भारतीय समाचार चैनल और श्रोता
डा0 इन्द्रा देवी (बागपत)
मानव जीवन के दो पहलू है। उसी प्रकार उसकी आवश्यकता भी दो प्रकार की दृष्टि पथ में आती है-एक शारीरिक दूसरी मानसिक। जब हम दिन भर श्रम करने के पश्चात थक जाते है। तब मस्तिष्क अपने अनुरूप कुछ खोजता है। तब हमारे लिए सबसे सुविधा जनक होता है टेलीविजन। किसी ने टी0 वी0 को बुद्धू बाक्स कहा किसी ने डरपोक दैत्य। आज की टेलीविजन की प्रासांगिकता ने दशको पुरानी उपर्युक्त अवधारणाओं को अप्रासांगिक बना दिया है। कुछ समय पहले अखबार एवं पत्र-पत्रिकाऐं ही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मानी जाती थी। अब इस स्थिति में परिवर्तन हो चुका है। आज प्रेस का स्थान मीडिया ने ले लिया है। मिडिया में इलैक्ट्रानिक (टी0 वी0, चैनल, केबल, रेडियों आदि ही केन्द्र में रहते है। देश के सत्तर-अस्सी प्रतिशत साक्षर निरक्षर लोगो की सीधे चेतना पर असर डालने वाले टी0 वी0 और चैनल है। यह शिक्षित, जागरूक और आधुनिक दुनिया को जोडने का सशक्त माध्यम है। वह जो कुछ हमे परोस रहे है उसे उदासीनता से नही छोड़ा जा सकता है।
आवश्यकता वहा पडती हेै जब ये चैनल अपराध की तफ्तीश ही नही करते अपितु स्वंय ही वकील और जज की भूमिका में आ जाते है। मात्र टी आर पी विज्ञापन बटोरने की होड़ बहुत कुछ छोड़ जाते है। ये चैनल आज दिन-रात हमारी सारी नैतिक, संास्कृतिक, पारिवारिक, आर्थिक, राजनैतिक मान्यताओं को झकझोर रहे है। सत्ता के खेल को बनाते बिगाड़ते खिलाड़ी अपने स्वार्थ और वर्चस्व के लिए हम जैसे दर्शकों का इस्तेमाल करने में माहिर।
कभी कहा जाता था कि हजारों संगीनों की तुलना में तीन विरोधी अखबारों से अधिक डरना चाहिए। आज के मिडिया परिदृश्य में अब यह कहा जा सकता है कि सैकड़ों बमों की अपेक्षा एक चैनल ज्यादा खतरनाक सिद्व हो सकता है। कतर चैनल अलजजीरा इसका प्रमाण है। सम्पूर्ण युरोप-अमेरिका इस चैनल की खबरों से बुरी तरह आतंकित है। आज भी यह चैनल ईराक, अफगानिस्तान, लीबिया, युक्रेन, इजराइल आदि के युद्व रणनीतिज्ञों को भयभीत किए रखता है। प्रत्येक माध्यम समाज की विकास अवस्था का प्रतिनिधि होता है। समाज और उसके विकास का दौर जितना सहज और सरल होगा, उसका संचार माध्यम भी वैसा ही होगा। हमारे परम्परागत माध्यम रामलीला, कीर्तन, स्वांग एवं नौटंकी इसके प्रतीक है। महाराष्ट्र सदन में रोजेदार और रोटी प्रसंग इसका प्रमाण है। स्थिति की गंम्भीरता और संवेदनशीलता के स्थान पर मूल समस्या की जड़ो में जाने के स्थान पर प्रत्येक भारतीय न्यूज चैनल ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी के लिए नमक-मिर्च के साथ परोसा। पुरे 24 धटे देश-विदेश की अन्य खबरों के लिए कान तरसते रहे। अवसर का लाभ लेकर अलजजीरा ने इस्लाम पर अन्तर्राष्ट्रीय खतरे का रूप देकर पूरे एक दिन रोजा-रोटी प्रसंग को प्रसारित किया। अब यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि भविष्य में इस घटना का क्या प्रभाव पहले से ही आतंक से ग्रस्त भारत पर क्या होगा।
यहॉ प्रश्न उठता है कि समाचार चैनलों की इस क्रांति से देश को क्या मिला है। किसी विद्वान ने कहा है कि अच्छे मिडिया की सबसे बडी खूबी यह होती है कि उसके द्वारा पूरा देश खुद से बात कर रहा है। लेकिन यह बात आज के समाचार चैनलों के बारे मे नही कही जा सकती है। सानिया मिर्जा का पाकिस्तान बहूॅ प्रसंग इसका प्रमाण है। विवाहोपरान्त निवास नागरिकता एवं गोत्र तक परिवर्तित हो जाते है। भारत जब जनघनत्व के बोझ से दब रहा है। सानिया को बेटी के रूप घर में रखना कहॉ तक औचित्य पूर्ण है। एक पूरा दिन समाचार चैनलों पर पाकिस्तानी बहूॅ या भारत की बेटी विवाद में क्या देश अपने को देख और सुन रहा था।
शायद सभी समाचार कक्षों में यह भय हावी रहा है कि अगर हमने इसे नही किया तो कोई और करेगा और ज बवह करेगा तो हमारी तुलना में कुछ ज्यादा पाठक या श्रोता बटोर ले जायेगा ऐसा लगता है पीछे रह जाने का यह डर सामान्य समझ और विवेक को भी कुंठित कर देता है इसलिए धटनाओं को सनसनीखेज और उतेजक बनाने के लिए उन्हे जरूरत से कई गुना बढकर पेश किया जा रहा है। इसलिए ऐसी धटनाओं के प्रस्तुतिकरण में नाटकीयता को भी शामिल कर लिया जाता है।
न्यूज चैनल में एक प्रवृति का दबदबा बढ रहा है। वह प्रतिस्पार्धा में एक्सक्लूसिव और ब्रेकिंग न्यूज की खोज में रहते है। वास्तव में ब्रेकिंग न्यूज और एक्सक्लूसिव अपना मूल अर्थ खो चूके है, ये दोनो ही दर्शन के लिए मजाक बनकर रह गए है। चैनल का आर्थिक पक्ष यह है कि वह लोक हित के लिए नही अपितु अधिक से अधिक अपने देशी-विदेशी निवेशकों के लाभ के लिए काम करते दिखाई दे रहे है। यह लाभ मुख्यत: विज्ञापन और दर्शको के सब्सक्रिप्शन से आता है इसीलिए यह दर्शको के साथ नागरिक नही अपितु उपभोक्ता बनाकर व्यवहार करते है। इस प्रकार उपभोक्ता बटोरकर यह विज्ञापन दाताओं को बेच देते है। समाचार चैनल मात्र मनोंरजन और विज्ञापनों के साधन नही है। प्रजातंत्र में उनका प्रथम उद्देश्य लोगों को सूचित और प्रबुद्ध करना है लोग जितने जागरूक होगें लोकतंत्र उतना ही गतिशील और मजबूत होगा। अगर सूचनाओं के लिए समाचार चैनलों पर निर्भर रहने वाले लोगों से असम, त्रिपुरा, सिक्किम, मिजोरम अरूणाचल प्रदेश, लक्ष्यदीप, केरल एवं झारखण्ड आदि प्र्रान्तों के सार्वजनिक और लोक जीवन से जुड़े मुद्दों पर उनकी जानकारी का स्तर जांचने के लिए एवं सर्वेक्षण किया जाए तो यह अनुमान लगाना कठिन नही कि नतीजा क्या निकलेगा?
लोकतंत्र में मिडिया राष्ट्रीय एजेंड़ा तय करने में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है जो कि जनतंत्रीय राजनीति की दशा-दिशा तय करती है कि हमारे चैनल यदि रोजा-रोटी, सानिया-मिर्जा भारत की बेटी, रणवीर- अनुष्का, नेस वाडिया- प्रीति जिंटा, सलमान-किक, जगदगुरू शंकराचार्य-साई बाबा विवाद वर्ण व्यवस्था और जगदगुरू, आसाराम और अपराध जैसे प्रसंगों को तानने में जुटे रहेगे तो देशवासियों के अच्छे दिन कैसे आयेगें।
समाचार चैनल लोकतंत्र में वह पब्लिक स्फेयर है। जहॉ बैठकर देशवासी अपने जीवन-मरण के गंम्भीर प्रश्नों पर र्सावजनिक चिंता और बहस कर सकते है। तभी राष्ट्रीय एजेंडा तय होगा सरकार को भी हरकत में आकर अच्छे दिनों की शुरूआत करनी पडेगी।
चैनलों के सनसनीखेज रूप की नियंत्रित रखने के लिए सरकार को अवश्य हस्तक्षेपकारी भूमिका निभानी होगी।
तटस्थ बने रहना, सब कुछ बाजार की ताकतों के हवाले कर देना तो इसके खतरनाक परिणाम सामने आ सकते है और आ भी रहे है। सहारनपुर दंगा, रोजा रोटी, सानिया मिर्जा, लेकसभा-राज्यसभा में इजराईल-हमास बहस की मांग प्रसारण की बहुत कुछ प्रतिक्रिया है।
जनतांत्रिक संस्थाओं, सुशिक्षित नागरिक समाज के संगठनों और बुद्धिजीवियों को भी इस प्रश्न पर अब विचार बनाना होगा उनके निष्क्रिय दर्शक रूपी उपभोक्ता बने रहने के बजाय सक्रिय नागरिक के रूप में अपने सूचना के अधिकार की मांग की जाए।