द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया जो देती है चीन की दीवार को टक्कर
कुम्भलगढ़, उदयपुर, राजस्थान। चीन की दीवार का नाम विश्व में सभी जानते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में भी एक ऐसी दीवार है जो सीधे तौर पर चीन की दीवार को टक्कर देती है। जिसे भेदने की कोशिश अकबर ने भी की लेकिन भेद न सका। जिसकी दीवार की मोटाई इतनी है कि उस पर 10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। कैसे बनी ये 36 किलोमीटर लंबी दीवार? किले के दीवार की निर्माण से जुड़ी कहानी बहुत ही दिलचस्प है। 1443 में राणा कुंभा ने किले का निर्माण शुरू किया लेकिन, जैसे जैसे दीवारों का निर्माण आगे बढ़ा वैसे-वैसे दीवारें रास्ता देते चली गई। दरअसल, इस दीवार का काम इसलिए करवाया जा रहा था ताकि विरोधियों से सुरक्षा हो सके। लेकिन दीवारें थीं की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। फिर कारीगरों ने राजा को बताया कि यहां पर किसी देवी का वास है।
इस किले के लिए चढ़ाई गई संत की बलि देवी कुछ और ही चाहती हैं। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया और सारी गाथा सुनाकर इसका हाल पूछा। संत ने बताया कि देवी इस काम को तभी आगे बढऩे देंगी जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी।
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठीक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है। यह किला चारों तरफ से अरावली की पहाडिय़ों की मजबूत ढाल द्वारा सुरक्षित है।
इसका निर्माण पंद्रहवी सदी में राणा कुम्भा ने करवाया था। पर्यटक किले के ऊपर से आस पास के रमणीय दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। शत्रुओं से रक्षा के लिए इस किले के चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि चीन की महान दीवार के बाद यह एक सबसे लम्बी दीवार है। यह किला 1100 मीटर की ऊंचाई पर समुद्र स्तर से परे क्रेस्ट शिखर पर बनाया गया है। इस किले के निर्माण को पूरा करने में 15 साल का समय लागा।
दस घोड़े एक साथ दौड़ते है इसकी दीवार पर। महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे, जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था। कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है। इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़ों को एक ही समय में उसपर दौड़ा सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करता था।
यहां है बादलों का महल
बादल महल को ‘बादलों के महल’ के नाम से भी जाना जाता है। यह कुम्भलगढ़ किले के शीर्ष पर स्थित है। इस महल में दो मंजिलें हैं एवं यह संपूर्ण भवन दो आतंरिक रूप से जुड़े हुए खंडों, मर्दाना महल और जनाना महल में विभाजित हैं।
इस महल के कमरों की दीवारों पर सुंदर दृश्यों को अंकित किया गया है जो उन्नीसवीं शताब्दी के काल को प्रदर्शित करते हैं।
उस समय भी होता था एसी का प्रयोग
आज भी एसी का प्रयोग कर ऑफिसों में पाइपों के द्वारा ठंडक पहूंचाई जाती है। उस समय भी महल के इस परिसर में रचनात्मक वातानुकूलन प्रणाली लगी हुई थी जो आज भी है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है, जिसे देखना एक दिलचस्प बात है। इसमें पाइपों की एक श्रृंखला है जो इन सुंदर कमरों को ठंडी हवा प्रदान करती है, और साथ ही कमरों को नीचे से भी ठंडा करती हैं।
पर्यटक जनाना महल में पत्थरों की जालियों से बाहर का नजारा देख सकते हैं। ये जालियां रानियों द्वारा दरबार की कार्यवाही को देखने के लिए प्रयोग में लाई जाती थी।
सुरक्षा ऐसी कि परिंदा भी न मार सके पर
सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए इस दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारतें बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया। वहीं ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वावलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है।
इसे बनाते समय रखा गया वास्तु शास्त्र का ध्यान:
वास्तु शास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारते, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।
सिर्फ एक बार छाया किले पर हार का साया
कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा, जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा। महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए।
एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। जिसे कोई और न मार सका उसके बेटे ने ही ले ली जान
महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था।
धोखा देने पर चुनवा दिया दीवार में
कुछ समय बाद जब राजा को उस महिलाओं के बारे में पता चला तो उन्होंने तीनों को किले के द्वार पर दीवार में जिंदा चुनवा दिया। ऐसा कर राजा ने लोगों को यह संदेश दिया कि राज्य के सुरक्षा के साथ जो भी खिलवाड़ करेगा उसका यही अंजाम होगा।
यहाँ पहुँचना है बेहद आसान
कुम्भलगढ़ किला उदयपुर शहर से 64 किलोमीटर की दूरी पर है। उदयपुर शहर से कुम्भलगढ़ किले तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। पर्यटक आसानी से रेलमार्ग, वायुमार्ग या सडक द्वारा इस स्थान तक पहुंच सकते हैं।