इस्लामी एकाधिकार की भावना को प्रोत्साहित करने वाले तत्वों को हतोत्साहित करना होगा, साथ ही कश्मीर को अनुच्छेद 370 से भी मुक्त करना होगा, यह अनुच्छेद न केवल कश्मीर के विकास में बाधक है, वरन राष्ट्रीय अखण्डता के विपरीत भी है।
यह है धर्मनिरपेक्ष भारत का जम्मू कश्मीर, जहां पाकिस्तान से 1947 में आये दो लाख हिंदू आज भी शरणार्थी हैं, नागरिक नही:
सरसठ वर्ष पूर्व 1947 में पाकिस्तान से आए दो लाख हिंदू शरणार्थी जम्मू कश्मीर में प्रविष्ट हुए।
इन शरणार्थियों की क्या दुर्दशा है, इस पर आज तक भारत के निर्वाचन आयोग, मानव अधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, एमनेस्टी इंटरनेशनल, प्रदेश सरकार तथा केन्द्र सरकार ने क्या किया है, वास्तव में इसका अधिकृत श्वेत पत्र प्रकाशित होना चाहिए। खेद है कि हमें श्वेत पत्र के स्थान पर इन संस्थाओं के कार्यों का काला चिट्ठा यहां प्रस्तुत करना पड़ रहा है।
जब ये दो लाख शरणार्थी जम्मू के निकटवर्ती क्षेत्रों में आये तो सरकार की इच्छा थी कि इन्हें बसने के लिए भूमि व आवास आदि की सुविधा प्रदान की जाए। लाखों मुसलमान भी जम्मू क्षेत्र छोडक़र पाकिस्तान चले गये थे, जिनकी जमीनें व मकान इसके लिए उपयोग में लाये जा सकते थे। परंतु ऐसा नही हुआ और स्वतंत्र भारत के 67 वर्ष के इतिहास में हिंदू शरणार्थियों की दर्दनाक स्थिति का कोई हल खोजने का प्रयत्न तक नही किया गया। पहले सरकार ने इन शरणार्थियों को किरायेदार के रूप में जमीनें व मकान दिये, परंतु बाद में किरायेदारी का अधिकार भी वापिस ले लिया गया।
हिंदू शरणार्थियों पर धर्मनिरपेक्ष भारत में किये जा रहे अत्याचारों का काला चिट्ठा :
काला कानून क्रमांक-1
जम्मू कश्मीर में 1944 से पहले नागरिकों को मतदाता माना गया। 1953 में जम्मू कश्मीर सरकार ने प्रदेश के निर्वाचन कानून के अनुच्छेद 4ए में संशोधन करके नियम बनाया कि विधानसभा चुनाव में वही मतदाता होगा जो जम्मू कश्मीर का स्थायी नागरिक होगा और स्थाई नागरिक वही माना जाएगा जो 1944 से पहले यहां स्थायी नागरिक था। इस संशोधन के पीछे उद्देश्य यही था कि पाकिस्तान से आये दो लाख हिंदू जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के मतदाता न बन सकें।
काला कानून क्रमांक-2
1954 में बख्शी गुलाम मोहम्मद मुख्यमंत्री ने नि:शुल्क शिक्षा देने का कानून बनाया, परंतु शर्त यह थी कि सीमा पार से आए लोगों को यह सुविधा नही मिलेगी।
काला कानून क्रमांक-3
20 जुलाई 1976 में एक कानून बनाया गया जिसके अनुसार बुढ़ापा व विकलांग पेंशन उन्हीं नागरिकों को मिल सकेगी जो स्थायी नागरिक हैं। अर्थात 1944 से पूर्व जो स्थायी थे। इस कानून का लक्ष्य भी एकमात्र इन हिंदू शरणार्थियों को इन सुविधाओं से वंचित करना था।
काला कानून क्रमांक-4
24 नवंबर 1976 को एक कानून बनाया जिसके अनुसार वे लोग जिनके हाथ पांव या शरीर का कोई भाग अपंग हो जाए या टूट जाए, तो सरकार उन्हें कृत्रिम अंग नि:शुल्क प्रदान करेगी, परंतु स्थायी नागरिकता के आधार पर, ये हिंदू शरणार्थी इस सुविधा से वंचित रखे गये।
काला कानून क्रमांक-5
1976 में मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला की ओर से आदेश जारी किया गया कि जिन शरणार्थियों को पहन्ले जमीन पर किरायेदार माना गया था अब उनसे किरायेदारी का अधिकार वापिस लिया जाता है।
काला कानून क्रमांक-6
1980 में नियम बनाया गया कि ग्रामों के नंबरदार वही व्यक्ति बन सकेंगे जो प्रदेश के स्थायी नागरिक होंगे। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन ग्रामों में हिंदू शरणार्थी ही निवास करते थे उनमें भी बाहर गांव के स्थायी निवासी को नंबरदार के रूप में इनके ऊपर थोप दिया गया।
काला कानून क्रमांक-7
15 दिसंबर 1984 को आदेश प्रसारित हुआ कि बीस सूत्री कार्यक्रम के अंतर्गत निर्धनों को नि:शुल्क कानूनी सहायता दी जाएगी, किंतु केवल उनको जो रियासत के स्थायी नागरिक हैं। हिंदू शरणार्थी वर्ग को पुन: वंचित करने का सोचा समझा षडय़ंत्र चलाया गया।
काला कानून क्रमां-8
1947 में पाकिस्तान से आये हिंदू शरणार्थी या उनके बच्चे जम्मू कश्मीर में कोई सरकारी नौकरी नही कर सकते, चपरासी भी नही बन सकते।
भारत सरकार द्वारा काला कानून बनाने में सहयोग :
जम्मू कश्मीर विधानसभा को जो काले, पीले या सफेद कानून बनाने का अधिकार है वह अधिकार उसे भारत सरकार से प्राप्त हुए हैं। धारा 370 भारत के संविधान का भाग है जिसके समाप्त करने का अधिकार भी उसी के पास है।
क्रमश:
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