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दीपक सिंह भंडारी

इतिहास में सैकड़ों ऐसी घटनाएं दर्ज हैं जहां हिंदू से नये नये मुसलमान बने लोगों ने हिंदुओं पर अवर्णनीय अत्याचार किया या अगर अत्याचार करने की स्थिति में नहीं थे तो हिन्दू-द्रोह और देश-द्रोह में कोई कसर नहीं छोड़ी । समय और स्थान की बाध्यता का ध्यान रखते हुए मैं सिर्फ पांच ऐसे उदाहरण लूंगा जो अपने आप में क्लासिकल है और जिसके विषय में आप लोगों में से अधिकतर लोग थोड़ा-बहुत जानते हैं।

1. सुहा_भट्ट कश्मीर का एक सम्मानित और प्रसिद्ध ब्राह्मण था और सिकन्दर बुतसिकन का समकालीन । 1389 से 1413 के दौरान सिकन्दर (बुतसिकन) की बादशाहत थी । सिकन्दर हिन्दू धर्म और मूर्तियों का इतना बड़ा दुश्मन था कि उसे “बुतशिकन” यानि “मूर्तिभंजन” की उपाधि मिली थी/है। इस दौरान कश्मीर में हिंदुओं के ऊपर बहुत अत्याचार हो रहा था । सुहा भट्ट को भी मुसलमान बनाने के लिए सताया गया। प्रारंभ में उसने उसका विरोध किया लेकिन बाद में उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया। इस्लाम स्वीकार करने के बाद उसे सिकन्दर बुतसिकन ने अपना प्रधानमंत्री बना दिया और सुहा भट्ट सैफुद्दीन” के नये नाम से प्रसिद्ध हुआ । कश्मीर के सुल्तान का प्रधानमंत्री होने के कारण उसके पास बहुत शक्तियां थी। सुल्तान स्वयं एक कट्टरपंथी मुस्लिम था । लेकिन मैं अभी सुल्तान के अत्याचारों की बात नहीं करूंगा।

सुहा भट्ट यानि सैफुद्दीन ने जो किया उसका संक्षिप्त वर्णन कर रहा हूं । सुहा भट्ट यानी नए धर्म परिवर्तित सैफुद्दीन ने अनंतनाग जिले में ही लगभग 300 मंदिरों का विनाश किया । उसी के समय विश्व प्रसिद्ध मार्तंड मंदिर को तोड़ा गया । यह मंदिर इतना मजबूत था कि इसे तोड़ने में एक वर्ष के बाद भी जब सफलता नहीं मिली तो इसकी नींव को खुदवा कर इसे पूरी तरह नष्ट करने का प्रयास किया। बाद में इसमें आग लगा दी गई। कश्मीर के अनंतनाग जिले में यह स्थान अब मट्टन (मार्तंड का तद्भव “मट्टन”) के नाम से जाना जाता है ।

सुहा भट्ट का आदेश था जितने भी मंदिर हैं उनमें जो भी मूर्तियां सोने, चांदी या कीमती धातुओं की मिले उन्हें उठाकर पिघला दिया जाए और राजकोष में जमा कर दिया जाए। जिन्हें तोड़ा जा सकता है उन्हें तोड़ दिया जाए और जिसे तोड़ा नहीं जा सकता उनमें मानव मल से प्रतिदिन स्नान कराया जाए। कश्मीरी पंडितों का इस दौरान सामूहिक धर्मांतरण हुआ। जिन्होंने धर्मांतरण नहीं किया या तो मार डाले गये या कश्मीर से भगा दिए गए। उनकी भूमि, सम्पत्ति छीन ली गई। यह सब कुछ इतिहास में दर्ज है।

कश्मीर से अधिक बेहतर लिखित इतिहास भारत के किसी अन्य राज्य या क्षेत्र का नहीं है। आप सभी को पता है कि भारत का पहला इतिहासकार कल्हण (बारहवीं शताब्दी) कश्मीरी पंडित था जिसने “राजतरंगिणी” (1148-49) में कश्मीर सहित भारत के अन्य राजाओं के इतिहास का भी वर्णन किया है। कल्हण के बाद उस परंपरा को जारी रखते हुए दूसरे कश्मीरी पंडित “जोनाराजा” (चौदहवीं शताब्दी) ने “द्वितीय राजतरंगिणी” की रचना की और उनके शिष्य “श्रीवर” ने तृतीय राजतरंगिणी की रचना की।

उपरोक्त विवरण द्वितीय राजतरंगिणी में लिपिबद्ध हैं। जोनाराजा लिखते हैं कि सुहाभट्ट यानी सैफुद्दीन के समय में कश्मीर घाटी में अभी भी हिंदू बहुसंख्यक थे। सुहाभट्ट यानी (इस्लाम में नया नाम प्राप्त किया हुआ) सैफुद्दीन ने कल के अपने ही पंडित भाइयों के ऊपर बहुत अत्याचार किए। अब सवाल यह आता है कि कल का कश्मीरी ब्राह्मण आज इतना बड़ा कट्टरपंथी मुसलमान बनकर इतने अत्याचार क्यों करता है ? मुसलमान बनने के बाद उसने ऐसा क्या सीखा, क्या समझा जिसकी वजह से वह अपने ही भाइयों का और संपूर्ण कश्मीरी संस्कृत का दुश्मन हो गया। कलमा पढ़ा, आसमानी किताब पढ़ी और मौलवियों से दीक्षा ली बस। तैयार हो गया मानवता और मानव संस्कृति को नष्ट करने वाला ज़हर।

२. अल्लामा_इक़बाल

अल्लामा मोहम्मद इकबाल के पूर्वज, अधिकतर कश्मीरी मुस्लिमों की तरह ब्राह्मण थे। इनका गोत्र सप्रू था और ये शैव मत का अनुयायी था। उनके पिता भी जन्म से हिन्दू थे और उनका नाम रतन लाल सप्रू था। वे लोग शोपियां से कुलगाम जाने वाली सड़क पर स्थित सपरैन नामक गांव में रहते थे, इसी कारण उन्हें सप्रू कहा जाता था। कुछ लोग इन्हें आज के “सोपोर” का रहने वाला बताते हैं जिससे ये “सोपोरू” (सप्रू) कहलाया। बाद में यह परिवार श्रीनगर चला गया और श्रीनगर से सियालकोट (अब पाकिस्तान) जो भारत के पठानकोट से बहुत निकट ही सीमा पार है।
लेकिन मुसलमान बनने के बाद यह कितना जहरीला हो गया इसका अनुमान आप इस बात से लगाइये कि इक़बाल को पाकिस्तान का मानस पिता (ideological father) कहा जाता है। 29 दिसंबर 1930 को इलाहाबाद में जब “अल्लामा इकबाल” की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग का 25 वां सम्मलेन हुआ तब इकबाल ने अपने भाषण के दौरान यह कहा था:

हो जाये अगर शाहे-खुरासां का इशारा ,
सिजदा न करूँ हिन्द की नापाक जमीं पर।

यानी

“अगर तुर्की (खुरासान, अब यह ईरान का उत्तरी राज्य है) का खलीफा इशारा भी कर दे तो भारत की नापाक (अपवित्र) जमीन पर नमाज भी नहीं पढूंगा।”

चूँकि नापाक का अर्थ अपवित्र होता है, और उसका विलोम शब्द “पाक” यानि पवित्र होता है| यही शब्द पाकिस्तान की नींव बनी। पाकिस्तान एक विचार था जो अल्लामा इकबाल के दिमाग की उपज थी।

जब 1913 में रवींद्र नाथ टैगोर को बांग्ला भाषा में उनकी कृति “गीतांजलि” पर नोबल पुरस्कार मिला तो अल्लामा इक़बाल बहुत व्यथित था। रवींद्र नाथ टैगोर पहले एशियाई थे जिन्हें नोबल पुरस्कार मिला था। इसके पूर्व एशियाई मूल के किसी भी व्यक्ति को किसी भी विषय में नोबल नहीं मिला था। इक़बाल को इस बात का बहुत दुःख था फारसी की बजाय बांग्ला को पुरस्कार कैसे मिला और किसी मुसलमान (उसे स्वयं को) की बजाय टैगोर ( एक हिंदू ब्राह्मण) को कैसे मिला। इक़बाल ने तुर्की के खलीफा को पत्र लिखकर प्रार्थना की कि वह नोबल कमीटी से यह पुरस्कार निरस्त करायें।

सवाल वही है कि बस एक पीढ़ी बाद ही अपने देश जाति, धर्म, समाज और गैर-मुस्लिमों से इतनी धृणा?

तो ये ज़हर कहां से आता है?

३. मोहम्मद_अली_जिन्ना: (25 दिसंबर 1876 -11 सितंबर 1948)

जिन्नाह, मिठीबाई और जिन्नाहभाई पुँजा की सात सन्तानों में सबसे बड़ा था। उनके पिता जिन्नाभाई एक सम्पन्न गुजराती व्यापारी थे, लेकिन जिन्ना के जन्म के पूर्व वे काठियावाड़ छोड़ सिन्ध में जाकर बस गये। जिन्नाह के पूर्वज हिन्दू राजपूत थे, जिन्होंने इस्लाम क़बूल कर लिया।
बताने की आवश्यकता नहीं कि उसने भारत और उसकी संस्कृति को कैसे तार तार किया। वह लगभग बीस लाख लोगों की मौत कि कारण बना और उसके कारण डेढ़ करोड़ बेघर हुए। हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ। पीढ़ियां नष्ट हो गयी और पाकिस्तान नाम का नासूर जाने कितने वर्षों तक हमें खाता रहेगा। आज पाकिस्तान आतंकवाद की नर्सरी है। एक क्षत्रिय राजपूत व्यापारी से मुसलमान और बैरिस्टर फिर इस्लाम का अलम्बरदार। आखीर में मानवता का दरिन्दा।

तो ये ज़हर कहां से आता है?

४. शेख और फारूक_अब्दुल्ला:

फारूक़ के पिता शेख़ अब्दुल्ला कश्मीर के बड़े राजनीतिज्ञ थे। राजनीतिक दल ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’ की स्थापना उन्होंने की थी जिसे पहले ‘मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ कहा जाता था। शेख़ कश्मीर के भारत में विलय से पहले उसे मुस्लिम देश बनाना चाहते थे।

अपनी आत्मकथा (ऑटोबायोग्राफी) ‘आतिश-ए- चिनार’ में इसका ज़िक्र किया है कि उसके पूर्वज हिंदू और कश्मीरी पंडित थे। इस पुस्तक में उसने बताया है कि उसके परदादा का नाम बालमुकुंद_कौल था। उसके पूर्वज मूल रूप से सप्रू गोत्र के कश्मीरी_ब्राह्मण थे।

तीन पीढ़ियों की इनकी करतूतों और इनके विषय में अभी कुछ बताने की आवश्यकता है क्या?

शेख अब्दुल्ला देश द्रोह के आरोप में अपने ही भाई “नेहरू” द्वारा जेल में डाला गया था। फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला अभी देशद्रोह के कारण ही preventive detention में हैं।

५. ओवैसी
तुलसीराम_दास एक तैलंग हिन्दू था। अपनी योग्यता के कारण निज़ाम के यहां अच्छे पद पर नौकरी मिल गयी। फिर निज़ाम के प्रभाव में आकर कलमा पढ़ा। फिर रजाकार बन गया। भारत विभाजन के समय तेलंगाना के हिन्दुओं पर तमाम अत्याचार किया।

अब उसका एक परपोता संसद से हैदराबाद तक हिन्दू-द्रोह का नेता है। वह CAA विरोध के अग्रणी नेताओं में है। उसका छोटा भाई सामाजिक वैमनस्य फैलाने के लिए जेल जा चुका है। उसने भाषण में कहा था “बस पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटा लो हम बता देगे हम कौन हैं।”

तो ये ज़हर कहां से आता है?

आज पूरी दुनिया में आसमानी किताब की शिक्षा आतंकवाद का दूसरा नाम है।

निदा फ़ाज़ली तक के मुंह से निकल गया:

उठ-उठ के मस्जिदों से नमाज़ी चले गए,
दहशत गरों के हाथ में इस्लाम रह गया।
(सोशल मीडिया से साभार)

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