रायपुर। यहां कबीरधाम (कबर्धा) में आयोजित धर्मसंसद में सर्वसम्मत निर्णय लिया गया कि सांई को भगवान नही माना जा सकता और सांई की उपासना करने से भारतीय धर्म और संस्कृति को असीम संकट है। यहंा देश के कोने-कोने से उपस्थित हुए देश के संतों ने शास्त्रों के प्रमाण दे देकर सिद्घ किया कि एक जन्म लेने वाला दीनहीन (ऐश्वर्य विहीन) व्यक्ति कभी भी भगवान की श्रेणी में नही रखा जा सकता। जिस व्यक्ति (सांई) ने जीवन भर हिंदू धर्म को चोट पहुंचाने के लिए काम किया हो, उसकी पूजा करना और उसे मंदिरों में भगवान के रूप में प्रतिष्ठित करना शास्त्रों के विरूद्घ है। इसलिए संतों ने सांई को ईश्वर का अवतार तो दूर गुरू तक मानने से इंकार कर दिया।
सांई को भगवान न मानने की अपनी टिप्पणी से सुर्खियों में आए द्वारिका शारदा पीठ के शंकराचार्य, स्वरूपानंद सरस्वती ने ‘उगता भारत’ को बताया कि लोकतंत्र में प्रजा ही राजा होती है, इसलिए प्रजा का निर्णय ही सर्वोपरि होता है और यहां देश के कोने-कोने से उपस्थित हुए जनसमूह ने सिद्घ कर दिया है कि सांई उनका आराध्य देव नही है, और वे सांई पूजा के रहस्य को समझ गये हैं। शंकराचार्य ने कहा कि शंकराचार्य एक व्यक्ति नही अपितु एक संस्था होती है और उस संस्था का यह दायित्व है कि देश के धर्म और संस्कृति पर होने वाले आक्रमणों या आसन्न संकटों से वह देश के जन मानस को सचेत करता रहे। धर्म की पवित्रता की स्थापना के लिए इस संस्था का जन्म हुआ था। इसलिए हमें हर स्थिति में अपने कत्र्तव्य का निर्वाह करना होगा और देश-धर्म व संस्कृति के प्रति किसी भी प्रकार के प्रमाद को दूर भगाकर पुरूषार्थ का रास्ता अपनाना होगा।
शंकराचार्य ने कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार केवल अवतार और गुरूओं की उपासना की जा सकती है। लेकिन शिरडी के सांई असत्य, अचेतन और गुरू के रूप में पूर्णत: अयोग्य हैं। इसलिए उसकी उपासना नही की जा सकती। इस ‘धर्म संसद’ में देश के तेरह अखाड़ों और मठों से जुड़े साधु संतों ने शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के प्रस्ताव पर अपनी सहमति व्यक्त की। विशाल सरदार पटेल मैदान में उमड़े जनसैलाब को पूर्व केन्द्रीय मंत्री और परमार्थ आश्रम हरिद्वार के स्वामी परचन्मयानंद सरस्वती, महामण्डलेश्वर स्वामी विष्णु देवानंद गिरि, वल्लभमत जगन्नाथपुरी के रामकृष्णदास, अग्निअखाड़ा अमरकंटक के आचार्य रामकृष्णानंद निम्बार्क पीठ सलेमाबाद के राधा सर्वेश्वर शरण, जूना अखाड़ा हरिद्वार के महंत प्रेम गिरि, अयोध्याधाम के जगदगुरू राधवाचार्य पंच अग्नि अखाड़ा हरिद्वार के महामण्डलेश्वर कैलाशानंद जूना अखाड़ा, ओंकारेश्वर के स्वामी विवेकानंद पुरी दूधेश्वरमठ के श्री महंत नारायण गिरि सहित अनेकों साधु संतों ने संबोधित किया।
सांई को भगवान माने जाने के विरोध में आहूत की गयी धर्म संसद में काशी विद्वत्मंडल की ओर से संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति वशिष्ठ त्रिपाठी और शिवजी उपाध्याय द्वारा निर्णय दिया गया कि सांई पूजा हमारी संस्कृति को नष्टï करने के लिए चलाया गया एक सुनियोजित अभियान है। जिसमें विदेशी शक्तियों का षडय़ंत्र काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस षडय़ंत्र का भण्डाफोड़ कर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने देश पर और हिंदू धर्म पर महान उपकार किया है। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न धर्माचार्य प्रमुखों के तार्किक उदबोधनों तथा हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार एक ऐसा व्यक्ति जिसने जीवन भर भारतीय धर्म और संस्कृति को नष्टï करने का कार्य किया। कभी भी भगवान नही कहा जा सकता। और नही ही वह हमारे मंदिर में प्रवेश पाने का पात्र है। इसलिए आपसे कोई भी पंडित सांई की प्राण प्रतिष्ठा न करे।
लोगों में दीखी भारी उत्सुकता
शिरडी के सांई बाबा के विरोध में आयोजित धर्म संसद में कबर्धा में 24-25 अगस्त को आम लोगों में भारी उत्सुकता देखी गयी। देश धर्म के प्रति लोगों की आस्था देखते ही बनती थी। यहां 23 अगस्त से ही देश के साधु संतों का आगमन आरंभ हो गया था।
घंटों तक लोग धर्मसंसद में उपस्थित रहे, साधु संतों के उद्बोधनों को सुना और अपने उत्साह का प्रदर्शन किया। संसद के मंच पर जहां साधुओं का जमावड़ा था, वहीं दर्शक दीर्घा में लोगों ने अपनी उपस्थिति का आंकड़ा दिखाकर भी सिद्घ कर दिया कि देश के धर्म और संस्कृति पर आये किसी भी संकट को वे हल्के से लेने वाले नही हैं। देश के साधु संतों ने भी अपने उद्बोधनों से जनता का ढंग से मागदर्शन किया, और स्पष्टï किया कि सांई विरोध के मुद्दे पर वे सब एक हैं।
सभा में आये दो सांई भक्त
25 अगस्त को सांई के दो भक्तों ने व्यक्तिगत हैसियत से उपस्थित होकर सांई का पक्ष रखने का प्रयास किया। लेकिन उनकी बात की अहमियत इसलिए समाप्त हो गयी थी कि वे सांई ट्रस्ट के प्रतिनिधि के रूप में वहां नही गये थे जबकि धर्मसंसद का आयोजन सांई ट्रस्ट या सांई भक्तों की ओर से अधिकृत व्यक्ति या व्यक्तियों से शास्त्रार्थ करने के लिए किया गया था। इन सांई भक्तों ने स्वीकार किया कि सांई मुस्लिम थे और उनकी इस स्वीकारोक्ति को देश में सांई पूजा निषिद्घ करने के लिए काशी विद्वत्मण्डल ने अपना आधार बना। इन सांई भक्तों का जब दर्शकों व कुछ मंचासीन लोगों की ओर से विरोध किया गया तो उन्हें सुरक्षित ढंग से मंच से हटाकर पीछे की ओर बैठा दिया गया।
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