पुस्तक समीक्षा : ”मेरी इक्यावन कविताएं”
मेरी इक्यावन कविताएँ : लेखक-राकेश कुमार आर्य, प्रकाशक-साहित्यगार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर-302003, मूल्य-250/-रू., समीक्षक-सुमतिकुमार जैन, प्र. सं.-जगमग दीपज्योति (मा.) पत्रिका, महावीर मार्ग, अलवर (राज.) 301001
‘आर्य परिवार को माँ वागीश्वरी का वरदान प्राप्त है, परिवार की पूर्व हस्तियों ने इस धरा पर जन्म लेकर अपनी रोशनाई से साहित्य को जगमग किया है। डॉ. राकेश कुमार आर्य के अनुसार ‘इनके पितामह व पिता श्री एवं अब स्वयं व इनके सहोदर ने इस कथन को सत्य साबित किया कि साहित्य के लिए यह परिवार सदा से समर्पित रहा है।
साहित्याकाश का वर्तमान काल भी कम उल्लेखनीय नहीं है जहाँ मेरे हाथों से आर्य परिवार की कईं पुस्तकों की क्षीर-विवेकी समीक्षाएं करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। डॉ. राकेश कुमार आर्य एक सिद्धहस्त साहित्यकार के रूप में स्थापित हो चुके है। काव्य के उत्कृष्ठ सृजक, कहानीकार, निबन्धकार, लेख-आलेख आदि की अनेकों पुस्तकें श्री आर्य की हिन्दी साहित्य को अनुपम देन है। अधिकांशत: देखा गया है कि साहित्य की किसी एक विधा में पारंगत साहित्यकार सिर्फ और सिर्फ उसी विधा के दायरे में सृजनरत रहते हैं लेकिन यह प्रशंसनीय कि श्री राकेश जी कविताओं, लेख-आलेख, इतिहास, कहानियों में बल्कि साहित्य की हर विधा में पूर्ण सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनका हर विधा का साहित्य समय और समाज से संवाद करते हुए दिशाबोध देता है। ऐसे कार्य करने वाले साहित्यकार को सूर्य की तरह तपना और दीपक की तरह जलना पड़ता है तभी वह सभी विधाओं मेंं साहित्य सृजन कर पाता है और सही रूप में निरूपित कर पाता है।
‘मेरी इक्यावन कविताएं’ डॉ. राकेश कुमार आर्य की नवीन काव्य-कृति के रूप में प्रकाशित हुई है जिसमें उनकी 51 कविताएं हैं जो क्रमश ‘मत हार को उच्चारों कभी से ‘देश का भूत, वर्तमान और भविष्य तक संकलित हैं। डॉ. राकेश कुमार आर्य युगीन चेतना के प्रखर प्रहरी हैं। इस काव्य संग्रह से ऐसा लगता है कि उनका नाम हिन्दी काव्य-मन्दाकिनी के उस शतदल कमल का नाम है जिसकी मादक सुरभि पूरे देश में बिखर रही है। इस संग्रह में उन्होंने हिन्दी कविता का विधिवत शृंगार कर इस संग्रह में उकेरी हैं। नीरज जी के शब्दों में कहें तो-‘ये रचनाएं किताबों और पुस्तकालयों में बन्द होने वाली नहीं है, ये सदा-सदा के लिए समाज के होठों पर सजने व गुनगुनाने वाली हैं।
कविताओं में जहाँ प्रेम की खुमारी है, सौन्दर्य की चाशनी है और मनुहार की मीठी सुगन्ध है वहीं इनमें भावों के अनुरूप कोमलकान्त पदावली और कर्णप्रिय मधुर ध्वनियों का प्रयोग किया गया है। इनमें रूप और सौन्दर्य का मनमोहक चित्रण है। राकेश जी का अपना सार्वभौम चिन्तन है, जिसके लिए वे हिन्दी जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाये हुए हैं, इनमें सौन्दर्य-बोध पावन बन जाता है जब उसे परिपक्व लेखनी मिले, आध्यात्मिक चिंतन का स्पर्श मिले। प्रस्तुत संग्रह में सौन्दर्य का ऐसा विलक्षण वर्णन है जो मन को घिसकर शालीग्राम की शिला बना देता है, वह शालीग्राम जो तुलसी-दल की सुगंध से आप्यापित है।
श्री राकेश जी शब्दों के जादूगर हैं, सच्चे अर्थों में शब्द-शिल्पी हैं, भावभूमि के अनुसार ही वे स्वयं का$फीए बनाते हैं, शब्दों की संरचना करते हैं और उनका ऐसा सटीक प्रयोग करते हैं जो रमणीय बन जाते हैं। वर्णित कविताओं में जीवन की चहकती तरुणाई है, तेजस का प्रतिबिम्ब है, श्रेयस की मंगल कामना है, भावों की शीतल गहराई हैं-वह गहराई भी सागर जैसी अगाध, शान्त और नि:शब्द… फिर भी अपनी अन्तर्ध्वनि से पाठकों को आकर्षित करती है।
निष्कर्षत: यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की कृति में कवि का चिन्तन विराट है। भारतीय संस्कृति के शाश्वत मूल्य प्रत्येक कविता को अर्ध्य देते हैं, लयात्मकता से नाद-सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं। इन कविताओं में कहीं जयशंकर प्रसाद जैसी भाव-शबलता है तो कहीं सुमित्रानन्दन पंत सदृश्य कोमलकान्त पदावली की सरस शय्या है तो वहीं महादेवी वर्मा के अन्त:करण की करुणा और शुचिता कल्मष को धोकर हमें रसाप्लावित करती है। कवि की तत्सम प्रधान भाषा परिष्कृत, व्याकरण-सम्मत और काव्यात्मक है।
मेरी मंगल कामना है कि इनकी ‘मेरी इक्यावन कविताएँ पुस्तक पाठक के मन की धरा पर उतर कर ज्योतिर्मय हो जाए। इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए कवि श्री बधाई के पात्र हैं। हार्दिक शुभकामनाएं।
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