ओ३म्
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संसार की सबसे पुरानी पुस्तक कौन सी हैं जिसमें ज्ञान-विज्ञान सहित धर्म एवं संस्कृति आदि सभी सत्य विद्याओं का ज्ञान हो? इसका उत्तर है कि चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद संसार के सबसे पुराने ग्रन्थ हैं। चारों वेद सब सत्य विद्याओं के ग्रन्थ हैं, यह ऋषियों की मान्यता है। ग्रन्थ व पुस्तक का अर्थ होता है कि कोई ज्ञान, कथा, कविता आदि किसी भाषा में लिपिबद्ध रूप में हो। वेद भी इसी रूप में हमें प्राप्त हैं। वेद के सबसे प्राचीन होने का प्रमाण क्या है? इसका उत्तर है कि संसार में कोई भी मनुष्य, ज्ञानी व वैज्ञानिक यह दावा नहीं करता कि संसार में वेद से पूर्व भी कोई ग्रन्थ विद्यमान था। इस कारण वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ व ज्ञान सिद्ध होता है। यदि देश व विश्व के विद्वानों को वेद से पूर्व के किसी ग्रन्थ के विषय में कुछ ज्ञान होता तो वह अवश्य ही आर्यों की इस मान्यता का खण्डन करते। वेद संसार में सबसे प्राचीन कैसे हैं? इसका उत्तर है कि वेदों का उल्लेख सभी प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थों में बड़े आदर के साथ मिलता है। वेदों के आविर्भाव के बाद सबसे पुराने ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। ऐतेरेय, गोपथ, शतपथ और ताण्ड्य चार ब्राह्मण ग्रन्थ हैं जो प्राचीनता में वेदों के बाद के हैं व अन्य ग्रन्थों से पूर्व के हैं। यह ब्राह्मण ग्रन्थ ईश्वरीय ज्ञान चार वेदों के व्याख्या ग्रन्थ हैं। वेदों के आविर्भाव के बाद जब कालान्तर में वेदों की व्याख्याओं की आवश्यकता पड़ी तो ऋषियों ने इनकी रचना की। ब्राह्मण ग्रन्थों के रचना काल में भी चार वेद विद्यमान थे और आज भी हैं। एक तथ्य यह भी है कि ब्राह्मण ग्रन्थ, मनुस्मृति, बाल्मीकि रामायण, महाभारत, दर्शन, उपनिषद, आयुर्वेद के ग्रन्थ तथा ज्योतिष के सूर्यसिद्धान्त आदि प्राचीन ग्रन्थ हैं। इन सभी ग्रन्थों में वेद का उल्लेख मिलता है परन्तु वेद में इससे पूर्व के किसी ग्रन्थ का उल्लेख नहीं मिलता। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि वेद संसार भर के इतर सभी ग्रन्थों में सबसे प्राचीन हैं।
वेदों के विषय में एक यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि वेद किसी मानवीय लेखक की रचना नहीं है। प्राचीन काल व बाद के काल में किसी विद्वान व ऋषि आदि ने यह नहीं कहा कि वेद किसी मनुष्य वा ऋषि आदि की रचना है। प्राचीन परम्परा के अनुसार वेदों को ईश्वरीय ज्ञान माना जाता रहा है। ऋषि दयानन्द जी ने सत्यार्थप्रकाश में भी वेदों के आविर्भाव की चर्चा की है। उन्होंने वहां अनेक तथ्यों का उद्घाटन किया है। ऋषि दयानन्द जी की मान्यता के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने जब मनुष्यों को उत्पन्न किया तो उनको अपने दैनन्दिन व्यवहार के लिए व कर्तव्यों का ज्ञान कराने के लिए चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को एक समय में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया था। यदि ईश्वर आरम्भ में अर्थात् मनुष्योत्पत्ति के साथ वेदों का ज्ञान न देता तो आदिकाल के मनुष्य ज्ञान व भाषा के अभाव में अपने जीवन का कोई भी व्यवहार नहीं कर सकते थे। इसलिए ईश्वर ने उन्हें ज्ञान व भाषा दोनों एक साथ दी थी। ज्ञान भाषा में ही विद्यमान होता है। बिना भाषा के ज्ञान का अस्तित्व नहीं होता। आदिकाल की भाषा वेदों की भाषा संस्कृत व इसमें कुछ परिवर्तनों के साथ संस्कृत थी जिसका आज भी प्रचलन है। इसी भाषा का पठन-पाठन आर्ष शिक्षा के नाम से हमारे गुरुकुलों में वर्तमान समय में कराया जाता है। अतः ईश्वर ने अग्नि आदि चार ऋषियों को चार वेद संस्कृत भाषा में दिये थे। विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि मनुष्य कितना भी पुरुषार्थ क्यों न कर ले, वह संसार की आदि वा प्रथम भाषा को नहीं बना सकते। हां एक भाषा के होने पर उसके शब्दों में विकार होकर कुछ परिवर्तनों के साथ नई भाषा अस्तित्व में आ सकती है। इसके अनेक कारण होते हैं। दूरी व भौगोलिक कारणों सहित मनुष्यों के ज्ञान का स्तर अल्प व मध्यम श्रेणी का ज्ञान भी भाषा में विकार आदि को उत्पन्न करते हैं।
ईश्वर सर्वव्यापक है। वह इस ब्रह्माण्ड में सर्वत्र विद्यमान है। उसका न आदि है और न अन्त। वह अनादि, अनुत्पन्न और अजन्मा है और इसके साथ ही अमर, अविनाशी और अनन्त भी है। ईश्वर सभी पदार्थों में सबसे सूक्ष्म है और सभी जीवों व भौतिक पदार्थों के भीतर भी विद्यमान है। इस कारण उसको सर्वान्तर्यामी कहा जाता है। ईश्वर के अनेक गुणों में से एक गुण उसका सर्वज्ञ होना है। इसका अर्थ होता है कि वह सभी प्रकार के ज्ञान व विज्ञान को पूर्णता से जानता है और सर्वशक्तिमान होने के कारण जहां उसको आवश्यकता होती है उसका उपयोग भी करता है। ईश्वर ने अपनी सर्वज्ञता का इस सृष्टि निर्माण, इसके पालन व संचालन तथा मनुष्यादि प्राणियों के शरीरों के निर्माण व संचालन में भी उपयोग किया है। वेदों का ज्ञान भी ईश्वर का नित्य ज्ञान है जिसे वह प्रत्येक कल्प में सृष्टि के आदिकाल में आदि स्त्री-पुरुषों को चार ऋषियों के माध्यम से देता है। इस सृष्टि के आदि में उसने वेदों का ज्ञान पहली बार नहीं दिया है अपितु वह तो अनादिकाल से सभी कल्पों व सृष्टियों में वेदों का ज्ञान देता आया है। इस आधार पर ईश्वर ने असंख्य व अनन्त बार वेदों का ज्ञान सृष्टि के आरम्भ काल में आदि मनुष्यों को दिया है, यह ज्ञात वा सिद्ध होता है। यदि ऐसा न करता तो मनुष्य जाति अपने भावी समय में ज्ञान व विज्ञान की उन्नति व आविष्कार आदि नहीं कर सकती थी। वर्तमान वेद ज्ञान देने की ईश्वरीय प्रक्रिया इस प्रकार रही है कि उसने वेदों का ज्ञान चार ऋषियों की आत्माओं में अपनी सर्वज्ञता व सर्वान्तर्यामीस्वरूप से स्थापित किया है।
वेद ईश्वरीय ज्ञान है इसका प्रमाण है कि वेदों में सभी सत्य विद्यायें हैं। संसार में सभी विद्याओं का विस्तार ईश्वर से वेदों का ज्ञान मिलने के बाद ही हुआ है। यदि वेदों का ज्ञान व भाषा हमें न मिली होती तो संसार में किसी प्रकार की भाषा व ज्ञान न होता। ईश्वर से वेदों का ज्ञान व भाषा मिलने के बाद प्राचीन काल से ही ऋषियों ने शास्त्र रचना करना आरम्भ कर दिया था। हमारे उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति, आयुर्वेद, ज्योतिष आदि अनेकानेक विषयों के ग्रन्थ लिखे गये। इनमें दिये गये ज्ञान को देखकर विद्वान आज भी आश्चर्यान्वित होते हैं। ऋषि दयानन्द जी ने वेदों के आविर्भाव के विषय में इस प्रश्न पर भी विचार किया है कि ईश्वर ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को बाल्यावस्था, युवावस्था व वृद्धावस्था में से किस अवस्था में बनाया था। इसका तर्कपूर्ण उत्तर देते हुए ऋषि दयानन्द जी ने लिखा है कि यदि ईश्वर अमैथुनी सृष्टि में मनुष्यों को बाल अवस्था में बनाता तो उनके पालन के लिए माता-पिता व आचार्यों की आवश्यकता होती जो कि उस समय नहीं थे। यदि वृद्धावस्था में बनाता तो यह सृष्टि वृद्धों से सन्तानों की उत्पत्ति न होने के कारण आगे चल नहीं सकती थी। अतः आदि सृष्टि में ईश्वर ने मनुष्यों को युवावस्था में ही उत्पन्न किया था, यह विदित होता है। वेदों का ज्ञान भी युवावस्था के ऋषियों को दिया गया जिन्होंने वह ज्ञान ब्रह्मा जी को कराया और उन्होंने युवावस्था वाले अन्य स्त्री पुरुषों को कराया था। वही परम्परा आज तक चली आई है। हमारा सौभाग्य है कि सृष्टि के 1.96 अरब वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद आज भी वेद हमें मूल रूप में उपलब्ध है। इतना ही नहीं, मूल भाषा में वेदज्ञान हमें इसकी हिन्दी स अंग्रेजी आदि भाषाओं में टीकाओं व अनुवादों के रूप में भी उपलब्ध है। इसके लिए सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल व अब तक उन सभी लोगों की वर्तमान मानवजाति ऋणी है जिन्होंने वेदों को सुरक्षित रखा। ईश्वर से प्राप्त वेदों का जैसा ज्ञान है वैसा महत्वपूर्ण ज्ञान व ग्रन्थ संसार में अन्य कोई नहीं है।
वेदों से ईश्वर, जीव व प्रकृति के सभी पदार्थों का यथार्थस्वरूप का बोध होता है। इन विषयों का ज्ञान वेदों सहित उपनिषदों, मनुस्मृति, दर्शनग्रन्थ, आयुर्वेद आदि के ग्रन्थों में भी उपलब्ध होता है। यह भी उल्लेखनीय है कि वेदों से उपलब्ध ईश्वर व जीवात्मा के स्वरूप का समस्त ज्ञान विज्ञान व तर्क आदि की कसौटी पर भी सत्य सिद्ध होता है। वेद संसार में सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें ईश्वर प्रदत्त ज्ञान विज्ञान उपलब्ध है। इसी ज्ञान विज्ञान व वेदानुमोदित कर्तव्यों के निर्वाह से मनुष्य ईश्वर व जीवात्मा का साक्षात्कार करने के साथ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। अन्य कोई मार्ग मनुष्य की आत्मा की उन्नति व ईश्वर की प्राप्ति का नहीं है। वेदों का स्वाध्याय व तदनुरूप आचरण ही मनुष्य को साधारण स्थिति से उन्नत कर उसे देव, विद्वान, ज्ञानी अथवा ऋषि बनाते हैं। ऋषि दयानन्द जी की हम पर महती कृपा हुई कि वेदों का हिन्दी भाष्य और सत्यार्थप्रकाश जैसा अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ हमारे पास है। सत्यार्थप्रकाश व ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि के अध्ययन से भी वेद संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ सिद्ध होते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य