ओ३म्:पीयूष धारा-2
ओ३म् अकायम अपाप-विद्घम्
परि-अगात शुक्रम् अरू शुद्घम
कविर्मनीषी नित्य स्वयम्भू
ओ३म् शाश्वत सूक्ष्म परिभू ।। 30 ।।
जिसका है जग में उजियारा
सत्य सनातन ओ३म् हमारा
ओ३म् पिता सबकी सुध लेता
ठीक ठीक सबको फल देता ।। 31 ।।
ओ३म् अदृश्य अखण्ड असंगी
सृष्टि है जिसकी बहुरंगी
कालों का भी काल ओ३म् है
दाता दीन दयाल ओ३म् है ।। 32 ।।
समय अमोलक जानकर भजो ओ३म् का नाम।
ना जाने हो जाए कब इस जीवन की शाम ।।
ओ३म् इंद्र अग्नि अरू मित्रम
ब्रह्मा विष्णू रूद्र अक्षरम
गुणातीत ब्रह्मा है पहचानो
शुद्घ स्वरूप ओ३म् को जानो ।। 33 ।।
ओ३म् विश्व विश्वास विलासक
पाते हैं आनंद उपासक
पूरण परमोदार प्रतापी
महिमा ओ३म् को विश्व में व्यापी ।। 34 ।।
ओ३म् कृपा निधि करूणा सागर
दुर्गुण नाशक दीन दयाकर
ओ३म् ही चर में ओ३म् अचर में
ओ३म् रमा है जगती भर में ।। 35।।
ओ३म् सत्य का परम धाम है
उसको पाता आप्त काम है
आप्त काम सच्चा सुख पाता
ओ३म् पिता से रहता नाता ।। 36 ।।
तारागण आदित्य सोम में
ओ३म् रमा है रोम रोम में
ओ३म् नाम की निर्मल धारा
मन का कलुष मिटाती सारा ।। 37 ।।
ओ३म् जगत की हर हलचल में
निर्झर नदियों की कल कल में
ओ३म् दामिनी घन गर्जन में
पक्षी गण के कल कूजन में ।। 38 ।।
ओ३म् रमा फूलों खारों में
ओ३म् भ्रमर की गुंजारों में,
ओ३म् मृदुल मंजुल कलियों में
ओ३म् रमा वृक्षावलियों में ।। 39 ।।
व्याप रही ज्यों गंध सुमन मे
ओ३म् रमा ऐसे तन मन में
ना काशी ना वृंदावन में
ओ३म् सभी के हृदय भवन में ।। 40 ।।