायेगा। लेकिन हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाना है। माना , हिन्दी को लादना नहीं है और संविधान में लादने की कोई बात भी नहीं है। सिवाय तमिलनाडु के प्रतिनिधियों के सारे देश के प्रतिनिधियों ने इस बात को माना था कि हिन्दी रखनी है। हिन्दी नहीं रखनी है , चलिए हिन्दी न सही। तो जिन दोस्तों ने एतराज किया है , उनको बुला कर पूछा जाये कि इस भाषा को रखना है। संस्कृत रख लीजिए और कुछ लोगों का जो यह ख्याल है कि यह बहुत कठिन भाषा है , तो ऐसी बात नहीं है। ३-६ महीने में उसे आसानी से सीखा जा सकता है और मेरा कहना यह है कि अगर मुल्क को एक राष्ट्र रहना है , तो एक भाषा होनी चाहिए , एक जुबान होनी चाहिए।

अभी आपका एक प्रतिनिधिम् ण्डल चीन गया था। वहां सब अग्रेजी में बोले। चीन के लोगों ने पूछताछ की कि आपकी कोई भाषा नहीं है। जो लोग वहां गये थे , किसी के पास कोई जवाब नहीं था। इस बात का मजाक हुआ और बराबर मजाक उड़ता रहा है। यह स्थिति नेतृत्व की गलती की वजय से हुई है।

अब सवाल यह है कि आज जो कुछ हो रहा है इसके पीछे भी राजनीति है। मुझे ऐसे राजनीतिज्ञों के नाम लेने पड़ रहे हैं , जिनका कि मैं नहीं की लेना चाहता था। क्योंकि सदन में जब इस चीज पर गौर हो रहा है तो मुझे नाम लेना पड़ेगा और उसका नाम लेना पड़ेगा जो हिन्दुस्तान के राज नीतिक ढांचे के सबसे बड़े पद पर आसीन हैं। १९७७ तक पंजाब में कांग्रेस हुकूमत थी। उसके बाद १९७७ में जब सब जगह दूसरी सरकार आयी तो पंजाब में श्री प्रकाश सिंह बादल की सरकार आ गयी। उस वक्त यह कोशिश की गई कि अकाली दल के खिलाफ कोई भी शिगूफा खड़ा किया जाये और कोई कार्रवाई करने की बात शुरू की गयी। उसकी तफसील में मैं नहीं जाऊंगा। मेरे पास लेख है। आप उसे पढ़ करके मुझसे बात कर लेना। अगर आप सच्चाई जानना चाहते हों तो उसे पढ़ना।

यह ” सण्डे ” ( मैगजीन ) है -२५ अप्रैल से १ मई तक का और यह कलकत्ता से निकलता है। यह आनन्द बाजार पत्रिका का पब्लिकेशन है। उसके जो वाक्य हैं उन्हें मैं पढ़ देता हूं ‘

‘ इस प्रकार दल खालसा , उग्रवादी सिखों का संगठन , जो कि एक अलग खालिस्तान की वकालत कर रहा है और पिछले सितम्बर में जो इण्डियन एयरलाइन्स के बोइंग ८३७ का अप हरण कर पाकिस्तान ले जाने के पीछे था , केन्द्रीय गृह मन्त्री . ज्ञानी जैलसिंह से संरक्षण पाता है। ”

यह गवाही उसकी है, जो कि अपहरण करने वाले लोगों का लीडर था। वे लोग गिरफ्तार हो गये। पुलिस के सामने उस ( अपराधी ) ने स्वीकार किया और कहा कि हमारे १७ बहुत बड़े – बड़े सक्रिय हमदर्द हैं , १७ आफी सर्स हैं जिनमें लीडिंग पब्लिक लाइफ के लोग हैं। वह उनके नाम बताता है। इस लेख में उन लोगों के नाम लिखे हुए हैं जो कि ज्ञानी जैलसिंह के दोस्त हैं , उनके अजीज हैं , उनके नियुक्त किये हुए हैं।

( जिस समय चौधरी साहब इस सन्दर्भ में बोल रहे थे उस समय संसदीय कार्य , खेल और आवास मन्त्री श्री बूटा सिंह ने आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि वह संसदीय नियमों के अनुसार राष्ट्रपति महोदय के नाम का उल्लेख नहीं कर सकते। इस पर चौधरी साहब ने स्पष्ट किया कि वह श्री ज्ञानी जैल सिंह के नाम का उल्लेख भारत के राष्ट्रपति के रूप में नहीं बल्कि तत्कालीन गृह मन्त्री के रूप में कर रहे हैं।

सांसद श्री आर० एल० भाटिया तथा श्री बूटा सिंह ने कहा कि यह कोई सबूत नहीं है तथा यह गृह मन्त्री के खिलाफ साजिश भी हो सकती है।

इस पर चौधरी साहब ने कहा कि तत्कालीन गृहमन्त्री को उसी समय इस सन्दर्भ में स्पष्टीकरण देना चाहिए था , इसका खण्डन करना चाहिए था , किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। ) खालिस्तान की मांग के पीछे बाहरी हाथ होने की बात भी की जाती है। एक – दो देशों के नाम भी लिए गये हैं। कुछ मुल्क हमारे देश को टुकड़े टुकड़े होते देखना चाहते हैं। अगर बदकिस्मती से देश बंटा तो यह इस देश के नेतृत्व की गलतियों के कारण होगा। वैसे देश बटेगा नहीं। आज हम देख रहे हैं कि यू. एस. ए. का क्या रवैया है , कनेडियंस का क्या रवैया है। ब्रिटिश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस लेविंगटन ने जिस तरीके का फैसला दिया है उससे बाहर के देशों के स्वार्थों का पता लगता है।

भिंडरांवाला : हीरो किसने बनाया ?

क्या गुरुद्वारे में प्रार्थना के लिए किसी धार्मिक स्थान पर कोई अपराधी या पुलिस जिस पर शक करती हो कि उसने अपराध किया है , ऐसा कोई आदमी जा सकता है ? इस सिलसिले में मैंने इन्दिरा जी को पत्र लिखा है । मैंने उसमें यह भी लिखा है कि संत भिंडरांवाला पर लाला जगतनारायण के कत्ल का आरोप था। आरोप गलत होगा , लेकिन पुलिस ने उनको गिरफ्तार नहीं किया। उल्टे रेडियो पर घोषणा की कि उनका वारंट जारी हुआ है। रेडियो पर यह बात घोषित की जाती है। इसके बाद संत भिंडरांवाला यह कहते हैं कि फलां जगह , फलां वक्त और फलां तारीख को मैं अपने आपको पेश करूंगा । लाख दो लाख लोग इकट्ठे हुए और सरकार चुपचाप देखती रही। उस वक्त भी मैंने इन्दिराजी को लिखा था कि इस तरह से उनका सिर ऊंचा हो जाता है। क्यों हुआ ऐसा ? यह किसकी गलती है ? यह गलती भारत सरकार की है। उस गलती को बताने का हक हमको होना चाहिए क्योंकि हम भी इस मुल्क के रहने वाले हैं।

यही नहीं , मुख्यमन्त्री दरबारा सिंह पत्र लिखते हैं ज्ञानी जैल सिंह जी को कि दो सौ आदमियों के साथ भिंडरांवाला बिना लाइसेंस के हथियारों के साथ दिल्ली आ रहे हैं। वे तीन हफ्ते यहां पर रहते हैं। बिना लाइसेंस के हथियारों को बस की छत पर रख कर राउण्ड लेते हैं। मैंने इन्दिरा जी को लिखा कि इतने राजनीतिक महत्त्व की बात आपकी इत्तिला में न हो , यह नहीं हो सकता। अखबारों में बाकायदा खबरें छपती हैं , लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं होती। इससे यह नतीजा निकालें कि वह कानून से ऊपर हैं , वह कानून की गिरफ्त से भी बाहर हैं। इससे दूसरे लोगों पर क्या असर पड़ेगा ?

आज तक १०० आदमियों का खून हो चुका है। १०१ वी हत्या पुलिस के डी० आई० जी० की हुई। १०२ वी हत्या आज पटियाला में या किसी अन्य जगह पर हुई है। वहां पर इससे जो तनाव हो रहा है उससे जाहिर है कि वह राजनीतिक हत्या है। एक आदमी पर भी मुकद्दमा नहीं चल रहा है। मुझे लगता यह है कि सरदार दरबारा सिंह कानून और व्यवस्था लागू करने के मामले में कुछ करने के लिए स्वतन्त्र नहीं हैं। वे यहां से हुक्म लेते हैं। मैंने इन्दिरा जी को लिख दिया है कि आपने सन्त भिंडरांवाला को हीरो बनाया है। गुरु नानक निवास के क्या मायने हैं ? ठीक है वह मन्दिर है। क्या दुनिया के किसी मन्दिर , मस्जिद या गिरजाघर में अपराधी चला जाये तो उसको गिरफ्तार नहीं किया जा सकता ?

इतना बड़ा पुलिस अफसर मारा गया और पुलिस कहती है कि गोली यहां से आई है , गोली वहां से आई है। इस मामले की तहकीकात पुलिस नहीं कर सकती। क्यों नहीं कर सकती ? मैंने इन्दिरा जी को पत्र लिखा और उन्होंने २५ मार्च को जवाब दिया है

” साम्प्रदायिक तत्त्वों से कड़ाई से निपटने की अपनी इच्छा की सदाशयता को हमें सिद्ध नहीं करना है।

अपने लिए साम्प्रदायिक तत्त्वों के खिलाफ कुछ भी कह लीजिए लेकिन आपने ठीक तरह से डील नहीं किया है।

” समाज विरोधी तत्त्वों को गुरुद्वारों में शरण देने बारे में हमें निश्चित रूप से चिन्ता है । लेकिन गुरुद्वारों में पुलिस भेजने के आपके सुझाव की गम्भीर प्रतिक्रिया होगी।

अगर आप देश पर शासन नहीं कर सकती हैं तो आपको इस्तीफा दे देना चाहिए। आप सबसे बड़े अपराधी को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। क्यों ? जो हत्या , जुल्म और डकैती करता है , स्टेन गन लेकर चलता है , और मैं तो भिंडरांवाले के बारे में कहूंगा कि १०-२० आदमी उसके साथ चलते हैं। वहां सैकड़ों आदमी मौजूद हैं। पुलिस अन्दर नहीं जा सकती क्यों कि उसकी प्रतिक्रिया खराब होगी। यह कोई व्याख्यान देने वाली जगह नहीं है। यह धर्म – स्थान है जहां गुरु ग्रन्थ साहब या पुराण का पाठ किया जाता है । कहीं जब यह आश्वासन दिया जायेगा कि अमुक जाति और अमुक किस्म के लोग कानून के ऊपर हैं तब कैसे काम चलेगा ?

एक बात यह है कि यूनिवर्सिटी में कोई आदमी या पुलिस नहीं जा सकती है जब तक वाइस चांसलर की इजाजत न हो। मैं जब होम मिनिस्टर हुआ तो मैंने सबसे पहले यह आर्डर किया कि ” उत्तर प्रदेश का प्रत्येक इंच भाग पुलिस कार्य क्षेत्र में है। उन्हें वाइस चांसलर की इजाजत की जरूरत नहीं है। तब एक कुत्ता भी नहीं भौंका क्योंकि उन्हें यह मालूम था कि मैं अपनी बात पर फिर से विचार करने वाला व्यक्ति नहीं था ” अब सवाल यह है कि इस मामले से कैसे निपटा जाये ? जब तक कानून लागू नहीं किया जायेगा तब तक यह बात बढ़ती ही रहेगी। लिहाजा कानून को लागू करना चाहिए तब जाकर काम चलेगा। शिकायतों को शिकायत हल करने के तरीके से ही दूर किया जाएगा।

हिन्दू – सिख एक हैं।

मैंने एक बार प्रेस कान्फरेन्स में और इन्दिरा जी से अलग से भी कहा कि सिख और हिन्दू दो नहीं हैं। ये एक हैं। हिन्दू का शरीर और रक्त सिख का है और सिख का रक्त और हड्डियां हिन्दू की हैं। गुरु लोगों ने , मेरे इतिहास के ज्ञान के हिसाब से , हिन्दुओं की खातिर कुर्बानी दी। अंग्रेजों के जमाने में जुल्म हो रहे थे। तो उन्होंने नेतृत्व दिया। अब जो सूरत पैदा हो गई है , उसको छोड़ दीजिए। लेकिन मेरे ख्याल में सिखों से ज्यादा हिन्दू गुरुद्वारे में पूजा करने के लिए जाते थे।

अल्पसंख्यक आयोग हमारे यहां जनता पार्टी में कायम हो गया था। मैं उस समय वर्किंग कमेटी में मौजूद नहीं था। मैं उसी समय आया , लेकिन कुछ समझ नहीं पाया। मैंने मोरारजी भाई से कहा वे भी देर से आये थे , मैंने कैबिनेट से तय करा लिया कि अल्पसंख्यक आयोग से समस्याएं खड़ी हो जायेंगी। मेरे सामने सवाल उठा था कि सिखों को अल्पसंख्यक माना जाय या नहीं। मैंने कहा कि मैं नहीं मानूंगा ! मैं कोई गलत बात नहीं कह रहा हूं। बहुत खुलकर और सीधी बात कह रहा हूँ। प्रकाश सिंह बादल और जगदेव सिंह तलवंडी से मेरे कुछ व्यक्तिगत ताल्लुकात भी हैं , क्योंकि प्रकाश सिंह बादल और मैं एक ही जेल में रहे थे । मैंने कहा यह बताइए कि अल्पसंख्यक की परिभाषा क्या है ? किसी गुरु ने कहा है कि आप हिन्दू नहीं हैं ? गुरु ग्रन्थ साहब में कहीं लिखा है ? बल्कि आखिरी गुरु गोविन्द सिंह ने देवी की पूजा की , उन्होंने मन्त्र लिखे हैं , श्लोक लिखे हैं , गाने गाये हैं , किसी ने कभी कहा कि हिन्दू नहीं हैं ? हिन्दू फिर क्यों जाते हैं गुरु ग्रन्थ साहब के पाठ में और क्यों मत्था टेकते वें गुरुद्वारे में ?

जहां तक दर्शन का सम्बन्ध है , जो आधार – दर्शन है – आत्मा का रूप बदलना , कर्म का सिद्धान्त , उसको मैं मानता हूं। हर मजहब में थोड़ा – थोड़ा फर्क होता है। मैं इत्तफाक से आर्यसमाजी हूं। मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता हूं , अवतार , जातिप्रथा और श्राद्ध में विश्वास नहीं करता हूं , तो क्या यह दावा कर सकता हूं कि हम भी अल्पसंख्यक हैं ? मुसलमानों में भी अलग फिरके हैं। तो इस तरह मैं सिखों को अल्पसंख्यक मानने के लिए तैयार नहीं हूँ। उनके पास इसका कोई जबाव नहीं था और वह चले गये। उसके बाद उन्होंने कोई लेटर नाराजगी को नहीं भेजा , कोई बयान नहीं दिया , कोई नाखुशी जाहिर नहीं की तथा समय से समझौता कर लिया और अल्प संख्यक आयोग ने काम करना शुरू कर दिया।

धीरे – धीरे लोगों की महत्वाकांक्षाएं बढ़ाइये , गलत चीजें करके लोगों को गलत रास्ते पर ले जाइये , वोट जरूर मिल जाएंगे , जो वोट का इरादा है कि हिन्दू को डराया जाय , और हिन्दू डरा हुआ है , मैं जानता हूं , हिन्दू मेरे पास आये हैं और मुझसे कहा चलने के लिए। मैंने कहा नहीं , यह ठीक नहीं है। तुम लोग अपने को संगठित करो और गुरुओं का जहां तक ताल्लुक है , गुरुद्वारा या गुरु ग्रन्थ का जहां तक ताल्लुक है , कभी कोई ऐसी बात न कहो जो किसी की कड़वी लगे , या बुरी लगे। और अगर नरम दल , जिसके नेता प्रकाश सिंह बादल हैं , यह हिम्मत करके आगे बढ़ते तो यह नौबत न आती जो आज आ रही है। लिहाजा यह मामूली बात नहीं है। अगर खालिस्तान बन जाता है तो कल को और स्तान बनेगा। नार्थ – ईस्ट इण्डिया के अन्दर ; मुझे डर है , २-३ साल के अन्दर क्रिश्चियन राज्य की मांग उठने वाली है। हम लोग धर्म , जाति , भाषा सब में बंट गये हैं औह हमारे नेता , जिनमें वास्तव में बड़प्पन था , जो हमारी असली बड़ी लीडरशिप थी , जिसने देश को आजाद कराया था , उसकी गलती रही। जितनी पार्टियां हैं करीब करीब सबने वही रास्ता अपनाया। ★

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