परिवार की संगठन शक्ति में सदा सहायक बने रहो : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

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*”परिवार के मुखिया की मृत्यु होने पर, उस परिवार के लोग, अपने परिवार के ही किसी अधिकतम योग्य व्यक्ति को अपना नेता मार्गदर्शक निर्देशक घर का संचालक आदि के रूप में यदि स्वीकार करते हैं। और फिर वे उसके निर्देश आदेश में यदि चलते हैं, तब तो परिवार में संगठन सुरक्षा आनंद उत्साह आदि खुशियां बनी रहती हैं।”* परंतु जिस परिवार में कोई एक बुद्धिमान योग्य व्यक्ति संचालक न हो, घर की समस्याओं का निर्णय करने वाला कोई निर्देशक न हो, परिवार के लोग इतने दुरभिमानी हों, कि वे किसी को भी अपना निर्देशक संचालक नायक मुखिया मानने को तैयार न हों, सब अपनी अपनी मनमानी करते हों, तो आप सोचिए, वह परिवार कैसे सुरक्षित रह पाएगा? *”उस परिवार में प्रेम संगठन सेवा सद्भावना आनंद उत्साह आदि का वातावरण कैसे बन पाएगा? बिल्कुल नहीं बन पाएगा। समाज के बुद्धिमान लोग भी उस परिवार के लोगों की विगठन की स्थिति देखकर उनकी खिल्ली उड़ाएंगे, और उन्हें मूर्ख मानेंगे।”*
इसी प्रकार से, अनुशासन में रहने वाले, समाज के छोटे छोटे अन्य परिवार भी, अपने से बड़े परिवार वालों की जब ऐसी दुरवस्था देखेंगे, तो निश्चित रूप से वे भी उनकी खिल्ली उड़ाएंगे। *”और वह तथाकथित बड़ा परिवार, अपनी मूर्खता अनुशासनहीनता विघटन एवं दुरभिमान आदि दोषों के कारण शीघ्र ही नष्ट भ्रष्ट हो जाएगा।” “परिवार का यही नियम सभी संस्थाओं समाजों संगठनों और देशों पर भी लागू होता है।”*
*”क्या कोई ऐसी सेना अपने युद्ध कार्य में सफल हो सकती है, जिसमें कोई एक बुद्धिमान नायक ही न हो?” “अथवा सेना में अनेक दुरभिमानी लोग स्वयं को नायक मानकर अपनी छोटी छोटी टुकड़ियां बना लें, और अपनी मनमानी करते हुए, एक अनुशासन में न रहते हुए युद्ध लड़ें। ऐसी सेना कभी भी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकती।”* ऐसा व्यवहार करना, बहुत बड़ी गलती है।
*”इसलिए ऐसी गलतियों से बचना चाहिए। अपने स्वार्थ दुरभिमान मूर्खता आदि दोषों को दूर करते हुए, परिवार में समाज में संस्था में देश में अनुशासन पूर्वक संगठन में रहना चाहिए। तभी आपका जीवन आनंदमय सुरक्षित तथा सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं।”*

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