शहीदों की कहानी स्मारक की जुबानी
मैं धमदाहा का शहीद स्मारक ,आजादी के दीवानों की कहानी आज भी मुझमें आसानी से देख और सुन सकते है। चलिए मेरे साथ सन् 42 , जब पुरे देश में अहसयोग आंदोलन पूरे चरम पर था, लोग अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा रहे थे उस समय आंदोलन का प्रभाव पूर्णियां जिले के धमदाहा और आसपास के क्षेत्रो में भी था। धमदाहा में भी 25 अगस्त 1942 चारों तरफ अंग्रेजों भारत छोड़ो नारे की गूंज थी । लोग तिरंगा फहराने और थाने को जलाने के लिए आगे बढ़ रहे थे तभी अचानक ब्रितानी पुलिस ने क्रांतिकारियों को रोकने के लिए फायरिंग का सहारा लिया , पुलिस फायरिंग में 14 लोग शहीद हुए और न जाने कितने लोग घायल। उनकी शहादत को याद करते हुए आज भी मेरे सामने वह सारे दृष्य सामने आ जाता है। देश के लिए उन शहीदों के बलिदान को देख कर आज भी मेरा सीना गर्व से तना दिखता है, लेकिन रहनुमाओं की बेरुखी के कारण आज भी कई शहीदों के परिजन बदहाली और गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर है। अगर समय रहते उन शहीदों के परिजनों की सुध न ली गई तो आने वाले समय में लोग उनको याद करने वाला कोई नहीं होगा।
किस काम का ताम्र पत्र
सन् 42 में मारे गए शहीदों के याद करते हुए और उनको सम्मानित करने के उद्देष्य से तत्कालिन प्रधानमंत्री श्री मति इंदिरा गांधी के द्वारा शहीदों के परिजनों को घटना के 30 साल और आजादी के 25 वें वर्शगांठ पर ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया था। यही तामपत्र शहीदों के परिजनों की धरोहर है। ताम्रपत्र मिलने के बाद शहीदों परिवारवालों को लगा था कि जिस तरह सरकार ने ताम्रपत्र देकर शहीदों की सुध ली है वैसे ही आगे चल कर सरकार हमलोगों की सुध लेगा । लेकिन आज तक शहीदों के परिजनों को न तो किसी सरकारी योजना का लाभ मिला और न हीं कोई विषेश फायदा।उनके लिए तामपत्र दिखाने और अपने परिजन जिन्होंने शहादत दी थी उनको याद करने का जरिया भर है। सीताराम मारकंडेय ताम्रपत्र की बात पर कहते है “ की काज के छै ई , आय तक इ तामपत्र के खाली ढोयये रहल छियै। जहिया भैटल रहै त लागल रहै कि हमर पिता जी के शहादत बेकार नैय गेलै। हमरा त नैय हमर बाल -बच्चा लै किछो फायदा भेटतै,लेकिन कोनो फायदा नै भेटलैय , खाली ताम्रपत्र से कोनौ पेट भरैय छै कि । इ ताम्रपत्र हमरा लै कि काज के छैय। सरकार हमरा सब के बच्चा लै कोने उपाय करतियै तब न ।
मजदूरी कर के जी रहे है शहीदों के परिजन
धमदाहा गोली कांड में शहीद ढोकवा निवासी बालो मारकंडेय के परिवार वालों की स्थिति काफी दयनीय है। बालो मारकंडेय के पुत्र सीताराम मंडल बूढ़े हो चले है। घर में दो जवान बेटा भी है। परिजनों के आजिविका का साधन मजदूरी है । काम मिलता है तो घर का चुल्हा जलता है और अगर मजदूरी नहीं मिली तो काफी परेषानी का सामना करना पड.ता है। सरकार के द्वारा पेंशन मिलता है लेकिन वह इतना नहीं कि पुरे घर का खर्च चल सके। वहीं हरिणकोल निवासी लक्खी मंडल के परिजन का भी कमोबश यही हाल है।
नहीं मिला कोई लाभ
धमदाहा के ढोकवा पंचायत निवासी बालो मारकण्डेय के बेटे सीताराम अपने पिता को याद करते हुए कहते हैं कि उस समय मैं काफी छोटा था । पता ही नहीं चला कि क्या हो रहा है। बाबु देश लय मैर गलै,अखैन सरकार खाली कागज भेजी कै बजाय लै छै। अखैन तक आर दोसर कोनौ फयदा नै मिलल छै। हमर नाम नै एपीएल लिस्ट मै छै आर नै बीपीएल लिस्ट मै। मुखिया से लेकै सब लंग गेलीयै कियो सुनै बला नै छै। दुनू बेटा मजदूरी करै छै। काज भेटैय छै त ठीक नय ता कोने जिंदगी जी लै छियै। वहीं धमदाहा पूर्व पंचायत के हरिणकोल निवासी शहीद लक्खी भगत के नाती विनोद कहते है। सकारी योजना का कोई लाभ हम लोगों को नहीं मिला है। सरकार के तरफ से 15 अगस्त और 26 जनवरी को भी बुलावा नहीं आता है, फिर भी हमारे पिता जी षामिल हो जाते है। पिछली साल पंचायत की तरफ से इंदिरा आवास मिला था ,वह भी अलग से नहीं गांव में सभी को मिल रहा था हमें भी मिल गया। विनोद की पत्नि मैट्रिक पास है। विनोद ने काफी मशक्कत की पत्नि को कहीं काम मिल जाए। उसने आंगनबाड़ी सेविका के लिए आवेदन भी दिया था। योग्य होने के बाद भी पत्नि को नौकरी नहीं मिल सकी। विनोद बताते हैं कि पहले उम्मीद थी कि शहीद के परिजन होने के नाते कुछ मदद मिलेगा पर उसका भी कोई फायदा नही मिला । ऐसे में हमलोग क्या उम्मीद करें। हमें सिर्फ अपने नाना पर गर्व है , जो देश के लिए शहीद हुए।
सुध लेने वाला कोई नहीं
एक तरफ सरकार शहीदों को याद करने के बहाने लाखों रूपए खर्च देती है। वहीं शहीदों के परिजनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। आज कुछ शहीदों के परिजन को 26 जनवरी, 15 अगस्त और 25 अगस्त को शहीद दिवस के अवसर पर याद निमंत्रण भेज कर रस्म अदायगी कर लेती है, वहीं कुछ ऐसे भी शहीद है जिनको प्रषासन याद भी करना उचित नहीं समझती है। ऐसा ही हरिणकोल निवासी शहीद लक्खी भगत का परिवार है। लक्खी भगत के नाती विनोद भगत कहते है। यह हमलोगों के लिए किसी मजाक से कम नहीं है। वैसे आजतक सरकार के तरफ से सिर्फ एक ताम्रपत्र के अलावा कुछ नहीं मिला है कम से कम प्रशासन को चाहिए की इन अवसरों पर तो हमें गर्व करने का मौका तो दे।
कब आएगी शहीदों की याद
देश के आजाद होने के बाद सन 1947 में स्थानीय लोगों के सहयोग से धमदाहा शहीद स्मारक का निर्माण हुआ था, तब मेरा स्वरुप काफी छोटा था। पिछले साल मुझे भव्य रुप दिया गया और मेरे इस नए रुप का उद्घाटन राज्य के मुखिया नीतिश कुमार के द्वारा किया गया था। जब – जब देखने वाले मेरी तारीफ करते हैं तब- तब मुझे तकलीफ होती है। मेरा दिल यही कहता है कि काश रहनुमाओं ने मुझसे पहले उन शहीदों के परिवारवालों की सुध ली होती । लेकिन रहनुमाओं को मेरी याद तो आ गई पर न जाने शहीदों की याद कब आएगी। सरकार सिर्फ 15 अगस्त , 26 जनवरी और शहीद दिवस के दिन भीड. इकट्ठा करके अपने कर्तव्यों से पीछा छुड़ा लेती है। मेरी सूरत में चार चांद तब लगेगा जब शहीदों के घर खुषियों की दीप जलेगी।
धमदाहा में थाना गोली कांड के शहीदो के नाम
नाम पिता का नाम ग्राम
१. श्री निवास पाण्डे – स्व. रामानंद पाण्डे बघवा
२. श्री जयमंगल सिंह – स्व. दरबी सिंह – चंदवा ,
३. श्री योगेन्द्र नारायण सिंह– स्व . गेना सिंह – वंशी पुरान्दाहा
४. श्री परमेश्वर दास – स्व. चिचाय दास – रूपसपुर
५. श्री शेख इशहाक – स्व . जीबू नदाफ – धमदाहा
६. श्री लखी भगत – स्व . मंगल भगत – हरिनकोल
7. श्री मोती मंडल – स्व. पंची मंडल – चन्दरही
8. श्री बालो मारकंडेय- स्व. पूरण मारकंडेय- ढोकवा
9. श्री रामेश्वेर पासवान – स्व.लालू पासवान – ढोकवा
10. श्री बाबू लाल मंडल – स्व. गर्भू मंडल – बजरहा,
११. श्री हेम नारायण यादव – स्व. कुंजो गोप – बरेना
12. श्री भागवत महतो – स्व. लालू धानुक – चम्पावती
१३. श्री बालेश्वर पासवान – स्व. मोहन पासवान – डिपोटी पुरान्दाहा
१४ श्री.कुसुम लाल आर्य- स्व. बाबुलाल आर्य – बरकोना