दयानन्द-जयंति————-
आज़ादी के प्रथम स्वप्न दृष्टा, समाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, आर्यसमाज के संस्थापक,नव जागरण के पुरोधा स्वामी दयानन्द सरस्वती की आज 198वीं जयन्ति हैं।कृतज्ञ राष्ट्र का नमन।
स्वामी दयानंद ने एक सपना देखा था देश के खोए वैभव को पुनः स्थापित करने का और अपना पूरा जीवन इस मिशन में लगा दिया।ज़िंदगी में 17 बार ज़हर खाया पर असत्य से समझौता नहीं किया।स्वामीजी का कहना था सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने को सदैव तैय्यार रहे।सत्य को स्वीकारे और सत्याचरण करे और यही गुरुवर दयानन्द ने किया।इसी का परिणाम था कि उनको न किसी से द्वेष था और न ही ईर्षा।
स्वामीजी कहा था कि हम सब की उन्नति में ही अपनी उन्नति समझे जब स्वामीजी यह उपदेश देते हुए गुरुवर कहते हैं कि आप अपनी ख़ुद की उन्नति में संतुष्ट ना हो सबकी उन्नति का कारण बने और प्रयास करे कि सबकी उन्नति हो।यह निश्चित हैं कि विश्व शान्ति, भाईचारा व एकता तभी सम्भव हैं जब सबकी उन्नति के समान अवसर हो और समाज का प्रत्येक वर्ग उन्नति करे।समाज में उन्नति से तात्पर्य केवल रोटी, कपड़ा, मकान से ही नहीं हैं अपितु ऐसी व्यवस्था से हैं कि सब सम्मानपूर्वक जीये और समाज में शान्ति, प्रेम व सद्भाव क़ायम हो। हम जाति भाषा या धर्म के नाम पर बिखरे ना हो।जब हमारा देश जगत गुरु था सोने की चिड़िया था तब यही मूल मन्त्र था कि हमने सबकी उन्नति में अपनी उन्नति मानी और तदनुकूल आचरण किया।
सबकी उन्नति का स्वामीजी ने रास्ता भी बताया और कहा कि संसार का उपकार करना हमारा उद्देश्य हैं अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति करना। स्वामीजी का चिंतन ग़ज़ब का था उनका मानना था कि मनुष्य केवल धनवान हो, शिक्षित हो तो काम नहीं चलना वह स्वस्थ हो,उसमें आत्मबल हो और चिन्तन आध्यात्मिक हो,उसके चिन्तन में सकारात्मकता हो, आचरण में सत्य और परोपकार हो और किसी का अहित करना तो दूर सोचे ही नहीं। स्वामीजी के स्वप्नो का समाज था—-सं गच्छध्वम, सं वदध्वम का समाज और इस महामानव ने अपने जीवन में पूरा प्रयास किया कि हम सब मिलकर रहे और समाज एक हो मज़बूत हो यह तो दुर्भाग्य था मानव जाति का कि इस महामानव को जगन्नाथ ने षड्यन्त्र कर धोखे से दूध में काँच व ज़हर मिला कर दे दिया और यह स्वामीजी के लिए प्राण लेवा साबित हुआ।मानवता का बड़ा नुक्सान किया जगन्नाथ ने।यदि उस दिन जगन्नाथ विष देने से मना कर देते तो आज भारत परम वैभवशाली व जगदगुरु होता।
स्वामीजी हमें बताते हैं कि संसार का उपकार, सबकी उन्नति बातों से नहीं होगी—-हमें अपना व्यवहार प्रीतिपूर्वक व धर्मानुसार यथायोग्य करना होगा—
— आत्मान प्रतिकूलानि परेषाम न समाचरेत अर्थात् हम वही व्यवहार औरों से करे जैसा हम अपने प्रति चाहते हैं।जब हमारे व्यवहार में प्रीति और सत्य होगा फिर क्यों समाज में झगड़ा व्यापेगा जब झगड़ा नही होगा तो शान्ति रहेगी भाईचारा रहेगा और विकास को निरन्तरता मिलेगी क्योंकि किसी समाज, गाँव या देश के विकास के लिए शान्ति परम आवश्यक हैं। यहाँ एक कौवे की स्थिति से बात स्पष्ट हो जायेगी—-एक कौवा था जो जहाँ जाता लोग उसे भगा देते दुःखी हो उसने अपने गुरु से इस समस्या का हल पूछा कि गुरुजी में जहाँ भी जाता हूँ लोग मुझे पत्थर मारते हैं, मैंने कई जगह बदल ली पर कोई फ़र्क़ नहीं——गुरु बोले बेटा काँव काँव छोड़ दे सब ठीक हो जायेगा। यही हाल हमारा हैं और हल हैं—-प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य व्यवहार।
स्वामीजी का मानना हैं कि इन सब के लिये विद्या आवश्यक हैं अतः हमें अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करना चाहिए।यहाँ प्रश्न उठता हैं का अक्षर ज्ञान विद्या हैं अथवा केवल डिग्री लेना मात्र विद्या हैं अगर ऐसा हैं तो आज हाथ में डिग्री लिए नौजवान सड़क नाप रहे हैं, ट्रेन जला रहे हैं और तोड़फोड़ हिंसा में लिप्त हैं तो फिर विचार करना चाहिए कि विद्या क्या हैं——अक्षर ज्ञान डिग्री आवश्यक हैं पर यह भी देखे कहाँ और क्या———————
चूक हो रही हैं कि मैकाले की यह शिक्षा बेरोज़गार युवक पैदा करने की factory मात्र बन कर रह गई हैं।जो युवक हमारे
देश की सम्पत्ति हैं भविष्य हैं वे ही आज एक समस्या क्यों बन रहे हैं? स्वामी दयानन्द जी का विद्या से क्या तात्पर्य था वो कैसी शिक्षा चाहते थे जो देश और विश्व
के लिए आज आवश्यक हो रहा हैं———क्योंकि आज विश्व असमानता, ग़रीबी, अशिक्षा,भूख,हिंसा आतंक से त्रस्त है,ऐसे में विद्या वह हैं जो डिग्री के साथ हमें मानव बनाए,हमें सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने की योग्यता दे,सबकी उन्नति में अपनी उन्नति मानने की बुद्धि दे,सबसे प्रीतिपूर्वक व्यवहार करने का विवेक दे और हमें ऐसा सोच दे कि हम सबकी उन्नति में अपनी उन्नति माने और उसके कारक बने जब तक एक व्यक्ति भी अपनी उन्नति से वंचित हो तो हमें बैचेनी हो ऐसी स्थिति में ही हम विश्व शान्ति की ओर बढ़ सकेंगे
और यही हैं विद्या —-जिसकी हमें आज आवश्यकता हैं।स्वामीजी यही नही रुकते वे हमें यह भी बताते हैं कि समाज में आपका बर्ताव कैसा हो—-तो स्वामीजी कहते हैं—-कि हम समाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र हैं वहाँ हमें परहित भी देखना हैं और तदनुकूल एडजस्ट करना हैं।
यदि हम स्वामीजी के बताये रास्ते पर चले तो हम विश्वशान्ति के झंडाबरदार बन सकते हैं।
तो आइये—-आज हम स्वामी दयानन्द जी की जयंति पर शपथ ले कि समाज में———— प्रेम,विद्या,सद्भाव सदाचार,भाईचारे को विस्तार दे तथा देश को भूख, ग़रीबी,बेकारी से मुक्त करे l
*डॉक्टर श्रीगोपाल बाहेती*
पूर्व विधायक
प्रधान : महर्षि दयानंद निर्वाण स्मारक न्यास, अजमेर