आपदाओ में भेदभाव एक गम्भीर चुनोती
आज सारा देश कश्मीर में बाढ से चिंतित है व मानवता की दुहाई देकर दिल खोलकर सहायता कर रहा है । प्राक्रतिक आपदा है इसलिए प्राथमिकता पर सब हो रहा हैं और होना भी चाहिये।
परन्तु मै कहना चाहता हु कि 25 साल से जो मूल कश्मीरी समाज था उसको जब वहा से जेहाद के नाम पर कट्टरपथी मुल्लाओ ने सामूहिक नरसंहार करके मारा व खदेड़ा तथा उनको नारकीय जीवन जीने के लिए भगवान् के भरोसे छोड दिया ,तब उस मानव निर्मित अमानवीय अत्याचारी आपदाओ पर यह मानवता कहां चली गयी थी ? कहां चली गयी थी सब सरकारे ? कहां थी मानवीय संवेदनाये ?
जबकी हम स्वतंत्र थे व लाखों की सेना थी फिर भी शेष देश के हिन्दुओ को कोई क्रोध क्यों नहीं आया ? तब क्यों नहीं जागी मानवता ? क्यों क्योंकि उनको यही समझाया जाता रहा कि ये आतंकवाद है हम क्या कर सकते है ? तत्कालीन केंद्रीय सरकार के गृह मंत्री आडवाणी जी ने भी बयान दिया कि “सरकार कशमीर में अब भी बचे हुए हिन्दुओ की सुरक्षा की गारंटी कैसे कर सकती है?
आज बाढ क़ी भयंकर त्रासदी ने कश्मीर की जनता को झकजोर दिया हैं और पिछले 25 -30 वर्षो से विस्थपित कश्मीरियो पर हुए अत्याचारों को भुला कर सारा देश उनकी सहायता के लिए जी जान से जुटा हुआ है।
परन्तु क्या भारतीय सेना व अन्य सुरक्षाबलो पर झूठे आरोप लगाकर व उनपर पत्थर बरसाकर उनको लगातार अपमानित करने वाले व भारत को काफ़िर मानने वालो में क्या अब कुछ मानवता व भारतीय संस्कृति के प्रति कुछ प्रेम जगेगा?
क्या अब हमारी उदारता व सहिष्णुता से कटटरपंथी व अलगाववादी कश्मीरियो में कोई परिवर्तन आएगा और देश की मुख्य धारा में जुड कर लगातार आंखे दिखाना बंद करके आतंकवादियों को पकडवाने में सहायक होंगे?
इतना सब होने पर अब हम सबको कश्मीर से अनुच्छेद 370 को आन्दोलन चलाकर व संवैधानिक आधार पर हटवाना होगा ।विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओ को वहा पर वापस बसाना भी उतना ही आपातकालीन व आवश्यक हैं जितना हम सब आज तत्परता से कर रहे हैं।
काश यह तत्परता व संवेदनशीलता आतंकवादियो के अत्याचारो पर 25 वर्ष पूर्व भी दिखाई होती तो शायद लाखो लोग उजडने से बच सकते थे।