कविता — 36
सत्य सनातन सर्वहितकारी
आएगा जब चैत्र माह।
नूतनता सर्वत्र दिखेगी
हर्ष का होगा प्रवाह।।
तब आप करेंगे अभिनंदन
और मैं बोलूंगा नमन नमन।
पसरेगी नूतनता कण-कण में
मुस्काएंगे नयन नयन।।
प्रतीक्षा करो उसकी बंधु !
अभी शरद यहां पर डोल रहा।
अभी नूतनता का बोध नहीं
अभी यहाँ पुरातन बोल रहा।।
अभी इच्छा नहीं गले मिलन की ,
अभी ठिठुरन ने है जकड़ा हुआ।
अभी फाग नहीं कहीं मस्ती का
अभी तन रोगों ने पकड़ा हुआ।।
अभी मंगलमय नववर्ष कहना
नहीं उचित मुझको लगता।
फिर भी रीत निभाते हुए
नववर्ष मंगलमय तुमको कहता।।
मत भूलो अपनी रीति को
वैज्ञानिक सोच बताती हैं।
पूर्वज हमारे वैज्ञानिक थे,
‘राकेश’ हमें यह समझाती है।।
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत