ईश्वर की अराधना करें न की मृत्यु को प्राप्त मनुष्यों की
डॉ संतोष राय
वरिष्ठ नेता – हिन्दू महासभा
चूँकि सनातन वैदिक धर्म इस संसार का आदि धर्म है और यह भी मान्यता है की जब से सृष्टि का सृजन हुआ है तभी से सनातन धर्म है । सनातन धर्म का न तो कोई आदि है और न ही कोई अंत । भारतवर्ष एक महान राष्ट्र है और सनातन धर्म से ही विभिन्न पंथों का भी सृजन भी इसी राष्ट्र में हुआ है इसलिए भारत को विश्व गुरु कहा जाता था लेकिन किन्ही अन्य परिस्थितियों के कारण भारत की पहचान खतरे में है । भारत में अवतरित विभिन पंथों जैसे जैन, बौद्ध, लिंगायत, सिख इत्यादि में एक बात मुख्य है की सभी ओंकार(ॐ) को मानते हैं । यहाँ तक नास्तिक दर्शन(ईश्वरीय सत्ता को न माने वाले) भी भारत के दार्शनिक चार्वार्क की ही देन है लेकिन चार्वार्क ने कभी विदेशी मत या मजहब को समर्थन भी नहीं दिया ।
में एक सनातन धर्मी हूँ फिर हिन्दू हूँ और मेरी यही पहचान है और में कई बार अपने पूर्व के लेखों में स्पष्ट कह चूका हूँ की मुझे हिन्दू भौगोलिक रूप से कहा जाता है न की धार्मिक पहचान से और यही सत्य है । भारत के आदि ग्रंथों में कहीं भी हिन्दू शब्द का उल्लेख नहीं है और विदेशी और अरबी आक्रान्ता जब भारत पर आक्रमण करते थे तो सिन्धु घाटी और सिन्धु नदी को पार करके आना होता था और अरबी में “स” शब्द है ही नहीं तो ये अरबी लोग “स” की जगह “ह” शब्द का प्रयोग कर सिन्धु को हिन्दू कहने लगे और यह हिन्दू नाम प्रचलित हो गया और हम हिन्दू हैं ।
भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए कई षड्यंत्र रचे गए और आज भी षड्यंत्र हो रहे हैं और अब इसी हिन्दू संस्कृति को समाप्त करने के लिए अरबी मजहब और सनातन धर्म को तोड़-मरोड़ कर अवतार या देवता घोषित करके काफी प्रयत्न हो चुके हैं और हो भी रहे हैं । कुछ दिवस पूर्व ही द्वारका पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज जी ने साईं बाबा को सनातन धर्म मंदिरों में देवताओं की तरह पूजा जाने का खंडन किया था और उन्होंने यह खंडन आज से 15 वर्षों पूर्व भी किया था और इस खंडन को मात्र शिवसेना के मुखपत्र “सामना” ने छापा था और किसी अन्य ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई और उस समय स्वामी स्वरूपानंद जी के सम्बन्ध शिव सेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे से भी थे । लेकिन आज भारत के Sickular Media और कुछ तथाकथित हिन्दूवादियों के पेट में दर्द हो गया की स्वामी स्वरूपानंद कांग्रेसी है और इनकी हिम्मत कैसे हुई साईं बाबा को चाँद मियां यानी मुसलमान कहने की ।
साईं चरित्र स्वतः सिद्ध कर रही है की बाबा मलेक्ष अथवा यवनी थे और शिर्डी स्थित उनकी कब्र यानी मजार है जिसे कुछ साईं भक्त कहते हैं की ये कब्र नहीं समाधि है तो मेरा यह कथन है की सनातन परंपरा का संत समाधि लेता है और मुसलमान फ़क़ीर की कब्र बनाई जाती है । कब्र में मुसलमानों को सीधा भूमि में दफना दिया जाता है जबकि हिन्दुओं में संतों को पद्मासन की मुद्रा में भूमि या जल में समाधि दी जाती है । साईं बाबा के किसी भी धर्म ग्रन्थ में अवतार होने या देव होने के बारे में कहीं कोई प्रमाण नहीं है और सनातन धर्म में अवतारी न तो बीड़ी या चिलम का सेवन करेगा या न ही बकरीद के दिन बकरे को हलाल करेगा और न ही नमाज पढ़ेगा ।
अराधना या पूजा किसकी की जाये और किसकी प्रतिमा बनाकर पूजनी चाहिए इत्यादि का वर्णन हमारे शास्त्रों में है और परमात्मा या अवतारी किसे कहा जाये इसके बारे में भी वर्णन है ।
1. ध्यानयोग की सिद्धि के लिए प्रतिमा की उपयोगिता जानी समझी गई है । देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनवाई जानी चाहिए क्योंकि वे श्रेयष्कर और स्वर्गदायिनी होती हैं जबकि मनुष्यादि की मूर्तियाँ नरकदायिनी और अशुभ होती हैं ! – शुक्रनीतिसार 4/4/79,74
2. देवमूर्तियाँ शास्त्रोक्त मान से अधिक और हीन न होने पर ही रम्य जानी गई हैं । यदि देव प्रतिमा शास्त्रोक्त लक्षण से हीन हो तो भी मनुष्यों के लिए श्रेयष्कर होती हैं किन्तु मरणधर्मा मनुष्यों की मूर्तियाँ शास्त्रोक्त लक्षणों से युक्त होने पर भी कभी कल्याणकारी नहीं होती । शुक्रनीतिसार 4/4/75-76
3. विष्णु-पुराण 6/5/74-78 में भगवान् शब्द के सन्दर्भ में लिखा है :
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसशिश्रय: ।
ज्ञानवैराग्य ज्ञान वैराग्ययोश्चश्चैव पण्णाम् भग इतिरणा ।।
उत्पत्तिं प्रलयं चैव भूतानागती गतिम् ।
वेत्ति विद्याविद्यां च स वाच्यो भगवानिति ।।
(परम ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य – इन छह भगों की परिपूर्णता से जो युक्त होता है वह भगवान् है ! समस्त प्राणियों के उत्पत्ति-नाश, अगति-गति और विद्या-अविद्या को भली-भाँती जानने वाला परमात्मा ही भगवान् कहलाता है ) ।
4. सिखों के दसम गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज (1718-1765 विक्रमी) कृत चौबीस अवतार कथा में कलियुग के अवतारों में 23वें और 24वें स्थान पर क्रमशः बुद्ध और निहकलंक = कल्कि का उल्लेख है । बुद्ध के बाद कलियुग के अंत से पहले कल्कि को छोड़कर किसी भी अवतार का कोई प्रसंग प्राप्त नहीं होता है । कलियुग की समाप्ति में अभी 432000-5115 = 426885 सौर-वर्ष शेष रहते हैं । अतः शिर्डी वाले साईं बाबा को विष्णु का अवतार मानने का कोई औचित्य नहीं है ।
5. भगवान् राम के कनिष्ठ पुत्र लव के कुल में जन्म लेने वाले प्रतापी विभूति गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज की महानता और राष्ट्रभक्ति को किसी भी प्रकार से कम नहीं आँका जा सकता । ऐसे राष्ट्र उन्नायक अपनी कृति “विचित्र नाटक” 6/32-33 में लिखते हैं :
जो हमको परमेसर उचरीहैं । ते सभ नरक कुंड महि परिहैं ।
मो को दास तवन का जानो । या मै भेद न रंच पछानो ।।32।।
मै हो परम पुरख को दासा । देखन आयो जगत तमासा ।
जो प्रभ जगती कहा सो कहिहों । मृतलोक ते मौन न रहिहों ।।33।।
इन वचनों से स्पष्ट है की गुरु जी की सैधांतिक दृष्टी में उन्हें परमेश्वर कहने-मानने वाले सभी भक्त लोग नरक कुण्ड को प्राप्त होने योग्य हैं । अतः इस सिद्धांत से शिर्डी के साईं बाबा को परमेश्वर भगवान् अथवा वैष्णव अवतार मानने वाले साईं-भक्त नरकगामी होने से भला कैसे छूट सकते हैं ?
जहाँ तक कण-कण में ईश्वर की व्यापकता को आधार बनाकर बात का बतंगड़ बनाने का प्रश्न है तो इस विषय में पते की बात यह है की परमेश्वर प्रत्येक कण में व्याप्त अवस्य होता है किन्तु सुस्पष्ट है की इस पर भी कण परमेश्वर नहीं कहलाया जा सकता । अतः इस दृष्टी से भी साईं बाबा को परमेश्वर या भगवान् माने का कोई औचित्य नहीं है !