सच्चे मित्र की पहचान
बिखरे मोती भाग-67
गतांक से आगे….
भय शंका से रहित हो,
पिता तुल्य विश्वास।
ये लक्षण जिसमें मिले,
मित्र समझना खास ।। 750 ।।
भाव यह है कि मित्र वह नही है, जिससे तुम्हें डर लगता हो अथवा जिस पर तुम्हें संदेह रहता हो अपितु सच्चा मित्र तो वह है जिससे तुम्हें शक्ति मिलती है जिसका आचरण संदेह से ऊपर है और तुम उस पर अपने पिता के समान विश्वास कर सको अर्थात जो तुम्हारे गोपनीय रहस्यों का कभी अनावरण न करे।
यदि ऐसे लक्षण किसी व्यक्ति में मिलते हैं तो उसे अपना सच्चा हितकारी मित्र समझना चाहिए अन्यथा खरगोश की खाल में भेडिय़े तो बहुत मिल जाएंगे।
भाग्यहीन के आगे से
धन-यश ऐसे जाएं।
सूखे सर से हंस ज्यों,
ऊपर से उड़ जाएं ।। 751 ।।
भाव यह है कि जिस व्यक्ति का प्रारब्ध अच्छा नही है वह धन और यश के बीच में रहता हुआ भी उनसे वंचित रहता है। जेसे सूखे तालाब के ऊपर हंस मंडराते तो रहते हैं , किंतु कभी उसके किनारे पर उतर करन् उसकी शोभा नही बढ़ाते हैं।
कुपित मुदित हो अकारनै,
तो प्रभावहीन हो जाए।
चंचल मेघ का बरसना
यूं ही अकारथ जाए ।। 752 ।।
भाव यह है कि जो व्यक्ति बिना कारण तो क्रोधित हो जाता है और बिना कारण ही प्रसन्न हो जाता है, ऐसा व्यक्ति ठीक उस चंचल बादल की तरह जो कहीं बरस जाता है और कहीं सूखा डाल देता है। इस प्रकार का चंचल मेघ जैसे व्यर्थ होता है, ठीक उसी प्रकार उक्त व्यक्ति का क्रोध अथवा प्रसन्न होना व्यर्थ रहता है।
ज्ञान रूप बल नष्ट हो,
जब इष्ट खो जाए
इष्ट के गहरे शोक से
यादाश्त चली जाए ।। 753।।
मालदार तो बहुत हैं
पर सेहत से कंगाल
ऐसे धन का क्या करें
आठों पहर मलाल ।। 754 ।।
भाव यह है कि धन होने पर भी यदि व्यक्ति स्वस्थ नही है तो धन कीगुणवत्ता समाप्त हो जाती है, सेहत के लिए धन सहायक होता है,
जबकि निर्धन मनुष्य अपनी चिकित्स कराने में असमर्थ होता है। अत: स्वास्थ सबसे श्रेष्ठ दौलत है।