शिक्षक दिवस पर शिक्षार्थियों से सीधे जुड़ना और आत्मीय चर्चा में हिस्सा लेते हुए बच्चों से बतियाते हुए कई रहस्य भरी प्रेरक बातों के बारे में समझाना और आदर्श माहौल बनाने की पहल करना अपने आप में युगीन उपलब्धि है।
भारतीय इतिहास में बहुत बड़े-बड़े लोग हुए हैं जिन्होंने भारी-भरकम उपदेशों से अपने आपको और भी अधिक भारी और महान विद्वान की श्रेणी में ला खड़ा किया है। लेकिन भारतीय इतिहास में गिने-चुने लोग ऎसे हुए हैं जिन्हें सर्वस्पर्शी और अनुकरणीय माना जा सकता है। वर्तमान में श्री नरेन्द्र मोदी एकमात्र ऎसे व्यक्ति के रूप में उभरे हैं जिन्हें इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने बच्चों से पसीना बहाने, परिश्रम करने, महापुरुषों के जीवन चरित्र से प्रेरणा पाने, शिक्षकों और बच्चों के आत्मीय एवं अन्तरंग संबंधों, विद्यालयों को आदर्श स्वरूप देने, स्वावलम्बन और नवाचारों के प्रयोग, शिक्षकीय गौरव एवं गरिमा में अभिवृद्धि, किताबी ज्ञान से बढ़कर सीखने और खेलकूद को अपनाने, प्रकृति से रिश्तों की मजबूती, माँ और गुरु की महिमा, बोध कथाओं और बचपन की रोचक घटनाओं के जरिये समझाने, बच्चों के धरातल पर उतर कर बच्चों से आत्मीय और अनौपचारिक संवाद, बार-बार बच्चों की मुस्कराहट और कई बार तालियों की गड़गड़ाहट, बच्चों को हँसाते हुए माहौल को हलका-फुलका रखने और विद्यार्थी जीवन की गतिविधियों और संस्कारों के बारे में जो कुछ चर्चा की, वह देश के शिक्षा जगत में अपने आप में अनूठा प्रयोग तो है ही, स्वर्णिम इतिहास का एक पृष्ठ भी बनकर तैयार हो चुका है।
बच्चों ने भी जिस तरह बिना किसी संकोच के खुलकर अभिव्यक्ति दी, वह बाल विकास के मनोविज्ञान का सुन्दर उदाहरण कहा जा सकता है। कुल मिलाकर देश के बच्चों और प्रधानमंत्रीजी की यह पारस्परिक चर्चा और रोचक-मोहक बातें भारत के भविष्य की नींव मजबूत करने की दृष्टि से सार्थक और ठोस पहल के रूप में देखी जानी चाहिए।
इस कार्यक्रम के दौरान नई दिल्ली के मुख्य समारोह में मौजूद तथा देश भर में इस चर्चा में शामिल बच्चों के मस्ती भरे चेहरे और बाल सुलभ स्वभाव का आनंद तो देखने लायक रहा ही, बच्चों ने छोटी-छोटी बातों से बड़ा बनने के गुर भी सीखे और अपने प्रधानमंत्रीजी को आश्वस्त भी किया।
चर्चा के बाद जिस तरह नरेन्द्र मोदीजी बच्चों के बीच पहुंचे और उनसे चर्चा की, वह भी अपने आप में रोचक क्षण ही था जिसने बच्चों को स्नेह से अभिभूत कर दिया। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी का उद्बोधन भी उदात्त और माधुर्य भरा रहा।
बच्चों को इतना महत्त्व देने वाला यह पहला कार्यक्रम कई मायनों में ऎतिहासिक यादगार कहा जा सकता है। स्वयं बच्चों और प्रधानमंत्री के बीच की दूरियों का इतना करीब सिमट आना और पूरी सादगी के साथ आत्मीय माहौल का सृजन हो जाना शायद किसी की कल्पना में नहीं था। बच्चों से इतना करीबी और आत्मीय संवाद करने वाले श्री नरेन्द्र मोदी ने बच्चों से पारिवारिक प्रेम के संदर्भ में कई पुरानी हस्तियों के मिथकों को दो घण्टे की चर्चा में ही ध्वस्त कर डाला।
सबसे बड़ी बात यह रही कि आम तौर पर बड़े लोगों के औपचारिक भाषण या चर्चा बच्चों की समझ में उतनी नहीं आ पाती जितनी कि बड़े-बूढ़े समझ सकते हैं। लेकिन इस चर्चा में प्रधानमंत्रीजी और बच्चों के बीच संवाद में सरल-सहज और सुबोधगम्य भाषा शैली की सादगी अन्त तक बनी रही और दोनों तरफ से संवादों का जो अनौपचारिक दौर बना रहा उससे बच्चों को भी खूब मजा आया, और श्री मोदीजी यही चाहते थे।
प्रधानमंत्रीजी और बच्चों के बीच की बातें देश के करोड़ों बच्चों ने ही नहीं बल्कि उनके अभिभावकों और करोड़ों देशवासियों ने भी देखी-सुनी। इससे देश के एजुकेशन विज़न की झलक तो मिली ही, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मन की सोच को भी जानने का मौका देशवासियों को मिला।
देश में शिक्षा जगत के इतिहास में यह अपूर्व एवं अविस्मरणीय पहल कही जा सकती है। इस कार्यक्रम से पहले और बाद में जिस तरह से टीवी मीडिया में देश के कोने-कोने से खासकर बच्चों की तरफ से जो प्रतिक्रियाएं आयी, उनसे इस बात को लेकर तो आश्वस्त हुआ ही जा सकता है भारत का बाल मन देश को ऊँचाइयों की ओर ले जाने के लिए हर संभव भागीदारी निभाने को तैयार है।
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