कविता – 39
मानव उसको मानिए , करे परहित के काम।
स्वार्थ की नहीं सोचता रखे सभी का ध्यान ।।
सत्य असत्य के बीच में विवेक करत है न्याय।
जो जन स्वार्थ में फंसा सदा करे अन्याय ।।
मानुष गिरता है वही, जिसके गिरे विचार।
मानव का उत्थान हो यदि ऊंचे रहें विचार।।
आत्मा के प्रतिकूल तुम मत बरतो व्यवहार ।
एक पिता के पुत्र सब, वसुधा है परिवार ।।
धन का लालच मत करो डुबो देय मझधार।
इदन्नमम को धारिये सदा देख रहा करतार ।।
मनुष्य जन्म में धार लो दिव्य पवित्र विचार ।
संतान तुम्हारी दिव्य हो , ऋणी रहे संसार ।।
जो मुझ में बैठा हुआ , वही सब में जगदीश।
सब में उसी का वास है सबको नवाओ शीश।।
नीच ना त्यागे नीचता कड़वाहट नहीं नीम ।
पापी पाप में रत रहे ना इनका कोई हकीम।।
दुष्ट और दुष्टता , हैं दानवता के भाव ।
इनका चिंतन देत है मानवता को घाव।।
असत्य से मुझको दूर कर , जगत के पालनहार।
मृत्यु बंधन से छुड़ा , मेरा दूर करो अंधकार ।।
पुकारती मां भारती सुनो लगाकर कान ।
सर्वस्व समर्पण कीजिए बढ़े जगत में मान ।।
चेहरों की करते सदा महापुरुषों यहाँ खोज ।
खोज कर उनमें भरें देश धर्म का ओज।।
देश धर्म सबसे बड़ाव कहतेव वेद और शास्त्र ।
एक हाथ में शस्त्र हो रक्षित हो तब शास्त्र।।
सबका मंगल कीजिए सुनिये कृपानिधान ।
‘राकेश’ शरण में लीजिए विनय यही भगवान।।
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत