संबंध समाप्ति का सूचक है कृतघ्नता और विश्वासघात

social-issue-10समूचा संसार दो तरह के लोगों से भरा पड़ा है- कृतज्ञ और कृतघ्न। जो लोग अपने पर किए हुए अहसान का बदला चुकाने को सदैव तैयार रहते हैं,उपकारी के प्रति आदर-सम्मान और दिली भावना रखते हैं तथा अवसर आने पर उन लोगों का धन्यवाद अदा करना नहीं भूलते जिनसे उन्हें किसी न किसी रूप में न्यूनाधिक सहयोग, आतिथ्य, स्नेह या आशीर्वाद का संबल प्राप्त हुआ हो। ऎसे कृतज्ञ लोग हमेशा अपने आपको उन लोगों का आभारी मानते भी हैं और सार्वजनिक तौर पर जताते भी हैं।

कृतज्ञता दीर्घकालीन संबंधों और माधुर्य संचार का सशक्त प्रतीक है और यह दोनों पक्षों के लिए कल्याणकारी दिशा और दशाओं का बोध कराता है। इसके विपरीत आजकल जिस बात का बोलबाला है, वह है – कृतघ्नता। कृतघ्नता का अर्थ यह कि अपने पर उपकार करने वाले, अपनी मदद करने वालों के प्रति न कोई सदभाव रखना न आभार अभिव्यक्ति का भाव।

आजकल कृतघ्न लोगों की सभी स्थानों पर बाढ़ आयी हुई है। कोई किन्हीं के लिए कितना ही कुछ कर ले, सामने वाले अहसान तक मानने को तैयार नहीं, आभार ज्ञापन तो दूर की बात है। खूब सारे मनुष्य तो ऎसे हैं जिन्हें लगता है कि कोई उनके लिए करता है तो क्या अहसान करता है, उसे करना ही है। कई सारे लूटखसोटी लोग छीनाझपटी में विश्वास रखते हैं या अपने काम के लोगों का किसी वस्तु के रूप में इतना अधिक शोषण करते रहते हैं कि कुछ कहा नहीं जा सकता। इन लोगों को यूज एण्ड थ्रो में इतनी दक्षता हासिल होती है  कि अपने स्वार्थ या काम बनाने के लिए किसी को भी भ्रमित कर उसके भोलेपन का फायदा उठाकर यूज कर लिया करते हैं और उसके बाद तबीयत से किसी भी दिशा में उठाल भी दिया करते हैं।

कई बार काम-धंधों और रुचि के विषयों में भागीदारों से लेकर प्रगाढ़ एवं अभिन्न दोस्तों के बीच एक मोड़ पर आकर दोस्ती हमेशा के लिए टूट जाती है और परस्पर उन्मुख एवं सामीप्य प्राप्त लोग अलग-अलग दशाओं में दूर से दूर होते चले जाते हैं।

कई बार हमारे करीब के लोग बवेजह हमसे एकतरफा रुष्ट होकर अपने रास्ते हो जाते हैं तथा कई मर्तबा वे लोग हमसे किनारा कर लिया करते हैं जिन्हें हमारे स्नेह, आशीर्वाद और निरन्तर संबलन की बदौलत कोई मनचाहा मुकाम हासिल हो जाया करता है।

इन सारी स्थितियों के बीच हम सभी लोगों को एक कटु अनुभव अक्सर यह होता ही है कि लोग अपने किए को मानते नहीं, आभार ज्ञापित करना तो दूर की बात है, मौका पूरा हो जाने के बाद छिटक कर ऎसे दूर हो जाते हैं जैसे कि जानते-पहचानते तक नहीं हों।

यही नहीं तो हममें से बहुतों का अनुभव यह भी है कि खूब सारे लोग ऎसे हैं जो काम निकल जाने के बाद अपने धुर विरोधी हो जाते हैं जबकि उनसे हमारा किसी भी प्रकार का कोई स्वार्थ या लेन-देन जैसा कोई संबंध न कभी रहा होता है, न रहने की गुंजाइश ही। इस अवस्था में सज्जनों और निष्काम सेवाव्रतियों को आत्मिक दुःख और पीड़ा का होना स्वाभाविक ही है।

हममें से खूब सारे लोगों के मन में इसी बात की टीस हमेशा बनी रहती है और गाहे-बगाहे मन-मस्तिष्क के कोनों में कहीं अंकुरित होकर हमें कुछ समय के लिए तनावग्रस्त भी कर दिया करती ही है। खूब सारे इंसान उन कृतघ्न लोगों द्वारा की जाने वाली हरकतों के कारण तंग हैं जिन्हें कृतघ्नता की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है।

जब लोग हमारे साथ दगा करने लगें, रुपए-पैसे और जमीन-जायदाद हड़प लें, लौटानें का नाम न लें, बरसों तक निःस्वार्थ सेवाएं और सुविधाएं देने के बावजूद हमारी बेवजह निंदा और बुराई करें, हमारे धुर विरोधी हो जाएं और हमारे विरूद्ध शिकायतें करते रहें, हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिशों में लगे रहें,विघ्नसंतोषियों, पराये टुकड़ों पर पलने वाले और परायी वस्तुओं एवं परायी देह का उपयोग करने वालों से हाथ मिला लें, वृहन्नलाओं और वैश्याओं की तरह व्यवहार करने लगें, नापाक हरकतों भरे तीरों की बौछार करते रहें, तब यह समझ लेना चाहिए कि सामने वाला कृतघ्न और विश्वासघाती है तथा उसके साथ हमारे पूर्वजन्म के समस्त प्रकार के लेन-देन की पूर्णता हो चुकी है और संबंधों की समाप्ति का अवसर आ ही चुका है।

ऎसे लोगों से किसी भी प्रकार के संबंधों और व्यवहार की आशा त्याग दें तथा इन्हें विधाता के भरोसे छोड़ कर अपनी ओर से हमेशा-हमेशा के लिए तिलांजलि दे दें। ऎसा करने से ही हमारा भावी जीवन सुकूनदायी हो सकता है और जब हम इस परित्याग की भावना को दृढ़ संकल्प के साथ स्वीकार कर लिया करते हैं तब हमें अपने भाग्य से दैवी संपदा की प्राप्ति होती है अथवा इन पुराने और कृतघ्न लोगों की अपेक्षा ऎसे अच्छे लोग दैवसंयोग से मिल ही जाते हैं जो सारी भरपायी कर देते हैं।

लेकिन इसके लिए पहली शर्त यही है कि विश्वासघातियों और कृतघ्न लोगों को अपने दिल और दिमाग से सदा-सर्वदा के लिए निकाल दें। हम जब ऎसे लोगों को हमारे चित्त से अंतिम बार अलविदा कह देते हैं तब इन नरकगामियों का कोई ठौर नहीं रहता और वे जिंदगी भर भटकते ही रहते हैं। इससे हमें नए प्रारब्ध का दोष भी नहीं लगता, दूसरी और आसुरी भावों वाले इन दुष्टों को भगवान अपने आप ठिकाने लगा दिया करता है।

कोई यदि हमारे साथ विश्वासघात और कृतघ्नता अपना लेता है तो इसका सीधा अर्थ यही है कि उसके व हमारे लेन-देन का हिसाब पूरी तरह चुकता हो गया है तथा अब अलगाव का समय आ ही गया है। बहाना कुछ भी हो सकता है।

विश्वासघाती और कृतघ्न लोगों का सबसे बड़ा फायदा यह भी होता है कि हमसे दूर छिटक कर जहाँ ये जाते हैं वहाँ इन्हीं की तरह के कृतघ्नों और विश्वासघातियों के मिलन से समूह बन जाया करते हैं और इस प्रकार भिन्न-भिन्न लोगों के आस-पास रहने वाली गंदगी एक ही जगह जमा होती चली जाती है,शेष क्षेत्र साफ-सुथरे हो जाते हैं।

आजकल स्थान-स्थान पर ऎसे अहसानफरामोश लोगों के डंपिंग एरिया बने हुए हैं जिनकी वजह से और स्थान साफ-सुथरे रहने लगे हैं। हमारे भी आस-पास ऎसे कूड़ाघर खूब हैं जिनमें कीड़ों की तरह विश्वासघाती और कृतघ्न लोग भिन्न-भिन्न रूपाकारों में बिलबिला रहे हैं।

हमें ईश्वर का आभार मानना चाहिए कि ऎसे नुगरे और मलीन लोगों को वह समय रहने हमसे दूर छिटका दिया करता है वरना जिंदगी भर ऎसे गंदे और सडांध भरे लोग हमारे आस-पास बने रहने लगें तो हमारा यह जीवन भी नारकीय हो जाए, आने वाला समय तो इन धूर्त पापियों की वजह से नरकवास का होगा ही।

इसलिए जहाँ कोई विश्वासघात या कृतघ्नता का परिचय देना शुरू कर दे, समझ लेना चाहिए कि वह समय आ गया है जब भगवान हमारे भले के लिए इन सड़े हुए नकारात्मकता की खुजली वाले श्वानों को दूर करने की निर्णायक तैयारी कर चुका है। भगवान बचाये ऎसे नालायकों से।

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