भरते-भरते घडा़ पाप का,
कही भर गया तो क्या करोगे?
मरते हो तुम जिसपे इतना ज्यादा,
वही मर गया तो क्या करोगे?
नजर से तुम्हारी हटे ये नजर,
नजर मे तुम्हारी नूरे नजर।।
वैसे विधाता ने छीनी नजर,
पराई अमानत पर फिर भी नजर।।
जरते-जरते भतीजों पे अपने,
सभी जल गया तो क्या करोगे?
स्वयं खोदते काहे अपनी कबर,
उसे काटते काहे बैठे जिस डाल पर।।
विषघर की बॉंवी में ना डालों कर,
कुल्हाडी न मारों निज पॉव पर।
हरते हरते यूॅ ही चैन उनका,
सभी हर गया तो क्या करोगे?
तुम्हारे दुलारों का नैतिक पतन,
उधर पाण्डवों का शुभ चालों चलन।।
मानों सुदर्शन न उठाये किशन,
कौरवों पर भारी कुन्ती ललन।।
करते यू ही काम उल्टा,
उल्टा असर कर गया तो क्या करोगे।।
पंडित रमा शंकर तिवारी
(मंन्शा देवी मन्दिर)