सवाल है भारतीय संस्कृति के बचाव का

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मानद आचार्य

“आज देश में लोकतांत्रिक राजनीति को प्रभावित करने वाले टुकड़े-टुकड़े गैंग और ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ व ‘कृषि कानूनों’ में सुधार के विरोधी आंदोलनजीवियों के सशक्त होने से अलगाववादियों और आतंकवादियों सहित भारत विरोधी शक्तियों का दुस्साहस चरम पर है l देशद्रोहियों और भारत विरोधियों के गठबंधन ने वोट बैंक की राजनीति को हाइजैक करके शासकीय नीतियों पर अनुचित दबाव बना रखा है l ऐसे तत्वों के सहारे जेहादी अपने झूठ को सड़कों पर उठाए फिरते है और शासन-प्रशासन सहित स्वार्थी तत्वों को बार-बार प्रभावित करते हैं,फिर भी बहुसंख्यक राष्ट्रवादी समाज इतना विवश है कि वह अपनी वास्तविक पीड़ाओं के सच को भी उजागर नहीं कर पाता l”
क्यों ?
हम प्रातः “नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमि…” के सारगर्भित व उत्साहवर्धक गायन से प्रेरित होकर भी अपने देश के सांस्कृतिक मूल्यों,सम्प्रभुता और अखंडता की रक्षा की आवश्यक अनिवार्यता को क्यों नहीं समझते? संघ प्रमुख सहित अनेक राष्ट्रवादी प्रमुख नेताओं द्वारा हिन्दुओं में वीरता और तेजस्विता के भाव को सर्वोपरि बनाने के स्थान पर बार-बार अहिंसा व उदारता का भाव भरना कुछ अधूरा लगता हैं। जबकि इन प्रतिकूल परिस्थितियों में देशद्रोहियों के प्रति आक्रामक आह्वान करके युवाओं में शूरवीरता का संचार करने का प्रयास करना चाहिये। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक स्व.डॉ. हेडगेवार जी और उनके महान साथी वीर सावरकर व डॉ.मुजे आदि की नीतियों के अनुरूप कार्य करके राष्ट्रवाद के श्रेष्ठ मूल्यों की रक्षार्थ सक्रिय रहना होगा। जबकि लाखों अनुशासित स्वयंसेवकों को नित्य प्रातः स्मरण कराने वाली प्रार्थना “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि……” उत्साह का संचार करके उन्हें हिन्दू राष्ट्र निर्माण व मातृभूमि की रक्षार्थ निरंतर आह्वान कर रही है। देश-विदेश में भारतीय संस्कृति की रक्षार्थ सतत् संघर्ष करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व हिन्दू स्वयंसेवक संघ के लाखों सदस्यों का मनोबल बढ़ाकर उनके पराक्रम को जगाए बिना भारतीय अस्मिता व हिन्दुओं के अस्तित्व की रक्षा सम्भव नहीं l
निसंदेह इस वास्तविकता को समझना होगा कि जब तथाकथित सज्जन या भले लोग केवल अपने-अपने जीवन सम्बन्धित कार्यो के प्रति समर्पित रहते हैं तो समाज और राष्ट्र में अपराधी तत्वों का वर्चस्व तो स्वत: ही बढ़ेगा l दुर्जनों और आतंकवादियों का व्यापक रूप से विरोध करना सामान्यतः लोग अपना कार्य नहीं समझते और शासन के भरोसे छोड़ देते हैं l ऐसी स्थिति में समाज व देश में अपराध व आतंकवाद में लिप्त देशद्रोहियों को कैसे और कौन पहचानेंगा? क्या गजवा-ए-हिंद की घृणित एवं घिनौनी सोच वाले मौहम्मदवादियों के भयानक अत्याचारों से हिन्दू समाज बार-बार अपमानित और प्रताड़ित होता रहे ? जबकि हम नित्य प्रति दिन होने वाली घुसपैठ, लव जिहाद, धर्मांतरण आदि जिहादी घटनाओं के गंभीर दुष्प्रभावों से भलीभाँति परिचित हैं l धर्मांध ईसाईयों व मुसलमानों द्वारा धर्मांतरण के लिये मासूम, गूंगे, बहरे व अनाथ बच्चों पर निरंतर प्रहार होता रहे और हम मौन रहें तो क्या यह अन्याय नहीं होगा? क्यों नही हम इन आत्मघाती मानवीय आपदाओं के प्रति आक्रामक होते ? करोड़ों राष्ट्रभक्तों के स्वाभिमान व सत्य सनातन वैदिक धर्म की रक्षार्थ आक्रामक व सक्षम नेतृत्व ही इन विपरीत परिस्थितियों में धर्मद्रोहियों व राष्ट्रद्रोहियों से संघर्ष करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता हैं।
देश-विदेश में सनातन संस्कृति की रक्षार्थ सतत् संघर्षरत रहने वाले अनुशासित एवं समर्पित स्वयंसेवकों को आज स्व. डॉ हेडगेवार जैसे कर्मठ, दूरदर्शी व सक्षम संगठनकर्ता की भावनाओं व उद्देश्यों को व्यापक हित में समझना होगा। निःसंदेह 1947 की विभाजनकालीन विभीषिका का इतिहास हमें बारम्बार सतर्क और सावधान करता है l जिसमें लगभग बीस लाख मासूम और निर्दोष मारे गए और लगभग दो करोड़ असहाय लोगों को अरबों-खरबों की सम्पत्ति को छोड़ कर भिखारियों जैसी स्थिति में अपनी ही पुण्य भूमि पर भटकने को विवश होना पड़ा था l भविष्य में ऐसी भयावह त्रासदी से बचने के लिए हम भारत के लोगों को चेताने के लिए आक्रमक और सक्षम नेतृत्व की सघन आवश्यकता है l क्योंकि आज भी इस्लामिक कट्टरता पुनः उसी प्रकार आक्रमक होकर भारत की अखंडता को पुनः चुनौती दे रही है l जबकि धर्म आधारित विभाजन के उपरांत भी अब देश में धर्म आधारित अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक मंत्रालय आदि सरकारी संस्थान कार्यरत है।
हिंदुओं से अधिक अधिकार मुसलमानों को मिल रहे हैं। भारतीय शिक्षाओं के मूल केंद्र गुरूकुल आदि समाप्त हो चुके है, जबकि मदरसे फल-फूल रहे है।अन्य देशों की भांति हमारे यहां मदरसों को प्रतिबंधित नही किया गया बल्कि कुछ औपचारिकताओं के पूर्ण होने पर उनको सरकारी सहायताओं से विकसित किया जा रहा हैं। मदरसों के छात्रों को भी नियमित शिक्षाओं के समान योग्य बना कर अनेक सरकारी विभागों में प्रवेश कराने की योजनाओं पर कार्य चल रहा है l अनेक अवसरों पर प्रशासन मुसलमानों के प्रति जहां उदार व मधुर है,वहीं हिंदुओं के प्रति कठोर व पीड़ादायक हैं। ऐसी भेदभावपूर्ण व्यवस्था से स्वाभाविक रूप से बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों में परस्पर अलगाववाद, वैमनस्य व विरोधाभास को बढ़ावा तो मिलेगा ही।निःसंदेह यह दुःखद है कि मुस्लिम तुष्टीकरण हो चाहे सशक्तिकरण इनसे अप्रत्यक्ष रूप से इस्लामिक आतंकवाद का पोषण ही होता है। देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की रक्षार्थ “समान नागरिक संहिता” के प्रावधान को लागू करके व अल्पसंख्यकों को विशेष लाभ देने वाली योजनाओं को समाप्त करके साम्प्रदायिक सद्भाव व राष्ट्रीय विश्वास बनाने का मार्ग निकाला जा सकता है। साथ ही असंतुलित हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या से बढ़ती विस्फोटक स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए “जनसंख्या नियंत्रण कानून” बनाने की भी मुख्य आवश्यकता हैं ?
हमको इतिहास से यह शिक्षा अवश्य लेनी चाहिये कि हमारे अधिकांश पूर्वजों ने कितने ही क्रूर अत्याचारों को सहा फिर भी अपनी आस्थाओं से कोई समझौता नही किया। जबकि असंख्य भारत की संतानों को दर्दनाक अत्याचारों से भयभीत होकर बलात् धर्मांतरण के कारण आक्रान्ताओं की संस्कृति को भी अपनाने के लिए विवश होना पड़ा था। इसलिए हमको यह याद रखना होगा कि सैकड़ों वर्षों से इस्लामिक शक्तियों की जिहादी मानसिकता के कारण भारत के इस्लामीकरण की गंभीर चुनौती अभी भी यथावत बनी हुई है। इसी संदर्भ में अत्यंत चिंता का विषय यह है कि देश में पर्याप्त सेनाओं व पुलिस के होते हुए भी जमायते-उलेमा-हिन्द ने जमायते यूथ क्लब का गठन करके दस वर्षों में साढ़े बारह करोड़ युवाओं को सैनिक प्रशिक्षण देने की 2018 से तैयारियाँ भी आरम्भ कर दी है l अतः ऐसे गंभीर संकट की आहट में यह परम् आवश्यक हो गया है कि हम भारत के लोग अपनी मूल आस्थाओं व धरोहरों को सुरक्षित रखने के लिये गंभीर चिंतन-मनन करें।
हमको स्मरण होना चाहिए कि श्री राम व श्री कृष्ण जिन्होंने धर्म की स्थापना व उसकी रक्षा के लिये अपने वैभवपूर्ण जीवन को वनों और युद्धक्षेत्रों में समर्पित कर दिया था, उनके आदर्शो पर चलने से हमको कौन रोक सकता है ? हम क्यों नही अपने गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेते? महान आचार्य चाणक्य को कैसे भुलाया जा सकता है, जिन्होंने अपने विचारों की अद्भुत शक्ति से एक साधनहीन बालक को शक्तिशाली सम्राट बना दिया था। साथ ही महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, वीर छत्रसाल, गुरु तेगबहादुर, गुरु गोविंद सिंह एवं बंदा वैरागी जैसे महान योद्धाओं से भरा हमारा इतिहास हमें निरंतर धर्म रक्षा के लिये प्रेरित करता है। परतंत्रता काल के महानायकों में वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, लाला लाजपतराय, बंकिमचंद्र चटर्जी, भगतसिंह, चंद्रशेखर आदि के अतुलनीय बलिदान हमें राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिये राष्ट्रीय दायित्व का बोध कराते है।
आज जब भारत विरोधियों के अनेक षडयंत्रों में राजनैतिक विवशता के चलते शासन घिरता जा रहा है, तो भी हम भारत के लोग क्यों नहीं चेतते ? क्या इसके लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनावों में मतदान की अनिवार्यता के अतिरिक्त कोई और मार्ग हो सकता है ? क्या हमें एक सघन अभियान चला कर ऐसे सभी देशद्रोही तत्वों का विरोध नहीं करना चाहिए जो भारत की सम्प्रभुता के विरुद्ध कार्य करते हों ? भारत विरोधियों का गुप्त समर्थन व सहयोग करने वाले षडयंत्रकारियों की पहचान करके उनका सामाजिक व राजनीतिक बहिष्कार करना देशभक्तों का सामूहिक दायित्व है l अतः ऐसे सभी तत्वों का यथासंभव विरोध करके हम जागरुक देशवासियों को अपनी-अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देना ही होगा l

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