*संत रविदास की जयंती के अवसर पर तिलपता मे हुआ हवन कीर्तन व वैचारिक गोष्टी*

दादरी। ( आर्य सागर खारी ) गांव तिलपता के अंबेडकर स्मारक समिति में *संत शिरोमणि रविदास* की 572 वी जयंती माघ पूर्णिमा के अवसर पर हवन कीर्तन विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जात पात ढोंग आडंबर छुआछूत सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन को लेकर संत रविदास जी के योगदान पर चर्चा की गई साथ ही मुस्लिम आक्रांताओं के धर्मांतरण के विरुद्ध रविदास जी के सफल सार्थक प्रतिरोध पर भी प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम का आयोजन आर्य समाज तिलपता करणवास ने किया जिसमें महावीर आर्य जी महाशय किशन लाल आर्य जी का योगदान रहा। यज्ञ के यजमान दिनेश जाटव जी रहे। आमंत्रित विद्वान प्रसिद्ध इतिहासकार उगता भारत समाचार पत्र के संपादक डॉ राकेश कुमार आर्य रहे जिन्होंने अपने उद्बोधन में संत रविदास जी ने इस विषय पर अपने उद्बोधन में प्रकाश डाला कैसे संत रविदास ने भारत के हरिजन समाज को मुस्लिम होने से बचाया मुस्लिम हो चुके हिंदुओं को पुनः शुद्ध किया जो कार्य स्वामी दयानंद स्वामी श्रद्धानंद ने किया संत रविदास ने भी वह कार्य किया।

आर्य जी ने कहा संत रविदास ने छुआछूत ढोंग आडंबर कुर्तियों के विरुद्ध घूम घूम कर चेतना जगाई सर्व समाज को एकीकृत किया। लोदी वंश के संस्थापक सिकंदर लोदी के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हवन के पश्चात राजेंद्र प्रसाद शर्मा जी ने हवन की महिमा विषयक बहुत सुंदर भजन सुनाया कार्यक्रम का संचालन आर्य सागर खारी ने किया साथ ही उन्होंने भी अपना उद्बोधन दिया सागर खारी जी ने भी संत रविदास के व्यक्तित्व कृतित्व पर व्यापक प्रकाश डाला उन्होंने कहा संत रविदास निरीक्षर थे लेकिन संतों के सानिध्य में बहुश्रुत होकर उन्होंने वैदिक ज्ञान को प्राप्त किया संतों के सत्संग से चर्मकार रविदास संत रविदास बन गए संत रविदास संतों की निष्काम भाव से सेवा करते थे वाराणसी के घाटों पर घूम घूम कर साधु संतों को निशुल्क अपनी बनाई हुई जूतियां भेंट करते थे लोगों को उपदेश करते थे कि बाहरी आडंबर धर्म नहीं है मन की पवित्रता ईश्वर की वेदआज्ञा पालन ही सच्चा धर्म है।


जन्म से कोई छोटा बड़ा नीच नहीं होता मनुष्य के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं। सागर खारी ने बताया कि संत रविदास ने रविदास रामायण अन्य साहित्य की भी रचना की संत रविदास के 40 से अधिक शब्दवाणीयों को सिक्खों के गुरु अर्जुन देव ने *गुरु ग्रंथ साहिब* में भी उनका संकलन किया है सिख पंथ में भी संत रविदास की काफी मान्यता है रविदासियो का अलग संप्रदाय सिख समुदाय में है।

*जन्म के कारनै*
*होत न को नीच*
*नर कू नीच करि डारी है*
*ओछे करम की कीच*

*ब्राह्मण मत पूजीये जो हो गुण हीन*
*पूजीये चरण चांडाल के जो हो गुण प्रवीण*

*वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान*
*वेद धर्म छोड़कर क्यो पढ़ू झूठा कुरान*
*वैदिक धर्म छोडू नहीं चाहे जतन करो हजार*
*तिल तिल काटो चाहे गल काटो कटार*

श्री सागर खारी ने बताया कि संत रविदास निर्गुण ब्रह्मा के उपासक थे। उनके उद्बोधन के पश्चात डॉ राकेश कुमार आर्य जी आमंत्रित विद्वान का विशेष उद्बोधन हुआ उन्होंने बताया कि संत रविदास का जन्म 1450 ईस्वी में हुआ। उनके पिता का नाम रग्घु ,माता का नाम घुरविनिया का पत्नी का नाम लोना था। डॉ राकेश कुमार आर्य जी ने अपने उद्बोधन मैं कहा। वामपंथी इतिहासकारों ने संत रविदास को मात्र भक्ति काल के संत के तौर पर ही प्रचारित किया है जबकि संत रविदास संत ही नहीं धार्मिक योद्धा भी थे जिन्होंने लोदी वंश के सुल्तान सिकंदर लोदी के कुटिल मंसूबों हिंदुओं के मुसलमान बनाए जाने के मंसूबे पर पानी फेर दिया था। जात पात मैं बटे हुए हिंदू समाज को जागृत कर एकीकृत किया। कार्यक्रम के समापन पर महावीर आर्य जी ने भी अपना उद्बोधन रखा उन्होंने कहा हमें संत रविदास से प्रेरणा लेनी चाहिए सर्व समाज को मिलजुलकर ऐसे महापुरुषों की जयंती मनानी चाहिए। अंत में डॉ राकेश कुमार आर्य जी ने अपने द्वारा रचित पुस्तक *लोकतंत्र और स्वस्तिवाचन* यजमान दंपत्ति को भेंट की सभी प्रबुद्ध लोगों ने या जवानों को आशीर्वाद दिया।
साथ ही संकल्प लिया संत रविदास की शिक्षाओं को समाज में प्रचारित किया जाएगा प्रत्येक वर्ष उनकी जयंती को धूमधाम से मनाया जाएगा।

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