छत्तीसगढ़ का अपना एक गौरवपूर्ण इतिहास है। प्राचीन काल में इसे ‘दक्षिण कोशल’ के नाम से जाना जाता था। यहां छठी शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक सरयूपरिया, पांडुवंशी, सोमवंशी कलचुरि तथा नामवंशी शासकों का शासन रहा। चालुक्य शासक अनमदेव ने वर्ष 1320 ई. में बस्तर में अपने राजवंश की स्थापना की थी।
16वीं शताब्दी में यहां मुगलों ने अपना नियंत्रण स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। 1758 में छत्तीसगढ़ मराठा शासन के आधीन आ गया था। वर्ष 1818 में यह क्षेत्र अंग्रेजों के आधीन हो गया। वर्ष 1854 ई. में जब नागपुर प्रांत को ब्रिटिश राज्य में मिलाया गया तो छत्तीसगढ़ को तब एक उपायुक्त के अधीन रखकर रायपुर को इसका मुख्यालय बनाया गया था। छत्तीसगढ़ की कल्पना पं. सुंदरलाल ने पहली बार वर्ष 1918 में की थी।
31 जुलाई 2000 को पं. सुंदरलाल की कल्पना ने 82 वर्ष पश्चात साकार रूप लिया, जब केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने लोकसभा से छत्तीसगढ़ के गठन संबंधी विधेयक को पारित कराया।
9 अगस्त 2000 को इस विधेयक को राज्यसभा की स्वीकृति मिली। जबकि 25 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर अपनी सहमति प्रदान की। तब 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग होकर भारत के मानचित्र में एक अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ। इसे भारत के 26वें राज्य के रूप में मान्यता मिली।
छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी मैना है, जबकि राजकीय पशु भैंसा है। राजकीय वृक्ष सरई है। प्रदेश की राजधानी रायपुर है। इस राजधानी को नया रायपुर के नाम से पुराने शहर से कुछ हटाकर बसाया जा रहा है।
छोटे राज्य बनने से होने वाले विकास की झलक हमें यहां स्पष्ट दिखाई देती है। अच्छी चौड़ी सडक़ें और साफ सुथरा परिवेश बताता है कि नये राज्य के बनने से विकास ने कुछ अपना प्रकाश यहां भी डाला है। छत्तीसगढ़ में चारों ओर धान के खेत ही लहलाते दिखाई देते हैं। इसीलिए इस प्रांत को ‘धान का कटोरा’ भी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ की लोकसभा के लिए 11सीटें हैं, जबकि राज्यसभा के लिए 5 सीटें हैं। यहां का उच्च न्यायालय बिलासपुर में स्थापित किया गया है। क्षेत्रफल में यहां का दंतेवाड़ा जिला सबसे बड़ा है। जगदलपुर में एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी है। यहां पर 36 गढ़ अर्थात दुर्ग स्थित होने के कारण ही पं. सुंदरलाल ने इसका नाम छत्तीसगढ़ कल्पित किया था। माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी प्रसिद्घ कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ यहां के बिलासपुर शहर में जेल में रहते ही रची थी। इस प्रदेश का 46 प्रतिशत भाग आज भी वनाच्छादित है। भारत का सर्वाधिक तेंदुपत्ता (लगभग 70 प्रतिशत) भी इसी प्रदेश से प्राप्त होता है।
यहां तीरथगढ़, चित्रकूट, जलप्रपात, कैलाश गुफाएं, मैत्रीबाग, बाबरधार जल प्रपात, अमृत धारा जल प्रपात, अचनकुमार, अभयारण्य, लक्ष्मण मंदिर महामाया मंदिर आदि पर्यटन स्थल हैं। यहां महानदी और इंद्रावती नामक दो नदियां प्रमुखता से बहती हैं।
पिछले दिनों हमारा यात्री दल छत्तीसगढ़ गया तो यहां की प्राकृतिक छटा से अभिभूत हुए बिना न रह सका। हमारे यात्री दल में अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पंडित बाबा नंदकिशोर मिश्र, लेखक राकेश कुमार आर्य स्वयं, प्रो. राजेन्द्र सिंह, आचार्य सत्यदेव आर्य, श्रीनिवास एडवोकेट एवं पं. आलोक मिश्र सम्मिलित थे। यहां की जलवायु अर्धनम है। ग्रीष्मकाल में अधिक गर्मी पड़ती है, परंतु ठण्ड अधिक नही पड़ती। यहां स्थित अबूझमाड़ में सर्वाधिक वर्षा होती है।
यहां डोलो माइट, लौह अयस्क, मैगनीज, बॉक्साइट, चूना पत्थर, हीरा, यूरेनियम, एस्वेस्टस फ्लोराइड, तांबा, कोरंडम आदि खनिज सम्पदा के भण्डार हैं। कबर्धा नामक स्थान पर यहां स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने सांईं पूजा के विरोध में 24, 25 अगस्त को ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया था। अब कबर्धा का शुद्घ नाम कबीर धाम कर दिया गया है। कबीर के दोहे यहां के मुख्य चौराहों पर भी बड़े-बड़े बोर्डों पर लिखवाए गये हैं। जो कि एक अनुकरणीय पहल है।